आइए जानते हैं 11 से 17 अक्टूबर के बीच कैसा रहेगा राजस्थान में मौसम का हाल।
अक्टूबर का महीना राजस्थान के लिए अभी तक पूरी तरह से शुष्क ही बीता है। पश्चिमी राजस्थान में बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई है जबकि 1 अक्टूबर से 9 अक्टूबर के बीच यहां औसतन 2.9 मिलीमीटर वर्षा होती है। पूर्वी राजस्थान में औसत वर्षा अक्टूबर के पहले 10 दिनों में 7 मिलीमीटर है परंतु अभी तक पूर्वी राजस्थान में केवल 0.5 मिली मीटर ही वर्षा हुई है।
राजस्थान में अगले 4 दिनों तक वर्षा की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। इस दौरान पूरब में कोटा-सवाईमाधोपुर से लेकर पश्चिम में जैसलमर तक मौसम शुष्क और साफ रहेगा। हालांकि 15 और 16 अक्टूबर को राजस्थान के दक्षिणी जिलों में छिटपुट वर्षा की संभावना दिखाई दे रही है। इस दौरान बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, झालावाड़, कोटा तथा बारन आदि जिलों में वर्षा हो सकती है।
14 से 16 अक्टूबर के बीच राजस्थान में पूर्वी दिशा से नम हवाएं चल सकती हैं जिससे न्यूनतम तापमान में कुछ वृद्धि होने की संभावना है। नम हवाओं के चलते दिन के तापमान में कुछ गिरावट हो सकती है।
राजस्थान के किसानों के लिए फसल सलाह
मुख्यतः शुष्क मौसम के बीच तैयार फसलों की कटाई शीघ्र करें। 16 अक्तूबर को पूर्वी राजस्थान तथा 17 अक्तूबर को पूर्वी तथा मध्य जिलों में वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सुझाव है कि कटी हुई फसलों की सुरक्षा सुनिशित करें। रबी फसलों के खेतों की तैयारी के साथ-साथ उर्वरकों की अग्रिम व्यवस्था कर लें।
सरसों के खेत में खरपतवार ना हो तो इसके लिए खेत की तैयारी करते समय अन्तिम जुताई से पहले 1800 मिली. (खरपतवारनाशी) पैन्डिमैथलिन (38.7 सी. एस.) 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें और जुताई करके मिट्टी में मिला दें। जिप्सम में गंधक की प्रचुर मात्रा होती है। इसे 300 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से पहले खेत में मिला दें। इससे सरसों की फसल में तेल की मात्रा, उपज व रोग-रोधी क्षमता बढ़ाने में मदद मिलती है।
बारानी क्षेत्रों के लिए सरसों की उन्नत किस्में आर.जी.एन-48 एवं आर.जी.एन-221 हैं, समय से बुवाई के लिए लक्ष्मी, आर.जी.एन-73, पूसा बोल्ड एवं वरुणा तथा देरी से बिजाई के लिए आर.जी.एन-236 एवं आर.जी.एन-145 उन्नत किस्में हैं।
सिंचित चने की बिजाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करें। बरानी चने की अगेती बिजाई लाभदायक होती है। एक हेक्टेयर के लिए 60 किग्रा. (छोटे दाने वाली किस्में) से 80 किग्रा. (मोटे दाने वाली किस्में) बीज पर्याप्त है। उकठा रोग से बचाव के लिए बिजाई से पूर्व बीज को एक ग्राम कार्बेन्डाजिम/ कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
चने की मध्यम आकार वाली उन्नत किस्मों आर.एस.जी-888, जी.एन.जी-1581, सी.एस.जे.डी-884, जी.एन.जी-1581, जी.एन.जी-663, सी-235, पी.बी.जी-1, आर.एस.जी-44, आर.एस.जी-2 आदि को 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बीजें। मोटे बीज वाली किस्मों जी.एन.जी-1958 तथा जी.एन.जी-469 की बीज दर 80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर रखें।
Image credit: DNA India
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