
आइये जानते हैं गुजरात में 29 अगस्त से 4 सितंबर के बीच कैसा रहेगा मौसम।
गुजरात में बीते कुछ वर्षों से मॉनसून का प्रदर्शन बेहतर होता जा रहा है। गुजरात के उत्तरी क्षेत्रों में और खासतौर पर कच्छ क्षेत्र में बहुत कम वर्षा मॉनसून सीजन में भी रिकॉर्ड की जाती थी। लेकिन हाल के वर्षों में गुजरात के कई क्षेत्रों को बाढ़ जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है। साल 2020 का मॉनसून अब तक गुजरात में सामान्य से 65% अधिक बारिश कब तक दे चुका है। गुजरात के पूर्वी क्षेत्र में 16 प्रतिशत अधिक 928 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई है। वहीं सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में सामान्य से 139% अधिक 1058 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है।
हालांकि अब गुजरात पर मॉनसून वर्षा का सिलसिला खत्म होता हुआ नजर आ रहा है क्योंकि मॉनसून की पश्चिमी भारत से वापसी का समय काफी नजदीक आ गया है। इस सप्ताह गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र में मौसम लगभग हर दिन मुख्यतः शुष्क बना रहेगा। हालांकि पूर्वी गुजरात के दक्षिणी भागों में खासतौर पर सूरत, वलसाड, नवसारी के साथ-साथ दमन-दीव और दादरा नगर हवेली समेत आसपास के इलाकों में आज से बारिश की गतिविधियां शुरू हो सकती हैं। उम्मीद है कि 6 और 7 सितंबर से बारिश बढ़ेगी और 11-12 सितंबर तक गुजरात के पूर्वी भागों में हल्की से मध्यम वर्षा की गतिविधियां जारी रहेंगी।
यह बारिश दक्षिण पूर्वी गुजरात में अधिक होगी जबकि उत्तर पूर्वी गुजरात के भागों में हल्की वर्षा ही देखने को मिलेगी। गुजरात में बारिश के आंकड़ों में इस वर्षा से अब वृद्धि होने के आसार बिल्कुल नहीं है। यह हर दिन की औसत वर्षा की आस पास ही रहेगी।
इस मौसम का फसलों पर कैसा होगा असर
किसानों को सलाह है कि खड़ी फसलों में जल-जमाव हुआ है तो पानी के निकासी का प्रबंध करें।
हाल ही में हुई वर्षा के कारण कपास की फसल में मिली-बग्स का प्रकोप तेज़ी से बढ़ सकता है। इसकी समय पर रोकथाम करना अति आवश्यक है, यदि जल-जमाव के कारण कीट-नाशकों का प्रयोग न कर सकें तो प्रभावित पौधों, या टहनियों को खेत से अलग कर नष्ट करें।
सोयबीन की फसल में गर्डल बीटल का प्रकोप सितंबर के महीने से दिखना शुरू हो जाता है, इसके लार्वा तने में सुरंग बनाकर पौधे को खाते हैं, जिससे मुख्य तना सूख जाता है और पौधे मर जाते हैं, इसकी रोकथाम के लिए नाइट्रोजन आधारित उर्वरको का प्रकोप सीमित करें तथा हर 10 दिन बाद पौधो का निरीक्षण करें व प्रभावित पौधो को निकाल कर नष्ट कर दें।
धान की फसल में 100 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टर की आवश्यकता होती है, टिल्लेरिंग की अवस्था पर 87 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टर की दर से दें। अत्यधिक नाइट्रोजन आधारित उर्वरक देने से बचे, ऐसा करने से फसलों में कीटो का प्रकोप बढ़ सकता है। धान की फसल में पत्ती के सिरे ज़िंक की कमी के कारण लाल हो जाते हैं, इसके उपचार के लिए 50 ग्रा ज़िंक सल्फेट और 50 ग्रा यूरिया 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
अगर मूँगफली की फसल में पौधे व्हाइट ग्रब के प्रकोप के कारण सूखने लगें तो खेत में लाइट ट्रैप का प्रयोग करें। मूँगफली की फसल में पत्ती में सुरंग करने वाले कीट के नियंत्रण हेतु 40 ग्रा बौवेरिया बैसियाना 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
Image credit: Wikiwand
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