बिहार और उत्तर प्रदेश के अधिकांश भागों में बारिश सामान्य से काफी पीछे है। इस मॉनसून सीजन में अब तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में 31% कम जबकि बिहार में 30% कम बारिश हुई है। आमतौर पर मॉनसून की अक्षीय रेखा काफी समय तक उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है, जिससे उत्तर भारत के मैदानी भागों के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और बिहार में मॉनसून सक्रिय रहता है और अच्छी बारिश होती है। लेकिन वर्ष 2015 में मॉनसून कुछ अलग ही गुल खिला रहा है।
मॉनसून की अक्षीय रेखा के अलावा बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मौसमी सिस्टम भी समान्यतः उत्तर-पश्चिम दिशा में आगे बढ़ते हुये बिहार और उत्तर प्रदेश के भागों को बारिश देते हैं। लेकिन इस वर्ष कई सिस्टम शुरुआत में उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ते हैं लेकिन थोड़ा आगे निकलने के बाद यह अपना मार्ग बदलते हुये दक्षिण-पश्चिम दिशा में आगे बढ़कर छत्तीसगढ़ के ऊपर पहुँच रहे हैं और उसके बाद पश्चिम दिशा में आगे निकलकर मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान के मौसम को प्रभावित करते रहे हैं।
बंगाल की खाड़ी से उठकर मध्य भारत के ऊपर आने वाले यह मौसमी सिस्टम मॉनसून की अक्षीय रेखा को अपनी तरफ खींच ले रहे हैं जिससे उत्तर भारत के मैदानी राज्यों के साथ साथ उत्तर प्रदेश और बिहार में बारिश की गतिविधियां कम हो रही हैं।
हालांकि स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश पर बना निम्न दबाव का क्षेत्र कल से कमजोर होगा जिससे मॉनसून की अक्षीय रेखा का पूर्वी सिरा उत्तर की तरफ बढ़ेगा। साथ ही उत्तर भारत के पर्वतीय राज्यों की तरफ एक नया पश्चिमी विक्षोभ आता दिखाई दे रहा है जो मॉनसून रेखा के पश्चिमी छोर के साथ मिलकर उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भागों को गुरुवार से बारिश देना शुरू कर देगा। बारिश का दौर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2 से 4 दिनों तक रहेगा। 6 और 7 अगस्त से उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वी भागों में भी बारिश की गतिविधियां शुरू हो जाएंगी और पूरे राज्य में अगले 2-4 दिनों तक मॉनसूनी हलचल देखने को मिलेगी। राज्य के दक्षिणी भागों में बारिश का ज़ोर बहुत अधिक नहीं होगा लेकिन तराई वाले भागों में कुछ स्थानों पर भारी बारिश के आसार हैं।
मॉनसून रेखा के उत्तरवर्ती होने से बिहार में भी मौसम बदलेगा। बिहार में 8-9 अगस्त से वर्षा की गतिविधियां संभावित हैं। खासतौर पर उत्तरी बिहार में बारिश होगी। राज्य के उत्तरी इलाके ही अब तक सबसे ज़्यादा सूखे रहे हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में जून में बारिश का प्रदर्शन अच्छा रहा था जबकि जुलाई ने तंगहाली दिखाई है जिससे खरीफ फसलों की बुआई तो तेज़ी से हो गई लेकिन अब वर्षा आश्रित फसलें बारिश के अभाव में उपयुक्त विकास नहीं कर पा रही हैं साथ ही किसानों की लागत भी बढ़ रही है। बारिश के इस दौर से फसलों का अच्छा विकास होने की उम्मीद की जा सकती है।
Image credit: Amar Ujala