वायु प्रदूषण भारत के विभिन्न शहरों में बढ़ता जा रहा है। दिल्ली और एनसीआर के अलावा उत्तर भारत के मैदानी राज्यों में यह समस्या कुछ ज़्यादा ही चुनौतीपूर्ण बन गई है। वायु प्रदूषण में वाहनों से निकलने वाला धुआँ, उद्योगों से निकलने वाली गैसें और धुआँ, भवनों एवं सड़कों आदि के निर्माण के दौरान उड़ाने वाली धूल और रेत के कण की अहम भूमिका होती है। इसमें भी सर्दियों के मौसम में हालात बदतर इसलिए हो जाते हैं क्योंकि कम तापमान के कारण नमी बढ़ने पर यह प्रदूषक तत्व हवा की निचली सतह पर ही बने रहते हैं।
दिल्ली और एनसीआर के शहरों में अक्तूबर से फरवरी के बीच स्थितियाँ भयावह हो जाती हैं। सर्दियों में बढ़ने वाले वायु प्रदूषण के लिए काफी हद तक पंजाब और हरियाणा समेत उत्तर प्रदेश में खरीफ़ फसलों के अवशेषों का जलाया जाना भी ज़िम्मेदार होता है।
वायु प्रदूषण को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के क्रम में केंद्र सरकार प्रयासरत है। केंद्र ने दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में वायु गुणवत्ता में सुधार के उपाय करने के लिए 15 राज्यों को पहली किस्त के रूप में 22 अरब रुपये जारी किए हैं। यह धनराशि पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर जारी की गई है।
वित्त मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक इस अनुदान से दस लाख या उससे अधिक आबादी वाले शहरों के स्थानीय निकायों के क्षमता निर्माण सहित वायु गुणवत्ता सुधारने के उपाय करने में राज्यों को मदद मिलेगी। यह धनराशि आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के लिए जारी की गई।
महाराष्ट्र को 3 अरब 96 करोड़ 50 लाख रुपये दिए गए हैं। गुजरात को 2 अरब 2 करोड़ 50 लाख रुपये, उत्तर प्रदेश को 3 अरब 57 करोड़ रुपये और पश्चिम बंगाल को 2 अरब 9 करोड़ 50 लाख रुपये जारी किए गए हैं।
बढ़ती आबादी के कारण आने वाले समय में वाहनों और उद्योगों से निकलने वाला धुआँ और बड़ी आफत बनने वाला है। साथ ही निर्माण स्थलों से उठती धूल भी आफत बनेगी। इन संभावित कारणों को चिन्हित कर उनका दूरगामी निराकरण करने की आवश्यकता है।
Image credit: DNA India
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