आइए जानते हैं बिहार में इस सप्ताह यानि 2 मई से 8 मई के बीच कैसा रहेगा मौसम। जानेंगे फसलों से जुड़ी सलाह भी।
1 मई को बिहार के कई जिलों में भारी वर्षा दर्ज की गई। 2 मई को भी बिहार के पूर्वी जिलों में हल्की से मध्यम वर्षा हो सकती है। 3 मई को उत्तर तथा पूर्वी जिलों में बारिश की गतिविधियां बढ़ेंगी। उसके बाद 4 से 8 मई के बीच बिहार के कई जिलों में रुक-रुक कर हल्की से मध्यम वर्षा जारी रहने की संभावना है।
5 से 6 मई के बीच 1-2 स्थानों पर भारी वर्षा तथा ओलावृष्टि भी हो सकती है। इन दो दिनों के दौरान तेज हवाएं चलने का भी अनुमान है।
गौरतलब है कि मार्च से मई के बीच बिहार समेत पूर्वी भारत के राज्यों में काल बैसाखी का प्रकोप देखने को मिलती है। इसमें भी अप्रैल के मध्य से मई महीने में राज्य के कई जिलों में भीषण गर्जना और तूफानों हवाओं के साथ बारिश देखने को मिलती है। कहीं-कहीं पर बिजली गिरने की घटनाओं के कारण जान और माल का नुकसान भी होता है। इस सप्ताह कल बैसाखी की घटनाएँ हो सकती हैं।
इस सप्ताह बारिश की संभावना के बीच बिहार के अधिकांश इलाकों में दिन का तापमान सामान्य या सामान्य से नीचे ही बने रहने की संभावना है।
बिहार के किसानों के लिए फसल सलाह
इस सप्ताह बारिश जारी रहेगी इसलिए कृषक बंधु कट चुकी फसलों को सुरक्षित करें तथा मौसम ठीक होने के उपरांत हीं थ्रेशिंग करें। मड़ाई किए हुए फसल उत्पाद को सुरक्षित भंडारित करें।
बोई गई गरमा फसलों में अगर जल निकासी के लिए पहले से नाली नहीं है तो नाली अवश्य बना लें। अन्यथा अधिक बारिश के कारण जल जमाव हो सकता है जिससे पौधे नष्ट हो सकते हैं।
अदरक की खेती करने वाले कृषक मौसम के मिजाज को देखते हुए ही इसकी रोपाई करें अन्यथा कन्द सड़ सकता है। 15-20 दिन बोई गई मूँग के खेत से खरपतवारों को निकालें इसके रसानिक नियंत्रण हेतु क्यूज़ालोफोप इथाइल 5 ई.सी. 500-600 मि.ली. प्रति हेक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के 15-20 दिनों के बाद छिड़कें।
वर्षा के साथ तापमान में वृद्धि होने के कारण फसल में कीटो का प्रकोप भी बढ़ने की संभावना है। मूंग में जैसीड कीट के वयस्क और शिशु पत्तियों एवं अन्य भागों से रस चूसकर उसे क्षति पहुंचाते हैं। यह कीट येलो वेन मोजैक का वाहक भी है। प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली होकर छोटी तथा तने ऐंठ जाते हैं और वृद्धि भी रुक जाती है जिससे फलन प्रभावित होता है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. की 1 मि.ली. मात्रा प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित पौधों पर छिड़काव करें।
भिण्डी में शीर्ष एवं फल छेदक का प्रकोप हो सकता है इससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। इसके पिल्लू कोमल पत्तियों फुनगियों एवं फलों को प्रभावित करते हैं। इसके नियंत्रण के लिए नीम आधारित जैविक कीटनाशी की 5 मि.ली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करें।
इस समय ईख में कल्ला छिद्रक का प्रकोप देखने को मिलता है। खासकर बसंत कालीन रोप में मार्च से जून तक पाया जाता है इसके पिल्लू जमीन की सतह से तने में प्रवेश कर भीतरी भाग को खाते हैं जिससे पौधों की पत्तियां सुख जाती है जिसे 'पिहका' भी कहते हैं। प्रभावित पौधों को 5-6 सेंटीमीटर जमीन की सतह से काटकर खेत से बाहर कर दें।
Image credit: SANDRP
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