पश्चिमी विक्षोभ आमतौर पर पश्चिमी हिमालय और आसपास के उत्तरी मैदानी इलाकों को नवंबर से फरवरी के बीच प्रभावित करते हैं। मार्च में भी पश्चिमी विक्षोभ आते हैं लेकिन तीव्रता और इनकी संख्या कम होने लगती है। अप्रैल आते-आते पश्चिमी विक्षोभ का ट्रैक और ऊपरी हो जाता है यह सामान्य पैटर्न है जिसमें कभी-कभी बदलाव आता है।
इस साल फरवरी के महीने में पश्चिमी विक्षोभ की संख्या काफी कम रही। यही नहीं फरवरी महीने में आने वाले पश्चिमी विक्षोभ कमजोर भी रहे। मार्च महीने में उम्मीद से अधिक संख्या और इनकी तीव्रता देखने को मिल रही है। लगातार आने वाले प्रभावी पश्चिमी विक्षोभों के कारण हिमालयी राज्यों में व्यापक मात्रा में गरज के साथ बारिश और बर्फबारी देखने को मिल रही है। देश के उत्तरी मैदानी राज्यों पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम और मध्य उत्तर प्रदेश, उत्तरी मध्य प्रदेश और उत्तर-पूर्वी राजस्थान में भी मार्च में कई जगहों पर बारिश दर्ज की गई है।
इस समय भी एक पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत पर पहुँच गया है। वर्तमान पश्चिमी विक्षोभ जम्मू-कश्मीर से लेकर उत्तराखंड तक बारिश और हिमपात देगा। 16 मार्च के आसपास एक और पश्चिमी विक्षोभ के आने की आशंका है। यह सिलसिला यहीं खत्म नहीं होगा बल्कि 21 मार्च से 23 के बीच एक और पश्चिमी विक्षोभ आएगा। पश्चिमी हिमालयी राज्यों में इस साल मार्च के अंत तक बारिश और हल्की बर्फबारी होती रहेगी।
इन पश्चिमी विक्षोभों का प्रभाव उत्तर पश्चिम भारत में भी महसूस किया जाएगा। प्रत्येक पश्चिमी विक्षोभ के आगे निकलने के बाद, उत्तर पश्चिम से आने वाली हवाएं तापमान में गिरावट लाएँगी क्योंकि इन हवाओं के साथ उत्तर के पहाड़ों पर जमा बर्फ की ठंडक भी आएगी। इसलिए, हम उम्मीद कर सकते हैं कि उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाक़े में दिन और रात के तापमान नियंत्रण में बने रहेंगे। हीट वेव यानि लू चलने की आशंका भी मार्च में नहीं रहेगी।
उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी राज्यों में भी 17 से 18 मार्च के बीच कुछ स्थानों पर बारिश होने या गरज के साथ बौछारें गिरने की संभावना है। मध्य भारत में 18 से 22 मार्च के बीच बारिश हो सकती है।
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