साल 2019 का मॉनसून कुछ ज्यादा ही निष्ठुर रहा है। स्काइमेट ने मार्च और अप्रैल में ही अनुमान लगाया था कि मॉनसून 2019 का प्रदर्शन निराशाजनक होगा और उसका आगमन भी देरी से होगा। 4 महीनों के मॉनसून सीजन के लगभग डेढ़ महीने बीतने को हैं और अब तक कुछ ऐसे ही हालात देखने को मिले हैं।
ऐसा नहीं है कि, मॉनसून इसी वर्ष असंतुलित हुआ है। इससे पहले भी बीते कुछ वर्षों से मॉनसून के प्रदर्शन में काफी असंतुलन देखने को मिल रहा है। पिछले कई सालों से ऐसा देखा जा रहा है कि कई राज्यों में एक तरफ बाढ़ है तो दूसरी तरफ सूखा है। यह बदलाव एक दशक के भीतर बहुत व्यापक रूप में पहुँच गया है।
वर्ष 2019 के मॉनसून में यह असंतुलन अपने चरम पर पहुँच गया है। मॉनसून सुस्त और कमजोर दोनों है जिससे प्रायः सूखे की मार झेलने वाले इलाकों में संकट और विकराल रूप लेता जा रहा है।
मॉनसून मध्य भारत में अब तक
अब तक भारत का मध्य इलाका और उसमें भी मध्य प्रदेश ही एकमात्र ऐसा राज्य रहा है, जहां सामान्य से ऊपर बारिश दर्ज की गई है। हालांकि बारिश का वितरण यहां भी ठीक नहीं हुआ है और हर दिन सामान्य बारिश नहीं हुई है बल्कि लंबे समय के सूखे के बाद कुछ दिन मूसलाधार बारिश हुई। आंकड़ों में पश्चिमी मध्य प्रदेश में सामान्य से 42% अधिक बारिश हुई है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सामान्य से 8% अधिक बारिश हुई है।
दक्षिण-पश्चिमी मध्य प्रदेश में अचानक मूसलाधार बारिश के कारण बाढ़ जैसी स्थितियां पैदा हुईं। मध्य भारत में महाराष्ट्र के तटीय भागों में भी बाढ़ जैसी स्थितियां देखने को मिलीं। 27 जून से मुंबई, दहानू, रत्नागिरी, महाबलेश्वर, सहित तटीय भागों में मूसलाधार वर्षा रुक-रुक कर हो रही है। कोंकण-गोवा में सामान्य से 14% अधिक और मध्य महाराष्ट्र में सामान्य से 13% अधिक बारिश हुई है। जबकि मराठवाडा में 34% कम और विदर्भ में 20 कम वर्षा हुई है। मराठवाड़ा में किसानों का सूखे से संघर्ष जारी है।
ओड़ीशा में भी कमोबेश यही हाल है। छत्तीसगढ़ में सामान्य से 4% कम बारिश हुई है। हालांकि राज्य के कुछ हिस्सों में बारिश में कमी बनी हुई है तो कहीं भारी बारिश से बाढ़ भी देखने को मिली। गुजरात इसका एक और उदाहरण है क्योंकि महाराष्ट्र से सटे दक्षिण पूर्वी भागों में जिसमें सूरत, अहमदाबाद, बड़ौदा और आसपास के जिले शामिल हैं, वहां जून के आखिर से जुलाई के पहले सप्ताह में भारी बारिश के कारण बाढ़ और जलभराव के हालात देखने को मिले। यहाँ बारिश में कमी अब 8% रह गई है। कच्छ क्षेत्र में अभी भी लोग बारिश के लिए तरस रहे हैं। यहाँ 51% कम बारिश हुई है।
उत्तर भारत में मॉनसून
राजस्थान पर बारिश बहुत कम रही है। राजस्थान में मॉनसून वर्षा आमतौर पर बहुत कम ही होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि राज्य के समूचे क्षेत्रों में मॉनसून 15 जुलाई तक पहुंचता है। उसके बाद भी बहुत ज्यादा बारिश नहीं होती। यही हालात हरियाणा, पंजाब और दिल्ली के भी हैं, जहां अब तक बारिश में भारी कमी रही है। दिल्ली में 1 जून से 10 जुलाई तक जितनी बारिश होती है उसकी महज 12% वर्षा हुई है। बारिश में 88% कमी स्थिति की भयावहता को उजागर करते हैं।
दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिलों यानि बुंदेलखंड क्षेत्र में मॉनसून अभी भी सुस्त रहा है। किसान से लेकर आम इंसान और जानवर तक कम वर्षा के कारण पानी की कमी से मॉनसून सीजन में भी संघर्ष कर रहे हैं। मॉनसून ट्रफ जो हिमालय के तराई क्षेत्रों में पहुंच गई है, उसके कारण अब 11 से 15 जुलाई के बीच उत्तर प्रदेश में नजीबाबाद से लेकर रामपुर, सीतापुर, बस्ती, गोंडा, बहराइच, बलिया और गोरखपुर यानी हिमालय के तराई क्षेत्रों में बाढ़ जैसे हालात बने रहेंगे।
पूर्वी भारत में मॉनसून
बिहार में पिछले कई दिनों से लगातार बारिश हो रही है और आने वाले कुछ दिनों तक मूसलाधार वर्षा जारी रहेगी। जिससे यहां सूखे का संकट कुछ कम होगा। लेकिन किशनगंज, सुपौल, अररिया, पुर्णिया, भागलपुर सहित उत्तरी और पूर्वी बिहार में बाढ़ की आफ़त है। लेकिन, झारखंड में अभी भी कम बारिश रिकॉर्ड हुई है। पश्चिम बंगाल सहित पूर्वोत्तर राज्यों खासकर मणिपुर, मिजोरम, और त्रिपुरा में भी कम वर्षा हुई है।
दक्षिण भारत में मॉनसून का प्रदर्शन
दक्षिण भारत में भी संकट कम नहीं हो रहा है। यहां अब तक सामान्य से 28% कम वर्षा हुई है। केरल और तमिलनाडु वह क्षेत्र हैं, जहां मॉनसून का आगमन सबसे पहले होता है ऐसे में उम्मीद होती है कि यहाँ अच्छी वर्षा होती रहेगी। लेकिन इस बार केरल और तमिलनाडु में बारिश में कमी 45% से भी अधिक दर्ज की गई है। पश्चिमी तटों पर कर्नाटक में तो लगातार वर्षा जारी रही । जबकि आंतरिक कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, रायलसीमा, तमिलनाडु और केरल इन सभी क्षेत्रों में उम्मीद और औसत से काफी कम बारिश हुई है।
आगामी सप्ताह कैसी रहेगी मॉनसून की चाल
अगले एक सप्ताह तक हालात बदलते दिखाई भी नहीं दे रहे हैं, क्योंकि मॉनसून का अच्छा प्रदर्शन महज़ देश के पूर्वोत्तर क्षेत्रों और हिमालय के तराई भागों में देखने को मिलेगा। इसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश के तराई वाले भागों, बिहार के उत्तरी हिस्सों, हिमालयी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में भारी वर्षा अगले चार-पांच दिनों तक होगी।
इस दौरान पूर्वी भारत के बाकी इलाकों, मध्य और दक्षिणी भागों में बहुत कम वर्षा की उम्मीद है। 15 जुलाई के बाद जब ट्रफ दक्षिण में आएगी तब दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बुंदेलखंड सहित उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भागों और मध्य भारत के भागों में बारिश फिर शुरू होगी।
मॉनसून पर अल नीनो का प्रभाव
मॉनसून 2019 से अल नीनो का साया अब तक हटा नहीं है। भूमध्य रेखा के पास समुद्र की सतह के तापमान का पिछले दिनों का रिकॉर्ड देखने पर लगा था कि अल नीनो कमजोर हो रहा है। इससे उम्मीद जगी थी कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2019 पर इसका असर अब कम होगा। लेकिन हाल के दिनों में अल नीनो में फिर से अचानक मजबूती देखने को मिली।
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भारत के मॉनसून को मुख्यतः नीनो इंडेक्स 3.4 में होने वाले बदलाव प्रभावित करते हैं। इसमें लगातार तीन सप्ताह तक तापमान गिरा था। लेकिन पिछले सप्ताह इसमें आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई। हालांकि पिछले दिनों नीनो इंडेक्स 3.4 रीजन में गिरावट के बावजूद तापमान नियत सीमा से ऊपर ही बना हुआ था।
कमजोर मॉनसून से खेती पर ख़तरा
कम मॉनसून वर्षा का सबसे बुरा असर खेती पर पड़ा है। अब तक खरीफ फसलों की खेती सामान्य से बहुत कम हुई है। कमजोर मॉनसून का असर धान और सोयाबीन सहित तमाम फसलों की बुआई के अलावा इस साल उत्पादकता पर भी पड़ने वाला है।
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