सर्दियों की अभी शुरुआत भी नहीं हुई है लेकिन दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई शहरों में लोगों को प्रदूषण का डर सताने लगा है। प्रदूषण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लोगों के लिए अब सिर्फ पढ़ने, सुनने या देखने वाली खबर का हिस्सा नहीं है बल्कि यह जानलेवा बीमारी का बड़ा कारण बनता जा रहा है। हाल के वर्षों में इसके कई उदाहरण भी सामने आए हैं जब डॉक्टरों ने साफ तौर पर प्रदूषण को एक जानलेवा कारक माना है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण क्यों बढ़ता है, यह हम सभी जानते हैं। दिल्ली में फर्राटा भरती गाड़ियां, आसपास के शहरों के उद्योगों से निकलने वाला जहरीला धुआं, निर्माणाधीन घरों, सड़कों से उड़ने वाली धूल और अन्य कण तो हैं ही। लेकिन इसके अलावा पंजाब, हरियाणा और अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में धान के खेतों में पराली का जलाया जाना एक बड़ा कारण बन गया है।
गौरतलब है कि, पंजाब के कुछ इलाकों में बासमती धान की अगड़ी किस्म की कटाई-मड़ाई शुरू हो गई है जिसके बाद किसान फिर से पुराने ढर्रे पर धान की पराली को खेतों में जलाना शुरू कर चुके हैं। यह खबर सुनते ही दिल्ली-एनसीआर में लोग फिर से पिछले वर्षों के डरावने सच की तस्वीरें देखने लगे हैं।
पिछले तीन-चार सालों में पराली जलाए जाने के कारण दिल्ली-एनसीआर के शहर गैस चैंबर में तब्दील हो गए हैं। इससे निज़ात पाने के लिए केंद्र और राज्य की सरकारों के अलावा पर्यावरण पर नजर रखने वाली सरकारी संस्थाओं ने अनेक नियम कायदे निर्धारित किए हैं इसके बावजूद पराली जलाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।
पंजाब में स्थानीय जिला प्रशासन ने भी कुछ सख्त हिदायतें किसानों के लिए जारी की हैं। लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं है जिसके कारण स्थितियां इस बार भी जस की तस रहने वाली हैं। आने वाले दिनों में धान की पारली जलाने की घटनाएँ बढ़ने की संभावना है क्योंकि अगले 10 दिनों में हार्वेस्टिंग रफ्तार पकड़ने वाली है।
गौरतलब है कि पिछले दो दिनों में पंजाब से पराली जलाने के 117 मामले सामने आए हैं। नीचे दिए गए चित्र में लाल रंग में दिखाया गया है कि कहाँ-कहाँ पराली जलाने से धुआँ उठना शुरू हुआ है।
इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केंद्र की मोदी सरकार को चिट्ठी लिखकर किसानों के लिए पराली के लिए 100 रुपये प्रति क्विंटल की मांग की है। उनका कहना है कि इससे किसानों को पराली जलाने की बजाए अन्य पर्यावरण अनुकूल विधि से निपटाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार ने पिछले साल 50% से 80% तक की सब्सिडी के साथ पराली निपटाने के 28000 मशीनें वितरित की थीं। इस साल भी 26000 मशीने दिए जाने की तैयारी है। पंजाब के मुख्यमंत्री के अनुसार पंजाब के किसानों को हर साल लगभग 2 करोड़ टन धान की पराली को निपटाना होता है जो आसान नहीं है। उन्होंने बताया कि मशीन से इसे निपटाने की अतिरिक्त लागत 2500 से 3000 रुपए प्रति एकड़ आती है, जो किसानों के लिए एक अतिरिक्त बोझ है।
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