दक्षिण पश्चिम मानसून 2018 ने आखिरकार 29 सितंबर को अपनी वापसी की यात्रा शुरू कर दी है। हालांकि इसमें थोड़ी देरी हुई लेकिन मानसून ने राजस्थान के कुछ हिस्सों और गुजरात के कच्छ क्षेत्र से पीछे हटना शुरू कर दिया है। मानसून की वापसी रेखा वर्तमान में अनूपगढ़, नागौर, जोधपुर, जलोर, नलिया और पूर्वोत्तर अरब सागर से होते हुए गुज़र रही है।
राजस्थान के शेष हिस्सों, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात के कुछ हिस्सों और अरब सागर से अगले दो - तीन दिन में मानसून वापसी के लिए परिस्थितियां नितांत अनुकूल हैं।
उसके बाद मानसून की वापसी प्रक्रिया तेजी से मुकम्मल होने की उम्मीद है और लगभग एक हफ्ते के भीतर मानसून, उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश इलाकों से वापस हो जायेगा।
दक्षिणपश्चिम मानसून की वापसी की प्रक्रिया सितंबर में शुरू होती है। हालांकि 1 सितंबर से पहले इसकी वापसी नहीं होती। सितंबर की शुरुआत से ही मानसून पीछे हटना शुरू नहीं करता] बल्कि महीने के पहले दस दिनों के बाद ही ये प्रक्रिया आरंभ होती है।
इस बार मानसून के मौसम में शुरुआती वक़्त में ऐसा लगा कि मानसून समय पर वापस हो जायेगा, लेकिन पश्चिमी विछोभ और चक्रवात 'डे' की बदौलत उत्तर भारत समेत देश के अधिकांश इलाकों में काफी वर्षा हुई और मानसून की वापसी कुछ दिनों के लिए टल गई।
अब ये सभी मौसमी प्रणालियां कमजोर पड़ गई हैं और दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी के लिए स्थितियां सर्वथा अनुकूल हो गई हैं जो सुदूर पश्चिम राजस्थान से शुरू होता है।
मानसून वापसी की प्रक्रिया शुरू होने के कई लक्षण हैं जैसे राजस्थान और गुजरात क्षेत्र पर एक प्रति चक्रवात की उपस्थिति, तापमान में वृद्धि, हवा की दिशा में बदलाव होकर उत्तर-पश्चिमी हो जाना, आर्द्रता के स्तर में कमी, आकाश में बादलों की बेहद कम मौजूदगी और शुष्क मौसम के हालात।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण है प्रति चक्रवात की उपस्थिति, जो अब राजस्थान और आस-पास के क्षेत्रों में बना हुआ है। यह प्रति चक्रवात बारिश में कमी के साथ-साथ हवाओं में परिवर्तन का भी संकेत देता है।