उत्तर प्रदेश में इस साल मॉनसून समय से पहले पहुंचा है। पिछले कई दिनों से उत्तर प्रदेश के पूर्वी तथा मध्य जिलों में अच्छी बारिश की गतिविधियां जारी हैं।
एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश पर बना हुआ है। यह सिस्टम इस सप्ताह भर सक्रिय रहेगा जिसके प्रभाव से पूर्वी तथा मध्य जिलों में एक सप्ताह तक बारिश की गतिविधियां जारी रह सकती हैं।
उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाके में भी अब वर्षा की गतिविधियां बढ़ेंगी। पीलीभीत, बरेली, नजीबाबाद, मुरादाबाद, रामपुर, बहराइच और आसपास के जिलों में अच्छी बारिश होने की संभावना है।
23 और 24 जून को उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जिलों में भी भारी वर्षा के आसार हैं। इसी दौरान मॉनसून भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दस्तक दे सकता है। पश्चिमी भागों में आगमन से पहले 20 जून के आसपास उत्तर प्रदेश के मध्य जिलों में मॉनसून का आगमन हो सकता है।
इस मौसम का फसलों पर कैसा होगा असर
वर्षा की संभावना को देखते हुए पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसानों को सुझाव है कि खेतों में जल निकासी का प्रबंध करें। वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश खरीफ फसलों के लिए खेत तैयार रखें और पर्याप्त वर्षा हो जाने पर बुआई शुरू कर दें।
धान की सीधी बुवाई करने के लिए यह समय उपयुक्त है। जून के तीसरे सप्ताह तक प्रजाति अनुसार धान की सीधी बुवाई कर सकते हैं। धान की सीधी बुवाई करने के लिए खेत को भली-भांति समतल कर लें।
अधिक लवणीय व क्षारिय मिट्टी को छोड़कर अरहर की खेती प्रायः सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, फिर भी सलाह है कि किसान ऐसे खेतों का चुनाव करें जहां पानी का जमाव न होता हो।
जहां तक क़िस्मों का सवाल है तो शीघ्र पकने वाली अरहर की किस्में हैं:
यू.पी.ए.एस-120, पन्त अरहर-291, पूसा अरहर-33, पूसा अरहर-991, पूसा अरहर-992, पूसा अरहर-2001, पूसा अरहर-2002 आदि को 45 से 60 सें.मी की दूरी पर लाइनों में 15-16 कि.ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें।
सोयाबीन कि बुआई जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कि जा सकती है। सोयाबीन की खेती के लिए जीवांशयुक्त हल्की दोमट मृदा जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो का चुनाव कर 75 से 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें।
सोयाबीन ऐसी तिलहनी फसल है, जिसके जड़ में ग्रन्थि पाई जाती है जो वायुमंडलीय नेत्रजन का स्थिरीकरण करके पौधों को उपलब्ध कराता है। अतः कृषक बंधु इसे लगाने से पूर्व उचित राइजोबियम एवं पी.एस.बी से अवश्य उपचारित करें।
बाजरे की बुआई सिंचित क्षेत्रों में पलेवा करके या मॉनसून की पहली अच्छी वर्षा के बाद 4-5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर प्रयोग करते हुए 45 सें.मी. की दूरी पर लाइनों में करें।
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