भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर के पूर्वी भागों में पिछले सप्ताह समुद्र की सतह के तापमान में बदलाव हुआ। पिछले 4 हफ्तों से समुद्र की सतह का तापमान पश्चिमी-मध्य और मध्य प्रशांत महासागर में औसत से नीचे बना हुआ था। जबकि भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर के पूर्वी भागों में इसमें बदलाव देखने को मिला था।
अल नीनो सदर्न ओषिलेशन यानी ईएनएसओ को मापने, उसका आकलन करने और पूर्वानुमान जारी करने के लिए ओषनिक नीनो इंडेक्स (ONI) समुद्र की सतह के तापमान पर आधारित होता है जो मुख्यतः नीनो 3.4 क्षेत्र से मापा जाता है। ला नीना की स्थिति तब होती है जब ओ एन आई नेगेटिव यानी नकारात्मक स्तर पर हो यानी यह औसत तापमान से 0.5 डिग्री सेल्सियस कम या उसके बराबर हो। ला नीना की स्थिति यह तब स्पष्ट रूप से मान ली जाती है जब तापमान की निर्धारित सीमा पांच लगातार ओवरलैपिंग महीनों में बनी रहे। वर्तमान स्थिति की अगर बात करें तो बीते छह ओवरलैपिंग महीनों में ओ एन आई की वैल्यू इसी सीमा में रही जिससे साफ संकेत मिलता है कि ला नीना की स्थिति पूर्णतया बनी रही।
फरवरी 2021 की शुरुआती स्थितियों के आधार पर अब संकेत मिलने लगे हैं कि ला नीना की स्थिति में बदलाव हो रहा है और इसमें वृद्धि संभावित है। अनुमान है कि मॉनसून के मध्य तक यह सकारात्मक स्थिति में होगा। हालांकि इसके संबंध में और स्पष्ट होने के लिए लगातार विश्लेषण करना होगा। ज्यादातर मॉडल संकेत कर रहे हैं कि मध्य प्रशांत महासागर में जो कि नीनो 3.4 का क्षेत्र है, में ला नीना अपने चरम पर पहुंचा और अब अनुमान है कि यह तटस्थ ई एन एस ओ की तरफ बढ़ेगा। बसंत ऋतु के आखिर तक यह तटस्थ स्थिति में आ सकता है।
जहां तक हिंद महासागर की बात है तो इसके अधिकांश क्षेत्रों में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक बना हुआ है। हालांकि इंडियन ओशन डायपोल यानी आईओडी 14 फरवरी तक के आंकड़ों के अनुसार तटस्थ स्थिति में है। यह इस समय -0.18°C रिकॉर्ड किया गया।
आईओडी की उपस्थिति अप्रैल तक बनने की संभावना नहीं है, क्योंकि तब तक मॉनसून ट्रफ दक्षिण में ट्रॉपिकल हिंद महासागर के पास होती है।
वर्तमान क्लाइमेट मॉडल यह संकेत करते हैं कि आईओडी भारत में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के आरंभिक समय में तटस्थ रहेगा। आईओडी को मुख्यतः हिंद महासागर के ट्रॉपिकल क्षेत्र में पूर्वी और पश्चिमी भाग में समुद्र की सतह के तापमान में अंतर से परिभाषित किया जाता है। आमतौर पर आईओडी के सकारात्मक होने पर माना जाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप पर बारिश देने वाला मॉनसून अच्छा होगा जबकि नकारात्मक स्थिति में यह मॉनसून को कमजोर कर सकता है।
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