असामान्य रूप से गर्म प्रशांत महासागर के चलते मौसम वैज्ञानिक भारतीय मॉनसून सहित वैश्विक मौसम पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को लेकर अनिश्चितता की स्थिति में हैं। शुरुआत में एशियाई मॉनसून 2016 के दौरान सशक्त ला नीना के अनुमान के बाद अब मौसम का आंकलन करने के लिए बेहद सावधानी भरा रवैया अपनाया जा रहा है।
मौसम पूर्वानुमान लगाने वाली दुनिया की अधिकांश एजेंसियां 2016 की दूसरी तिमाही में एक तटस्थ ईएनएसओ का और उसके बाद एक कमजोर ला नीना का अनुमान लगा रही हैं।
एल नीनो की पुनरावृत्ति की संभावना बहुत कम होती है।
विश्व के एक हिस्से में औसत से अधिक ठंडा या गर्म तापमान सम्पूर्ण विश्व के मौसम को प्रभावित कर सकता है। अल नीनो और ला नीना एक दूसरे के विपरीत चरण हैं। अल नीनो को ईएनएसओ (अल नीनो साऊदर्न ओसिलेशन) कहा जाता है। ला नीना और अल नीनो क्रमशः ठंडे और गर्म चरण हैं जिनमें मौसमी गतिविधियों को प्रभावित करने की व्यापक क्षमता होती है। ईएनएसओ को प्रशांत महासागर के पूर्व मध्य में वायुमंडलीय एवं सामुद्रिक तापमान में आने वाला उतार-चढ़ाव नियंत्रित करता है।
समुद्र की सतह के सामान्य तापमान यानि सी सर्फ़ेस टेंपरेचर (एसएसटी) में आने वाला उतार चढ़ाव समुद्री हलचल को बदलने की क्षमता रखता है जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक मौसम और जलवायु प्रभावित होते हैं।
एसएसटी ही नहीं बल्कि औसत सामुद्रिक तापमान यानि ओशन मीन टेंपरेचर (ओएमटी) वायुमंडलीय दबाव को नियंत्रित करने वाले समुद्र की सतह के गर्म होने का बेहतर पैमाना है और यह अधिक यथार्थवादी है। फिलहाल इस समय ना तो एसएसटी शिथिल है और ना ही समुद्र के गर्म होने के तथ्यों को नकारा जा सकता है।
वर्ष 2015 में जनवरी-मार्च के दौरान समूचे पूर्वी प्रशांत में उप-सतह का व्यापक रूप से गर्म होना पाया गया। उसके बाद अगस्त-सितंबर के दौरान सकारात्मक विसंगति में कमी आई लेकिन अक्टूबर में फिर से बढ़ गई। नवम्बर-दिसम्बर के दौरान इसमें पुनः गिरावट का रुझान देखने को मिला। इस वर्ष जनवरी में दोबारा तापमान में बढ़ोत्तरी के संकेत मिले और यह जल्द ही बसंत के दौरान चरम पर पहुँच सकता है।
समूचे पूर्वी और मध्य प्रशांत में सामुद्रिक संकेतकों के अनुसार तापमान अधिक ही बना रहेगा और इसमें अचानक गिरावट आने की संभावना नहीं है।
गर्म ऊर्जा बनाए रखने का समुद्र का रुझान इसकी ऊर्जा में शीघ्र गिरावट में बाधा बनेगा। ऊर्जा को संरक्षित रखने की समुद्र की क्षमता असाधारण है और इसका ह्रास धीरे-धीरे होगा। सामुद्रिक नीनो सूची के आंकड़ों के अनुसार एक के बाद एक तिमाही में तापमान में अधिकतम कमी 0.5 डिग्री सेल्सियस तक की ही देखी गई है। इस समय उच्च सकारात्मक विसंगति 2.5°C है, जो कि तटस्थ अवस्था पर पहुँच रहा है और यह संभावना भयभीत करने वाली है कि यह इस स्तर से नीचे आने में लंबा समय ले सकता है।
वर्ष 2015 की तिमाही में सामुद्रिक नीनो सूची:
वर्ष 1900 से 26 अल नीनो वर्षों में से 50 प्रतिशत मामलों में अगले वर्ष तटस्थ वर्ष रहे जबकि 40 प्रतिशत ला नीना वर्ष रहे। आंकड़ों के अनुसार लगातार दो अल नीनो वर्ष भी हुए हैं लेकिन ऐसा प्रायः नहीं होता है। वर्ष 1950 के बाद से सबसे लंबा अल नीनो अगस्त 1986 से मार्च 1988 के मध्य देखा गया। वर्ष 2014 के अंत से शुरू हुआ वर्तमान अल नीनो अभी तक सक्रिय बना हुआ है। इसी तरह जून 1998 से अप्रैल 2001 के बीच 23 महीनों का लंबा ला नीना का प्रभाव रहा।
लंबे ला नीना के दौर में ला नीना शुरू होने वाले वर्षों में मॉनसून का प्रदर्शन अगले वर्ष के मुक़ाबले बेहतर रहा। अल नीनो वर्षों में कमजोर मॉनसून को अल नीनो से जोड़कर देखा जाता है लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार अपवाद भी हैं। इसी तरह ला नीना को भी सामान्य से अधिक मॉनसूनी बारिश के साथ जोड़ा जाता है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। जिस तरह से अल नीनो का कमजोर मॉनसून से संबंध है, ऐसा प्रभावकारी संबंध ला नीना के संदर्भ में नहीं है।
अल नीनो मॉडल को बोएस के डेव्लपमेंट ऑफ सैटेलाइट एंड नेटवर्क मदद करता है, जो समुद्र की गर्मी का आंकलन करता है। लेकिन तब हमारे वर्तमान मौसमी और जलवायु आधारित मॉडल अल नीनो के सापेक्ष में उष्णकटिबंधीय वायुमंडल के बारे कैसे बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं।
इस समय पुराने उपग्रहों को हटा कर उनके स्थान पर नए उपग्रह लाकर वर्तमान मॉडलों में कुछ बदलाव लाया जा सकता है। कुछ समय के पश्चात मॉडल डाइनेमिक के साथ एकीकृत करके इसे स्थिर बनाया जा सकता है।
हालांकि जब अल नीनो के शुरू होने वाले समय में इसके प्रभावों के अध्ययन की बात आती है तो फरवरी-मार्च के आंकड़ों की विश्वसनीयता कम दिखाई देती है क्योंकि बसंत के रूप में ऋतु अवरोधक बनती है। ला नीना के परिप्रेक्ष्य में इस समय यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि इस वर्ष मॉनसून बेहतर होगा। इस अवस्था में ईएनएसओ का तटस्थ होना सकारात्मक संकेत माना जा सकता है। अधिक विश्वसनीय और व्यापक मॉनसून पूर्वानुमान के लिए आपको अप्रैल तक की प्रतीक्षा करनी होगी।
Image Credit: NOAA