आइए जानते हैं 28 जून से 4 जुलाई के बीच कैसा रहेगा राजस्थान में मौसम का हाल।
पिछले कुछ दिनों से राजस्थान में बारिश में बहुत कमी आ गई है। लगातार शुष्क मौसम के चलते पश्चिमी राजस्थान में तापमान सामान्य से कुछ अधिक बने हुए हैं। मॉनसून सीजन शुरू होने के बाद यानि 1 जून से लेकर 28 जून तक पश्चिमी राजस्थान में सामान्य से 13% कम बारिश हुई है जबकि पूर्वी राजस्थान में सामान्य से 28% अधिक वर्षा हो चुकी है।
राजस्थान में फिलहाल मौसम गर्म तथा शुष्क ही बने रहने की संभावना है। हालांकि दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में छिटपुट वर्षा हो सकती है। लेकिन यह बारिश गर्मी और उमस से राहत नहीं दिलाएगी। 30 जून के आसपास दक्षिण तथा दक्षिण पूर्वी राजस्थान में वर्षा की गतिविधियां कुछ बढ़ सकती हैं। इसके बाद 4 और 5 जुलाई को बारिश की गतिविधियां पूर्वी राजस्थान के कई जिलों में बढ़ने की संभावना है जो अगले दो-तीन दिन जारी रह सकती है। उसी दौरान पश्चिमी राजस्थान में भी अच्छी बारिश होने के आसार हैं।
राजस्थान के किसानों के लिए फसल सलाह
राज्य के अनेक भागों में मॉनसून वर्षा शुरू हो गई है। इसलिए किसान भाई फसलों में केवल हल्की सिंचाई ही करें। कीटनाशकों और उर्वरकों आदि का छिड़काव मौसम के अनुरूप ही करें।
धान की रोपाई का उचित समय जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक होता है। 20-25 दिन की पौध (नर्सरी) रोपाई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। रोपाई के समय पौधे से पौधे एवं कतार से कतार की दूरी 15 से.मी. रखें तथा एक स्थान पर दो पौधे लगायें जिससे संख्या पूरी रहेगी। रोपाई के समय 40 कि.ग्रा. नत्रजन व 60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से दें।
धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु, रोपाई के 2-3 दिन बाद, खरपतवारनाशी, मचेटी (5%) के दाने 30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क दें तथा खेत में 15 दिन तक 4-5 से.मी. पानी लगाकर रखें।
जून के महीने में गन्ने की फसल में 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से दें। सामान्य से अधिक तापमान को देखते हुए 10-15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें जिससे फसल के लिए प्रर्याप्त नमी बनी रहे। गन्ने की फसल में जड़ छेदक तथा गोभ छेदक की रोकथाम के लिए फ्यूराडान (10% कण) अथवा डरसबान (10 जी ) को 16 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में मिलाकर सिंचाई करें।
बीटी कपास में पहली सिंचाई, बिजाई के 35-40 दिन बाद करें। बीटी कपास के लिए 150 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। जिसमें से एक तिहाई बिजाई के समय दी जाती है। एक तिहाई (50 कि.ग्रा./हेक्टेयर) पहली सिंचाई के साथ दें तथा शेष मात्रा (50 कि.ग्रा. /हेक्टेयर) कलियां बनते समय सिंचाई के साथ दें। विरलीकरण के द्वारा पौधे से पौधे की दूरी 90 से.मी. करें। पहली सिंचाई के बाद खरपतवार नियंत्रण हेतु कसिये से निराई गुड़ाई करें। इसके बाद वाली निराई गुड़ाई त्रिफाली से करें।
Image Credit: The Financial Express
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