आइए जानते हैं मध्य प्रदेश में कैसा रहेगा 6 से 12 नवंबर के बीच मौसम। और क्या है मध्य प्रदेश के किसानों के लिए हमारे पास खेती से जुड़ी सलाह।
मॉनसून की विदाई के बाद से मध्य प्रदेश के लगभग सभी भागों में मौसम शुष्क बना हुआ है। अक्टूबर के महीने के पहले पखवाड़े तक पूर्वी मध्य प्रदेश में रुक-रुक कर बारिश की गतिविधियां होती रही थीं। उसके बाद से समूचे राज्य में बारिश नहीं हुई है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में पूरे अक्टूबर महीने में लगभग सभी स्थानों पर मौसम शुष्क ही बना रहा था। 1 अक्टूबर से 5 नवंबर के बीच पश्चिमी मध्य प्रदेश में सामान्य से 68% कम तथा पूर्वी मध्य प्रदेश में सामान्य से 26% कम वर्षा हुई है।
इस समय दक्षिण-पूर्वी राजस्थान तथा उससे सटे पश्चिमी मध्य प्रदेश के ऊपर एक विपरीत चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है। मध्य प्रदेश के अधिकांश भागों में उत्तर पश्चिम दिशा से शुष्क हवाएँ चल रही हैं। इस पूरे सप्ताह मध्य प्रदेश के सभी जिलों में मौसम पूरी तरह शुष्क ही बना रहेगा। दिन और रात के तापमान में हल्की गिरावट होने की संभावना है।
मध्य प्रदेश के किसानों के लिए फसल सलाह
खरीफ की तैयार फसलों की कटाई तुरंत समाप्त करें। धान की पकी फसल की कटाई रीपर या कम्बाइन हार्वेस्टर से सावधानी-पूर्वक करें। कटाई के बाद पराली को कदापि न जलाएँ। चने की बुवाई हेतु खेतों की तैयारी करें और उचित तापमान हो जाने पर बिजाई शुरू करें। मटर की बिजाई में और विलंब न करें तथा शीघ्र ही बिजाई सम्पन्न करें, अन्यथा उपज में कमी आ सकती है।
गेहूं की बिजाई के लिए समय उपत्युक्त है, बिजाई से पहले बीजों को वीटावेक्स या थाईरम से उपचारित करें। सिंचित क्षेत्रों में समय पर बुआई के लिए गेहूं की उन्नत किस्में हैं जे.डब्लू-366, एच.आई-1544, एम.वी-1255, एम.पी-3382, एम.पी-3336, जे.डब्लू-496 तथा कठिया मालवीय की पूसा अनमोल (एच.आई. 8737), एम.पी.ओ (जे.डब्लू.) 1215, एच.आई-8713 आदि।
असिंचित भागों में बुआई करनी है तो बीजों का चयन एच.आई-8627, जे.डबल्यू.एस-17 व एम.पी-3020 आदि किस्मों में से किया जा सकता है। सिंचित भागों में गेहूं की बुआई के लिए खेत की तैयारी कर 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 30 कि.ग्रा. पोटाश तथा 25 कि.ग्रा. ज़िंक सल्फेट प्रति हेक्टर बिजाई के 2-3 दिन पूर्व ड्रिल करें।
टमाटर, बैंगन, मिर्ची, गोभी आदि के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए भी मौसम अनुकूल है। मौसम की बदलती परिस्थितियों में फसलों पर कीट-रोगों का प्रकोप हो सकता है। आलू व चने में कटा/कटुआ इल्ली नए पौधो के तने व शाखाओं को काट कर हानि पहुंचा सकती हैं, इनका प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर तक पाए जाने पर नियंत्रण हेतु 150 मि.ली. स्पाइनोसेड़ 45% एस.सी. या 1.5-2.0 लीटर क्लोरपाइरीफॉस 20 ई.सी. प्रति हेक्टर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
सरसों में पेंटेड बग/बगराड़ा कीट के शिशु एवं प्रौंढ तथा आरा मक्खी के लार्वा के नियंत्रण हेतु मेलाथियान 50% ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टर 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
Image credit: Thomson Reuters
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