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मानसून 2024 विदाई: सीजन में सामान्य से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड

September 30, 2024 6:20 PM |
दक्षिण पश्चिम मानसून की विदाई, फोटो: आज तक

चार महीने तक चलने वाला मानसून सीजन अच्छे प्रदर्शन के साथ समाप्त हुआ, जिसमें लंबी अवधि के औसत (एलपीए) की 108% वर्षा दर्ज की गई। इस सीजन में देश के 85% हिस्से में सामान्य से अधिक या सामान्य बारिश हुई। हालांकि, कुछ हिस्से जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पंजाब में सामान्य से कम बारिश हुई। बारिश सबसे अधिक कमी पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश (-28%) और उत्तरी मैदानी इलाकों के पंजाब (-28%) में देखी गई।

मानसून सीजन के खास बिंदु: इस मानसून सीजन की कुछ खास बातें थीं। जैसे जून में धीमी और निराशाजनक शुरुआत के बावजूद, जब 11% कम बारिश हुई थी, सीजन ने अच्छा प्रदर्शन किया और मौसम एजेंसियों की उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया। जुलाई और अगस्त दोनों मुख्य मानसून महीनों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। वास्तव में, अगस्त सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला महीना रहा, जिसमें कुल 115% LPA बारिश दर्ज की गई। यह महीना, जो हमेशा 'ब्रेक-इन-मॉनसून' का सामना करता है, लेकिन यह पूरी तरह से ब्रेक फ्री रहा और पूरे मानसून सीजन में एक भी सामान्य ब्रेक नहीं देखा गया। 'ब्रेक-इन-मॉनसून' एक मौसम की स्थिति है जो आमतौर पर भारतीय मॉनसून के दौरान होती है। इसका मतलब है कि जब मॉनसून की बारिश कुछ समय के लिए रुक जाती है या कम हो जाती है, तो उसे 'ब्रेक-इन-मॉनसून' कहा जाता है।

लॉ नीना और सकारात्मक IOD की उम्मीदें: सभी मौसम एजेंसियों ने उम्मीद की थी कि मानसून सीजन के दौरान ला नीना स्थितियां और सकारात्मक IOD (इंडियन ओशन डायपोल) रहेगा। वास्तव में, बेहतर मानसून की भविष्यवाणी इन दोनों कारकों पर आधारित थी, जो वास्तव में नहीं हुआ। इससे यह साबित होता है कि मानसून एक बहुत ही शक्तिशाली प्रणाली है, जो अपने दम पर संचालित हो सकती है। यह भी दिखाता है कि मानसून की आंतरिक ऊर्जा बहुत जबरदस्त होती है। मानसून की गतिशीलता को अभी भी पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। इसे समझने के लिए और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

मानसून के दौरान मुख्य वर्षा क्षेत्र: इस मानसून सीजन का सबसे अच्छा पहलू यह था कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के मुख्य वर्षा क्षेत्रों में जुलाई और अगस्त के महीनों में अच्छी और कभी-कभी अत्यधिक बारिश हुई। बारिश का वितरण, अवधि और तीव्रता किसानों की जरूरतों के अनुरूप रही। एक और अनोखी बात राजस्थान के अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में भी अधिक बारिश हुई। खासकर पश्चिमी राजस्थान के सबसे शुष्क इलाके में 70% से अधिक बारिश हुई, जबकि पूर्वी राजस्थान में भी 45% से अधिक बारिश दर्ज की गई। वहीं, उत्तर भारत के कृषि क्षेत्रों जैसे पंजाब में -28% कम बारिश दर्ज की गई, जो चिंता का विषय है।

मानसून भविष्यवाणी की चुनौतियाँ: वैज्ञानिक समुदाय द्वारा काफी शोध और प्रयासों के बावजूद मानसून की भविष्यवाणी(पूर्वानुमान) अभी भी एक चुनौती बनी हुई है। मौसम के अन्य असमानताओं की तरह मानसून को समझना एक निरंतर प्रक्रिया बनी रहेगी। मानसून किसी भी समय, किसी भी स्थान पर एक अप्रत्याशित घटना उत्पन्न कर सकता है। आखिरकार, मानसून की अपनी एक विशेष पहचान और प्रतिष्ठा है, जिसे वह हमेशा बनाए रखता है।






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