बंगाल की खाड़ी के मध्य और उत्तरी भागों पर एक व्यापक चक्रवाती परिसंचरण बना हुआ है, जो वायुमंडल के मध्यम स्तर तक फैला हुआ है। यह परिसंचरण दक्षिण चीन सागर से आने वाले उष्णकटिबंधीय अवशेषों के साथ मिल सकता है। इस संयुक्त प्रभाव से अगले तीन दिनों में उत्तर-पश्चिम और पश्चिम-मध्य बंगालकी खाड़ी के आसपास एक निम्न दबाव क्षेत्र बनने की संभावना है। इस ताजा प्रणाली के बनने से पिछले दो दिनों से कमजोर पड़ी मानसून गतिविधि में तेजी आने की उम्मीद है।
उष्णकटिबंधीय डिप्रेशन ‘सौलिक’ का प्रभाव: दक्षिण चीन सागर में उष्णकटिबंधीय अवसाद 'सौलिक' कल (19 सितंबर) वियतनाम तट को पार कर गया। यह प्रणाली(अवसाद सौलिक)लाओस और थाईलैंड से होते हुए पश्चिम की ओर आगे बढ़ रहा है और अगले 48 घंटों में म्यांमार के मुख्य भूभाग तक पहुंच जाएगा। यह कमजोर हुई मौसम प्रणाली 22 सितंबर को अराकान तट को पार कर उतर बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करेगी। यहां, यह पहले से मौजूद चक्रवाती परिसंचरण में शामिल हो जाएगी। इसके बाद ये दोनों मौसमी विशेषताएं 23 सितंबर को उत्तर पश्चिमी बंगाल की खाड़ी पर एक निम्म दबाव का क्षेत्र बनाएगा।
सुपर टाइफून 'यागी' की तरह स्थितियाँ: इससे पहले सुपर टाइफून 'यागी' के अवशेष भी बंगाल की खाड़ी में इसी तरह की स्थिति में पहुंचे थे। उस समय बीओबी में एक डिप्रेशन बना, जिसने बाद में गहरा डिप्रेशन का रूप लिया। जिससे देश के बड़े हिस्सों में तेज मानसून गतिविधि (बारिश, तेज हवाएं, आँधी) शुरू हो गई। हालांकि, इस बार बनने वाला सिस्टम उतना मजबूत नहीं हो सकता, लेकिन फिर भी यह पूर्वी और मध्य भारत में सक्रिय मानसून स्थितियों को फैलाने के लिए काफी होगा। यह सक्रिय मानसून महाराष्ट्र और कोंकण तट के अंतिम छोर तक भी पहुंच सकता है।
23 सितंबर से मौसम पर प्रभाव: 23 सितंबर को उत्तर-पश्चिम बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव क्षेत्र बनने की संभावना है। यह प्रणाली ज्यादा मजबूत और संगठित होकर उसी दिन तट के करीब आ जाएगी। जैसे-जैसे यह निम्न दबाव पश्चिम की ओर बढ़ेगा, इसका असर पूर्वी, मध्य और कुछ दक्षिणी राज्यों के मौसम पर पड़ेगा। इससे प्रभावित होने वाले राज्यों में ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक शामिल होंगे। इस मौसम प्रणाली का बाहरी हिस्सा गोवा, गुजरात और राजस्थान के बाहरी इलाकों तक भी पहुंच सकता है। 23 से 29 सितंबर के बीच सक्रिय से लेकर जोरदार मानसून के कारण देश के बड़े हिस्सों में मौसम में बदलाव देखा जा सकता है।