भारत में मॉनसून के आगमन के साथ लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है। देश के लोगों में चिंता या तनाव साफ दिखाई देता है अगर मॉनसून के आगमन में देरी होती है। दूसरी ओर समय से आ जाए मॉनसून तो चेहरे खिल उठते हैं।
हम सभी जानते हैं कि भारत में वर्षा ऋतु लेकर आने वाली मॉनसूनी हवाएँ कभी समय पर तो कभी समय से पहले बारिश देने लगती हैं। लेकिन कई बार यह हवाएँ भारत को इंतज़ार भी करवाती हैं। केरल में आमतौर पर 1 जून को मॉनसून का आगमन होता है। इसमें 5 दिन का उतार-चढ़ाव भी देखने को मिलता है।
जिस तरह से चार महीनों का पूरा सीज़न एक समान नहीं रहता ठीक उसी तरह से मॉनसून का आगमन भी अलग-अलग वर्षों में विभिन्न रूपों में होता है। यानि कभी मॉनसून की धमाकेदार एंट्री होती है तो कभी यह छिटपुट बारिश लेकर आता है। कभी-कभी यह सामान्य बारिश के साथ शुरू होता है।
मॉनसून को भारत में लाने के लिए कई मापदंड हैं और प्रायः साल दर साल इसमें बदलाव भी आता रहता है। मॉनसून को केरल में प्रवेश दिलाने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि दक्षिण भारत के तटों के पास सक्रिय मौसमी सिस्टम बनें। यह एक सामान्य प्रक्रिया है और मॉनसून के आगमन के समय अक्सर ऐसा होता भी आया है।
मई के आखिर या जून के शुरुआत में बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव या डिप्रेशन का विकसित होना बेहद महत्वपूर्ण होता है। इससे यह लगभग सुनिश्चित हो जाता है कि मॉनसून का आगमन भी ठीक से होगा और यह दक्षिणी राज्यों में प्रगति भी सामान्य गति से करेगा।
इसी तरह से अगर अरब सागर में बनने वाले मौसमी सिस्टमों से केरल में मॉनसून का सामान्य रूप से आगमन सुनिश्चित हो जाता है। लेकिन इस समय अरब सागर पर बनने वाले मौसमी सिस्टम भारत के तटों से दूर यानि मध्य या पश्चिमी भागों पर चले जाते हैं। यह सिस्टम मॉनसून को केरल तक लाते तो हैं लेकिन खुद पश्चिम में जाते हैं इसलिए मॉनसून के आगे बढ़ने की रफ्तार बाधित हो जाती है।
कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है जब यह सिस्टम भारत एक पश्चिमी तटों के साथ-साथ अरब सागर में उत्तर में बढ़ते रहते हैं जिससे मॉनसून भले आगे नहीं बढ़ता लेकिन केरल में मॉनसून के आगमन के साथ ही तटीय कर्नाटक और गोवा में बारिश शुरू हो जाती है।
इसी समय एक महत्वपूर्ण बदलाव पश्चिमी तटों पर होता जब जमीनी हिस्सों और समुद्र की सतह पर तापमान में अंतर के कारण ट्रफ बन जाती है। ऐसी स्थिति में मॉनसून की सुस्त शुरुआत होती और प्रगति भी धीमी रहती है।
एक अन्य बदलाव होता है जब दक्षिणी गोलार्ध की हवाएँ भूमध्य रेखा को पार करते हुए उत्तरी गोलार्ध की तरफ बढ़ने लगती हैं। इसके कारण मॉनसून का तेज़ प्रवाह भारत के मुख्य भू-भाग तक पहुंचता है।
इस समय अरब सागर पर मौसमी सिस्टम विकसित होने लगे हैं। मौसमी गतिविधियां भी तेज़ होने लगी हैं। अनुमान है कि अरब सागर पर निम्न दबाव का क्षेत्र विकसित होगा जो केरल में मॉनसून को आगे बढ़ा सकता है।
Image Credit: Irisholidays
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