आइए जानते हैं 9 से 15 नवंबर के बीच कैसा रहेगा मौसम।
महाराष्ट्र का मौसम पूरी तरह से शुष्क बना हुआ है। पिछले कुछ दिनों से उत्तर-पूर्वी शुष्क और ठंडी हवाओं के चलते महाराष्ट्र के अधिकांश इलाकों में न्यूनतम तापमान सामान्य से कम बने हुए हैं। कई इलाकों में न्यूनतम तापमान सामान्य से 5 से 6 डिग्री नीचे चल रहे हैं। सबसे अधिक गिरावट तथा मराठवाड़ा में हुई है क्योंकि इन इलाकों में उत्तर पूर्वी दिशा से ठंडी हवाओं का सबसे ज़्यादा असर हुआ है। साथ ही यहाँ पर पहले से ही पर्याप्त बारिश के चलते अच्छी नमी मौजूद है। हालांकि अधिकतम तापमान सामान्य के आसपास ही देखे जा रहे हैं।
इस सप्ताह महाराष्ट्र में बारिश होने की संभावना नहीं है। विदर्भ से लेकर मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और कोंकण गोवा तक मौसम साफ और शुष्क ही बना रहेगा। 13 नवंबर तक उत्तर पूर्वी शुष्क हवाओं के कारण न्यूनतम तापमान सामान्य से काफी नीचे बने रहेंगे। उसके बाद हवाओं के दिशा दक्षिण पूर्वी को जाएगी जिससे न्यूनतम तापमान में हल्की वृद्धि हो सकती है। अधिकतम तापमान सामान्य के आसपास ही बने रहेंगे।
महाराष्ट्र के किसानों के लिए फसल सलाह:
मुख्यतः साफ और शुष्क मौसम के अनुमान को देखते हुए कोंकण के किसानों को सुझाव है कि तैयार हो चुकी धान, मूँगफली, बाजरा आदि फसलों की कटाई कर सुरक्षित स्थानों पर रखें। आम के नए पौधों को एन्थ्रेक्नोज रोग से बचाने के लिए 1% बोर्डो तरल 10 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कद्दू-वर्गीय सब्जियों, लोबिया, कुलथी आदि की बुवाई के लिए समय उपयुक्त है।
मध्य महाराष्ट्र, विदर्भ और मराठवाड़ा के किसानों को सुझाव है कि मौसम साफ रहने पर पक चुकी धान, सोयबीन की कटाई सम्पन्न करें व कपास की चुनाई करें। गेहूं, ज्वार, चने, सरसों आदि फसलों की बुआई अपेक्षित नमी की स्थिति में जारी रखें। सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की बुआई 15 नवंबर से पहले सम्पन्न करें। बुआई से पहले बीजों को 3 ग्राम थाइरम + 25 ग्राम एज़ोटोबेक्टर + 25 ग्राम पी.एस.बी. प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
कपास की फसल में यदि गुलाबी सूँडी का प्रकोप ई.टी.एल. से अधिक हो तो रोकथाम के लिए डेल्टामेथरिन 2.8% ईसी. 1 मिली. प्रति लीटर पानी या क्लोरपाइरीफॉस 25% ई.सी. को 2.5 मिली. प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें।
पूर्वी-विदर्भ में प्याज़, टमाटर, बैंगन, पत्ता-गोभी, फूल-गोभी की नर्सरी बनाने तथा पत्ते-दार सब्जियाँ, मूली, गाजर आदि सब्जियों की बुआई का काम जारी रखें। मृग-बहार की फसलों में फलों के आकार को बढ़ाने के लिए 15-20 दिन के अंतराल पर जिब्रेलिक एसिड का प्रयोग करें। बाग वाली फसलों में हल्की सिंचाई करें व खर-पतवारों को नियंत्रित करें।
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