[Hindi] बंगाल की खाड़ी में बनने वाले वह चक्रवात जिनकी चाल और क्षमता का अनुमान लगाना कठिन था

November 23, 2019 6:24 PM | Skymet Weather Team

भारत के दोनों तटों यानी बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में विकसित होने वाले समुद्री तूफानों की क्षमता, उनका रास्ता उनके प्रभावी रहने की समय सीमा इत्यादि भिन्न होती हैं। कई तूफान ऐसे होते हैं जो काफी कम समय में अपना असर दिखा कर खत्म हो जाते हैं जबकि कुछ समुद्री तूफान अत्यंत भीषण होते हैं और लंबे समय तक सक्रिय बने रहते हैं। इसी तरह कुछ समुद्री तूफान प्रभावी होने के बाद लैंडफॉल से पहले ही कमजोर हो जाते हैं।

आमतौर पर समुद्री तूफान किस दिशा में जाएगा इसका अनुमान लगाया जा सकता है, जो कि समुद्री तूफानों के  इतिहास पर आधारित होता है और वर्तमान मौसमी स्थितियों पर भी यह निर्भर करता है। लेकिन कुछ समुद्री तूफानों के रास्ते और उनकी क्षमता के बारे में अंदाजा लगाना कठिन हो जाता है।

तूफान येमईन: तूफान येमईन 2007 में विकसित हुआ था और इसकी समय सीमा 21 से 26 जून की थी। यह अन्य तूफानों के मुकाबले भिन्न था, क्योंकि विकसित हुआ बंगाल की खाड़ी में लेकिन भारत के तटों को पार करते हुए अरब सागर में जाकर पुनः तूफान की क्षमता में आ गया और पाकिस्तान पर भी इसने तूफान की क्षमता में ही लैंडफॉल किया। यह तूफान बंगाल की खाड़ी में 21 जून को निम्न दबाव के क्षेत्र के रूप में उभरा उसके उपरांत प्रभावी होते हुए जल्द ही दीप डिप्रेशन की क्षमता में आ गया था। पूर्वी तटों पर इसको देखते हुए चक्रवाती तूफान की चेतावनी जारी की गई थी। 22 जून को तूफान काकीनाडा पहुंचा, लेकिन लैंडफॉल करने के बाद इसे एनर्जी मिलनी कम हो गई। इसके कारण यह जल्द ही कमजोर होने लगा और पश्चिमी दिशा में आगे बढ़ते हुए भारत के जमीनी भागों को पार कर यह अरब सागर में पहुंचा जहां एक बार फिर से इसे अनुकूल स्थितियां मिली जिसके कारण यह पुुन: चक्रवाती तूफान बना। 25 जून को फिर से चक्रवाती तूफान की चेतावनी जारी की गई। कराची से 90 किलोमीटर दूर जब यह सिस्टम था तब चक्रवाती तूफान बना था उसके बाद लगातार प्रभावी होता रहा और 26 जून को बलूचिस्तान के ओरमारा में इसका लैंडफॉल हुआ।

तूफान वर्धा: तूफान वर्धा वर्ष 2016 में विकसित हुआ था इसे लंबा समुद्री सफर तय करने का मौका मिला था। इसकी समय सीमा की अगर बात करें तो यह 6 दिसंबर से 13 दिसंबर तक प्रभावी रहा। उत्तरी अंडमान सागर और इससे सटे मलय प्रायद्वीप पर पहले निम्न दबाव का क्षेत्र विकसित हुआ और धीरे-धीरे उत्तर पश्चिमी दिशा में आगे बढ़ने लगा। 8 दिसंबर को यह चक्रवाती तूफान बना और इसकी जो क्षमता थी वह 11 दिसंबर को चरम पर थी, जब समुद्री तूफान के आसपास 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चल रही थी।

तूफान वर्धा का लैंडफॉल 12 दिसंबर को चेन्नई के पास भारत के पूर्वी तटों पर हुआ लेकिन जल्द ही यह कमजोर हो गया और 13 दिसंबर को गहरे निम्न दबाव में तब्दील हो गया। 14 दिसंबर को यह अरब सागर में पहुंचा जहां इसे फिर से अनुकूल परिस्थितियां मिली और यह फिर से प्रभावी होने लगा तथा 17 दिसंबर को यह डिप्रेशन बन गया। लेकिन पश्चिमी दिशा में आगे बढ़ते हुए सोमालिया के तटों के करीब पहुंचने पर समुद्र में स्थितियां इसके विपरीत थीं, तापमान कम था जिसके कारण यह कमजोर होकर निम्न दबाव में तब्दील हुआ और उसके बाद निष्प्रभावी हो गया।

तूफान डाए: तूफान डाए वर्ष 2018 में बना था लेकिन इसकी उम्र बहुत छोटी थी। 19 सितंबर को यह पूर्वी बंगाल की खाड़ी में डिप्रेशन बना। 20 को डीप डिप्रेशन और इसी दिन यह चक्रवाती तूफान डाए में तब्दील हो गया। लेकिन तूफान महज 24 घंटों के भीतर ही कमजोर होकर डिप्रेशन बन गया। 22 सितंबर को इसका ओडिशा के गोपालपुर से लैंडफॉल हुआ जब इसकी क्षमता डिप्रेशन की थी। लेकिन जल्द ही निम्न दबाव में तब्दील हो गया।

समुद्री तूफानों के इतिहास को देखें तो डाए न सिर्फ बहुत कम समय का तूफान था बल्कि इसकी यात्रा भी बहुत छोटी थी।

तूफान रोनू: समुद्री तूफान रोनू 2016 में 17 से 22 मई के बीच बना था, इसने भारत के तटीय भागों पर लैंडफॉल भले नहीं किया लेकिन पूर्वी तटवर्ती क्षेत्रों के लिए लगातार चुनौती बना रहा। चक्रवाती तूफान 19 मई को विकसित हुआ था उससे पहले यह डिप्रेशन की शक्ल में आया 18 को। ओडिशा और आंध्र प्रदेश की तरफ इसके बढ़ने की संभावना को देखते हुए भारत के पूर्वी तटों के लिए चेतावनी जारी की गई थी। लेकिन यह भारत के तटों से पर्याप्त दूरी पर ही कमजोर होने लगा था। लेकिन इसने अपना रास्ता बदलते हुए फिर से एनर्जी इकट्ठा की और उत्तर पूर्वी दिशा में बढ़कर बांग्लादेश के चटगांव मेंं चक्रवाती तूफान के रूप में पहुंचा।

एक अन्य चक्रवाती तूफान जिसका नाम था गज। यह भी बंगाल की खाड़ी में विकसित हुआ था इसका भी समय काल चक्रवाती तूफान वर्धा की तरह ही काफी लंबा था। तूफान गज 10 से 19 नवंबर के बीच प्रभावी रहा। यह बंगाल की खाड़ी में विकसित हुआ और भारत के पूर्वी तटों से जमीनी हिस्सों को पार करते हुए अरब सागर मेंं पहुंचा।

Image Credit:  World Nomads

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