भारत सहित दुनिया भर के देशों में जलवायु परिवर्तन का असर मौसम के चक्र पर पड़ रहा है। सबसे बड़ी चिंता का विषय है ग्लोबल वार्मिंग, जो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण खतरनाक स्तर पर पहुंचता जा रहा है। एक शोध के मुताबिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने से हम जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्रचंड मौसमी आपदाओं को कम किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों और विश्व के बड़े विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के एक समूह ने जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश पर पड़ने वाले प्रभावों का पता लगाने के लिए दुनिया भर के 20 क्लाइमेट मॉडल्स का अध्ययन किया है। उसके बाद शोधकर्ताओं ने यह अनुमान लगाने के लिए कि कैसे कोई क्षेत्र विशेष प्रभावित होता है, ग्रीन हाऊस गैस के कम उत्सर्जन परिदृश्य के साथ मॉडल्स को जोड़कर देखा।
Read this in English: Climate change: Reducing emissions could alleviate worst effects
अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि गेहूं, मक्का, चावल और सोयाबीन की उपज वाले क्षेत्रों के 14% हिस्से में बारिश में कमी आ सकती है जबकि 31% हिस्से में बारिश में बढ़ोत्तरी दर्ज हो सकती है। शोध के अनुसार कम ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन के परिदृश्य में विश्व के 2 सबसे बड़े चावल उत्पादक देश चीन और भारत में अध्ययन में शामिल सभी चारों फसलों के समय बारिश की मात्रा में वृद्धि हो सकती है।
निष्कर्ष यह है कि ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में कमी करके चीन में प्रभावित क्षेत्र को 11% से कमकर 6% पर और भारत में 80% प्रतिशत से 17% पर लाया जा सकता है।
अध्ययन में पता चला है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में व्यापक कमी अगर नहीं की गई तो उत्तरी अमरीका और यूरोप जैसे भूमध्य रेखा के ऊपरी भागों में 2020 के शुरुआत में वर्षा में भारी बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। कुछ इलाकों में पहले से ही बदलाव दिखाई देने लगा है।
दुनिया भर में खाद्यान्न खपत में गेहूं, मक्का, चावल और सोयाबीन का योगदान 40% है। शोध के मुताबिक यदि ग्रीन हॉउस गैसों को सीमित कर दिया जाये तो वर्षा के क्रम को सीमित किया जा सकता है और अत्यधिक बारिश सूखे से वैश्विक स्तर और होने वाले खाद्य संकट को टाला जा सकता है।
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