भारत में वर्षा का सबसे अधिक विस्तार दक्षिण पश्चिम मॉनसून अवधि में होता है। दक्षिण पश्चिम मॉनसून भारत के लिए ही नहीं एशिया के कई अन्य देशों के लिए भी अहम मौसमी घटना है। इसीलिए इसे एक वैश्विक मौसमी हलचल के तौर पर देखा जाता है। दक्षिण पश्चिम मॉनसून की शुरुआत और इसका प्रदर्शन एक जटिल और दिलचस्प प्रक्रिया है। मॉनसून के दस्तक देने से पहले एशिया में जमीनी भागों से लेकर समुद्री क्षेत्रों तक विभिन्न मौसमी सिस्टमों के रूप में इसके आगमन की आहट मिलने लगती है।
वर्तमान सैटेलाइट तस्वीरों के अनुसार भारत के इर्द-गिर्द इस समय कई मौसमी सिस्टम बनने शुरू भी हो गए हैं। इनमें से कुछ बनने के बाद निष्प्रभावी हो गए हैं जबकि कुछ के बने रहने की संभावना है। मॉनसून से पूर्व विकसित होने वाले कुछ मौसमी सिस्टम सक्रिय।
इंटर ट्रोपिकल कनवरजेंस ज़ोन (आईटीसीज़ेड)
यह सार्वभौमिक तथ्य है कि समुद्री क्षेत्र दक्षिण पश्चिम मॉनसून के लिए बेहद अहम हैं। मॉनसून के प्रदर्शन और इसकी दिशा में समुद्री क्षेत्रों की भूमिका सबसे बड़ी होती है। अब से लगभग 10 दिनों के बाद दक्षिण पश्चिम मॉनसून अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह पर दस्तक देगा। उसके लगभग हफ्ते भर बाद केरल में इसका आगमन हो सकता है।
इंटर ट्रोपिकल कनवरजेंस ज़ोन में बादलों के बढ़ते जमावड़े के रूप में मौसमी हलचल दिखाई देने लगती है। बादलों की निरंतर उपस्थिती मॉनसून के आगमन का सूचक माना जाता है। इस समय आईटीसीज़ेड में कई मौसमी हलचलें दिखाई दे रही हैं। यह जोन दक्षिण पश्चिम मॉनसून को सबसे ज़्यादा नियंत्रित और प्रभावित करता है। अलग-अलग क्षेत्रों में क्षमता में उतार-चढ़ाव के साथ यह पूरे मॉनसून सीजन में बना रहता है। आईटीसीज़ेड को दक्षिण पश्चिम मॉनसून की क्षमता को तय करने वाले पहलू के रूप में देखा जा सकता है।
दी गई तस्वीरों में आप आईटीसीज़ेड में मौसमी हलचलों को देख सकते हैं। मौसम से जुड़े मॉडल दिखा रहे हैं कि इनमें से कुछ सशक्त हो रहे हैं जो भविष्य में जल्द ही ओमान के तटीय भागों को प्रभावित कर सकते हैं। स्काइमेट इन सिस्टमों का अध्ययन करता रहेगा। आईटीसीज़ेड में हवाई और जलमार्गों के लिए इन सिस्टमों के चलते स्थितियाँ अनुकूल नहीं रहेंगी।
वर्तमान मौसमी हलचल
मई महीने में मध्य भारत से प्रायद्वीपीय भारत तक विंड-डिसकंटीन्यूटी एक स्थायी मौसमी बदलाव के तौर पर बनी रहती है। इसके चलते हैदराबाद, बंगलुरु, नागपुर और नासिक सहित आसपास के अन्य शहरों में बारिश की गतिविधियां देखने को मिलती हैं।
पूर्वी तटों के पास एक ऑफ शोर ट्रफ रेखा बनी हुई है। जिसके चलते कोलकाता, भुवनेश्वर, रांची, पटना और जमशेदपुर सहित अन्य पूर्वी शहरों में कई जगहों पर बारिश की गतिविधियां हो रही हैं। बारिश के इस दौर से समूचे पूर्वी भारत में तापमान में गिरावट आई है।
एक पश्चिमी विक्षोभ भी उत्तर भारत के पर्वतीय और मैदानी राज्यों को प्रभावित कर रहा है। आमतौर पर पश्चिम से आने वाला यह मौसमी सिस्टम मॉनसून सीजन में कमजोर पड़ जाता है। हालांकि जब मॉनसूनी हवाएँ पश्चिमी विक्षोभ से मिलती हैं तब पर्वतीय क्षेत्रों में उथल-पुथल करने वाली मौसमी घटनाएँ देखने को मिलती हैं। बीते कुछ सालों में पर्वतीय भागों में मॉनसून के दौरान भारी बारिश के चलते बाढ़ की विभीषिका देखने को मिली है।
वर्तमान अवधि में देश के अधिकांश हिस्सों में लू चलना एक सामान्य मौसमी घटना मानी जाती है। हालांकि इस समय कई भागों में हो रही प्री-मॉनसूनी बारिश के कारण तापमान में गिरावट आई है परिणामस्वरूप लू समाप्त हो गई है।
इस क्रम में यह कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में बना मौसमी परिदृश्य एक अच्छे मॉनसून के लक्षण के तौर पर समझा सकता है। फिलहाल मॉनसून के आने से पहले आप भीगते रहिए अच्छी प्री-मॉनसूनी बौछारों में।