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[Hindi] विदर्भ और मराठवाडा में क्यों कम होती है मॉनसूनी बारिश

July 14, 2015 3:35 PM |

Maharashtra_drought दक्षिण पश्चिम मॉनसून इस समय अपने चरम पर है, लेकिन दुर्भाग्य से यह महाराष्ट्र के हिस्सों में कमजोर बना हुआ है। मॉनसून के परिप्रेक्ष्य में विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे महाराष्ट्र के अंदरूनी भागों का जब भी ज़िक्र आता है तब इसके साथ मॉनसून आने में देरी, वर्षा में कमी और सूखे जैसे विशेषणों का प्रयोग किया जाता है।

लंबे शुष्क मौसम के चलते खरीफ फसलों की बुआई में देरी होती है और फसल कमजोर होती है। महाराष्ट्र के इन दोनों संभागों में अधिकांश लोग कृषि कार्य में लगे हैं क्योंकि कृषि ही उनके जीवन-यापन का आधार है। मराठवाड़ा में बारिश की कमी का आंकड़ा कभी-कभी 80% के उच्चतम स्तर तक चला जाता है और विदर्भ में भी हालात इसी तरह से निराशाजनक होते हैं।

सूखे जैसे हालत के पीछे की वजह

कमजोर मॉनसून की सबसे अधिक मार विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों में देखने को मिलती है। इन भागों में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा वर्षा आश्रित कृषि पर निर्भर है जिससे बारिश और तापमान में आने वाले किसी भी प्रकार के बदलाव उसके जीवन को व्यापक रूप में प्रभावित करते हैं।

देश के मानचित्र पर मराठवाड़ा की भौगोलिक स्थिति ही कुछ इस प्रकार है जिससे कि मॉनसून की झमाझम बौछारें यहाँ तक कम ही पहुँच पाती हैं। अरब सागर की तरफ से बढ़ता हुआ मॉनसून मध्य महाराष्ट्र तक अच्छी बारिश देता है जबकि मराठवाड़ा तक आते-आते कमजोर पड़ जाता है। बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव के क्षेत्र भी पश्चिम की तरफ बढ़ते हुए ओड़ीशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश तथा विदर्भ तक ही बारिश देते हैं, जिससे मराठवाड़ा के लातूर, परभणी और नांदेड़ जैसे ज़िले सूखे रह जाते हैं। इन भागों में वर्षा में कमी और सिंचाई के साधनों की कम उपलब्धता के चलते खरीफ फसल पर बुरा असर पड़ता है जिससे किसान हतोत्साहित होकर बेबसी में ख़ुदकुशी जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाता है। सिंचाई के लिए देश में किसी संतुलित योजना का ना होना भी इसका एक कारण हो सकता है।

स्काइमेट के अनुसार बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मौसम ओड़ीशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और विदर्भ को तो भिगोते हैं लेकिन मराठवाड़ा तक जाने की क्षमता सामान्य मौसमी हलचलों में नहीं होती जिससे मराठवाड़ा क्षेत्र के जिलों में धरती पानी के लिए तरसती रह जाती है। अरब सागर से आने वाले बादल भी मध्य महाराष्ट्र तक बारिश देते हैं, लेकिन उनकी आगे जाने की क्षमता खत्म हो जाती है जिससे मराठवाड़ा के अधिकांश हिस्से सूखे रह जाते हैं। इसके अलावा पश्चिमी विक्षोभ और मॉनसून की अक्षीय रेखा जैसी मौसमी गतिविधियां भी इस सुदूरवर्ती क्षेत्र तक नहीं पहुँच पाती और मराठवाडा के भागों की प्यास नहीं बुझती।

इन विषम स्थितियों का सामना करने के चलते कर्ज के बोझ में दबे मजबूर किसान अपना परंपरागत व्यवसाय छोडकर आसपास के राज्यों या शहरों में जीवन यापन के लिए पलायन कर रहे हैं।

Image Credit: Outlook

 






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