आइए जानते हैं 3 मई से 9 मई के बीच कैसा रहेगा राजस्थान में मौसम का हाल।
पिछले सप्ताह चूरू, बीकानेर, जैसलमेर, फलोदी तथा बाड़मेर जैसे उत्तरी और पश्चिमी जिलों में अधिकतम तापमान 43 से 45 डिग्री तक पहुंच गया जिससे लू की स्थिति देखने को मिली।
इस सप्ताह राजस्थान को लू से मिली रहेगी राहत क्योंकि अब एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत में आएंगे और राजस्थान का मौसम भी प्रभावित होगा।
इस सप्ताह राजस्थान के कई जिलों में बारिश तथा आंधी की गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं। आँधी और बारिश की यह गतिविधियां 3 से 5 मई के बीच मुख्यतः देखने को मिलेंगी। इस दौरान उत्तरी, पूर्वी तथा मध्य राजस्थान के जिलों में आँधी और बारिश होगी।
चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर, सिरोही, जालोर सहित दक्षिणी राजस्थान में इस पूरे सप्ताह मौसम लगभग शुष्क बना रहेगा। शेष राजस्थान में बारिश की गतिविधियों के कारण अगले कुछ दिनों तक तापमान रहेगा।
राजस्थान के किसानों के लिए फसल सलाह
जिन इलाकों में वर्षा की संभावना है, वहाँ सुझाव है कि अपनी कटी हुई फसलों व अनाजों की सुरक्षा सुनिशित करें। मौसम में निरंतर हो रहे परिवर्तन के कारण फसलों में कीटों और रोगों का प्रकोप भी बढ़ सकता है। फसलों की नियमित निगरानी करते रहें।
मिर्च में सफेद मक्खी, थ्रिप्स, हरा तेला व चेपा के प्रकोप के नियंत्रण के लिए मौसम साफ होने पर नीम आधारित कीटनाशी (0.03%) 2 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें अथवा मिथाइल डिमेटान (25 ई.सी.) को 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें।
मार्च में बोई गई मूंग की फसल में 2 से 4 सिंचाई की आवश्यकता होती है। आवश्यकता अनुसार सिंचाई करें। मौसम में नमी अधिक होने के कारण मूंग में सफेद मक्खी का प्रकोप हो रहा है, इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान (5%) के 25 कि.ग्रा. चूर्ण/डस्ट का प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करे अथवा डाइमिथोएट का एक लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
इन कीटनाशकों का प्रयोग सुबह या सांयकाल में मौसम साफ रहने पर ही करें।
बीटी कपास की बिजाई का उचित समय 1 से 20 मई तक है। बिजाई से पहले गहरी जुताई एवं पलेवा (जिसे रोणी या प्री-सोइंग इरिगेशन भी कहते हैं) से बीजों के अच्छे अंकुरण और पौधों के स्थापन में मदद मिलती है।
खेत की तैयारी करते समय, अन्तिम जुताई से पहले 50 कि.ग्रा. नत्रजन व 40 कि.ग्रा. फोस्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। मृदा परीक्षण के आधार पर पोटाश एवं जिंक का प्रयोग करें। जिन क्षेत्रों में जड़ गलन रोग की समस्या हो, वहाँ ट्राईकोडरमा का प्रयोग अवश्य करें।
Image credit: TourMyIndia
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