मार्च का महीना समूचे भारत के लिए मौसम के संदर्भ में बदलाव का महीना होता है। उत्तर भारत में जहां इस महीने में सर्दी अलविदा कहती है वहीं दक्षिण भारत के राज्यों में प्री-मॉनसून वर्षा शुरू हो जाती है।
फरवरी के मुक़ाबले इस महीने में बारिश बढ़ जाती है। हालांकि मौसमी हलचल मुख्यतः दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों पर केन्द्रित रहती है। इसमें भी सबसे अधिक बारिश असम और अरुणाचल प्रदेश में रिकॉर्ड की जाती है।
दूसरी ओर मध्य भारत में आमतौर मार्च में बारिश ना के बराबर होती है। इसमें गुजरात में मार्च में बमुश्किल किसी एक दिन भी बारिश होती है। महाराष्ट्र सहित मध्य भारत के शेष भागों में भी हाल कुछ इसी तरह का रहता है। दूसरी ओर उत्तर भारत के पर्वतीय राज्यों में बारिश जारी रह सकती है जबकि बर्फबारी ऊंचाई वाले स्थानों तक ही सिमट जाती है।
मार्च में प्रभावित करने वाले मौसमी सिस्टम
पश्चिमी विक्षोभ: मार्च में उत्तर भारत का मौसम मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ और इसके प्रभाव से बनने वाले चक्रवाती सिस्टमों पर निर्भर रहता है। फरवरी से ही यह सिस्टम उत्तर की ओर जाने लगते हैं। अब अनुमान है कि बारिश पर्वतीय राज्यों तक सीमित रहेगी। बर्फबारी भी ऊंचे पहाड़ी स्थानों पर ही देखने को मिल सकती है। जबकि मैदानी राज्यों में बारिश की गतिविधियां काफी कम हो जाएंगी। हालांकि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस महीने कुछ समय के लिए हल्की बारिश की संभावना है। कुल मिलकर कहें कि मौसमी हलचल में कमी आने से समूचे उत्तर भारत के राज्यों में तापमान में वृद्धि का क्रम शुरू हो सकता है।
काल बैसाखी: पूर्वी भारत के राज्यों की मौसमी हलचल के लिए छोटा नागपुर क्षेत्र की बनावट अहम भूमिका अदा करती है। पूर्वी राज्यों में इस समय को काल बैसाखी का दौर कहा जाता है। इसे नॉरवेस्टर भी कहते हैं। जैसे-जैसे ग्रीष्म ऋतु अपना असर दिखाएगी पूर्वी भागों में तेज़ आँधी चलने, भयभीत करने वाली बिजली कड़कने की घटनाएँ, बादलों की भीषण गर्जना, कभी-कभी बारिश और ओलावृष्टि इस क्षेत्र के लिए आम मौसमी हलचल होगी। यह गतिविधियां जमशेदपुर से पानागढ़ और मिदनापुर से कोलकाता तक देखने को मिलेंगी। ऐसी हलचलें मुख्यतः दोपहर या शाम के समय होंगी। यह मौसमी गतिविधियां अधिक घातक पूर्वी भारत के राज्यों में होंगी और मार्च के दूसरे पखवाड़े से देखने को मिलेंगी। अप्रैल की शुरुआत से यह और प्रभावी हो सकती हैं।
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चक्रवाती हवाओं के क्षेत्र: इस समय पूर्वोत्तर राज्यों में हवाओं में चक्रवाती सिस्टम प्रायः बनते हैं। पूर्वोत्तर भारत के मौसम में यह भी सक्रिय भूमिका अदा करते हैं। गर्जना की घटनाओं की संख्या बढ़ जाती है। विशेष रूप से असम और अरुणाचल प्रदेश में मौसमी हलचल अधिक हो जाती है।
लू का प्रकोप: मध्य भारत विशेषकर गुजरात में इस महीने शायद ही किसी दिन बारिश होती हो। इसके चलते राज्य में अधिकतम तापमान में बेतहासा वृद्धि होती है और कुछ जगहों पर यह 40 डिग्री तक पहुँच जाता है। कह सकते हैं कि गुजरात उन राज्यों में एक है जो गर्मी का अनुभव सबसे पहले करते हैं। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र के कुछ इलाके लू की चपेट में आ सकते हैं।
ट्रफ: इस महीने में देश के मध्य भागों से दक्षिणी आंतरिक तमिलनाडु के बीच अक्सर ट्रफ बनती हैं जिससे प्रायद्वीपीय भारत के दोनों ओर मौजूद जल क्षेत्र से नमी यहाँ आती है और प्रायः मौसम सक्रिय हो जाता है। इसके अलावा बंगाल की खाड़ी के ऊपर भी मौसमी सिस्टम विकसित होते हैं जो प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी भागों में बारिश दे सकते हैं। फिलहाल आने वाले दिनों में तेलंगाना, आंतरिक कर्नाटक और रायलसीमा में भीषण गर्मी की आशंका है। इस दौरान प्री-मॉनसून सीज़न शुरू होता है और दोनों द्वीपीय क्षेत्रों लक्षद्वीप और अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह में भी बारिश तेज़ हो जाती है। देश भर में फरवरी के मुक़ाबले मार्च महीने में अधिक बारिश होती है। आंकड़ों में स्पष्ट होता है कि फरवरी में जहां समूचे भारत में औसत बारिश का आंकड़ा 22.2 मिलीमीटर है वहीं मार्च में यह 30.9 मिलीमीटर है।
दूसरी ओर उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में मार्च में फरवरी की तुलना में कम वर्षा दर्ज की जाती है। इसके चलते यहाँ दिन और रात में तापमान में वृद्धि का क्रम देखा जाता है। उत्तर के अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी अब तापमान में बढ़ोत्तरी का समय है। आने वाले दिनों में इसमें क्रमशः वृद्धि देखने को भी मिलेगी।
अगले कुछ ही दिनों में देश के कुछ राज्यों विशेषकर गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओड़ीशा, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तरी आंतरिक कर्नाटक में अधिकतम तापमान बढ़ते हुए 40 डिग्री तक पहुँच सकता है। मार्च महीने में देश भर में हवा में दबाव कम हो जाता है जिससे स्थानीय स्तर पर बनने वाले छोटे सिस्टम भी कभी-कभी बड़ी मौसमी हलचल को अंजाम देते हैं। इसमें तूफानी हवाओं के साथ बारिश, तेज़ गर्जना और बिजली कड़कना आदि देखने को मिलती हैं। ऐसी गतिविधियां प्रायद्वीपीय भारत और पूर्वी तथा पूर्वोत्तर भारत में अधिक होती हैं।
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