आइये जानते हैं मध्य प्रदेश में 13 से 19 नवंबर 2020 के बीच कैसा रहेगा मौसम का हाल और मध्य प्रदेश के किसानों के लिए क्या है फसलों की एड्वाइज़री।
मध्य प्रदेश के लगभग सभी क्षेत्रों में लंबे समय से मौसम साफ और शुष्क बना हुआ है। यही कारण है कि पूर्वी मध्य प्रदेश में 1 अक्टूबर से लेकर 12 नवंबर के बीच सामान्य से 31% कम बारिश हुई है। जबकि पश्चिमी मध्य प्रदेश में सामान्य से 71% कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
इस सप्ताह मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में बारिश की गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं। 15 और 16 नवंबर को अनुमान है कि ग्वालियर, गुना, दतिया, भिंड, मुरैना समेत ग्वालियर संभाग में हल्की वर्षा होने की संभावना है। जबकि 17 से 19 नवंबर के बीच दक्षिण-पूर्वी मध्य प्रदेश के भागों में कहीं-कहीं पर वर्षा होने की संभावना है। इस दौरान जबलपुर, मंडला, बालाघाट, सिवनी, कटनी और आसपास के कुछ इलाकों में वर्षा देखने को मिल सकती है।
हवाओं का रुख इस सप्ताह मध्य प्रदेश के पूर्व से लेकर पश्चिम तक पूर्वी और दक्षिण पूर्वी रहेगा जिसके कारण दिन और रात के तापमान अधिकांश जगहों पर बढ़ते हुए सामान्य से ऊपर पहुंच जाएंगे।
इस मौसम का मध्य प्रदेश की फसलों पर असर देखें तो
इस सप्ताह कुछ इलाकों में वर्षा का अनुमान, जिसे देखते हुए किसानों को सलाह है कि कटी हुई फसलों की सुरक्षा सुनिशित करें। पकी हुई शेष खरीफ फसलों की शीघ्र कटाई कर सुरक्षित खलिहानों में रखें और साफ मौसम होने पर कटी हुई फसल को अच्छी तरह सुखाकर उचित विधि से गहाई करें। दानों में 8-10% नमी रह जाने तक सुखाएँ व साफ-सुथरे उपचारित बारदानो/भंडार ग्रहों में रखें। भंडारण में बीज हेतु दानों, विशेषकर सोयबीन, को रखते समय ध्यान रहे कि बीज की भरी बोरी/बैग 2 या 3 से अधिक एक दूसरे के ऊपर न रखें, अन्यथा बीज के कवच के चटखने से उसका अंकुरण प्रतिशत कम होने की आशंका रहती है।
रबी फसलों की बुवाई का काम जारी रखें, जल-बचत, पोषक-तत्वों की दक्षता में वृद्धि एवं खर-पतवारों की संख्या/सघनता में कमी हेतु चना एवं गेहूँ की बिजाई रेज्ड बेड प्लांटर से की जा सकती है। वर्तमान मौसम में अरहर, कपास, बैंगन, मिर्ची, टमाटर, भिंडी आदि में फूल व फल बनने की अवस्था में फल छेदक कीटों के प्रकोप की संभावना रहती है अतः प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर तक होने पर नियंत्रण हेतु निबोली सत 5% या इमामेक्टिन बेन्ज़ोएट 5% एस.जी. की 225 ग्राम 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़कें।
चने और आलू की फसल में कटुआ इल्ली की रोकथाम के लिए 2 लीटर क्लोरपायरीफास (20 ई.सी.) 600-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर छिड़काव करें।
आलू, मिर्च, टमाटर में रस चूसक कीटों और विषाणुजनित रोगों की रोकथाम के लिए 100 मिली. इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें। चना, मटर, मसूर, सरसों में पहली सिंचाई तथा आलू की फसल में दूसरी सिंचाई 40-45 दिन पर 5 से.मी. गहरी करें।
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