दक्षिण पश्चिम मॉनसून का 4 महीनों का सीज़न जून में शुरू होकर सितंबर में खत्म होता है और इसकी वापसी सितंबर से शुरू हो जाती है। आमतौर पर मॉनसून की वापसी शुरुआत सितंबर के पहले सप्ताह से होती है, लेकिन 1 सितंबर से पहले यह वापसी के रास्ते पर नहीं निकलता है।
अब तक के पिछले वर्षों के इतिहास को अगर देखें तो 10 सितंबर के आसपास मॉनसून वापस लौटना शुरू करता है और पहली शुरुआत राजस्थान के पश्चिमी भागों से होती है। मॉनसून की वापसी के बारे में मौसम वैज्ञानिक तब आश्वस्त होते हैं जब कुछ तय मापदंड मौसमी परिदृश्य में दिखाई देने लगते हैं। इसमें राजस्थान और गुजरात के भागों पर हवाओं में विपरीत चक्रवाती क्षेत्र का बनना, तापमान में निरंतर वृद्धि, आर्द्रता में कमी, हवाओं का रुख बदलकर उत्तर-पश्चिमी हो जाना, बादलों की उपस्थिति कम से कम होना और मौसम का लगातार शुष्क बने रहना है।
अनुमान है कि विपरीत चक्रवाती क्षेत्र हवाओं में जल्द ही विकसित हो जाएगा। इसके अलावा बाकी जो तय मापदंड है वह भी जल्द ही दिखाई देने शुरू होंगे जिससे मॉनसून की वापसी का रास्ता साफ होगा। स्काईमेट के मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार 30 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच राजस्थान के पश्चिमी छोर से मॉनसून वापसी के रास्ते पर निकल सकता है। इसके अलावा पंजाब और इससे सटे हरियाणा, दिल्ली तथा आसपास के भागों में 10 अक्टूबर तक मॉनसून की वापसी की संभावना दिखाई दे रही है।
इस बीच यह जानना भी ज़रूरी है कि मॉनसून के वापस हो जाने का अर्थ यह नहीं है कि मौसमी गतिविधियां उत्तर भारत में बंद हो जाएंगी। बल्कि पश्चिम से आने वाले मौसम खासकर पश्चिमी विक्षोभ के चलते उत्तर भारत के पहाड़ और मैदानी राज्यों में मॉनसून की वापसी के बाद भी गतिविधियां होती रहती हैं। लेकिन यह मॉनसूनी बारिश के जैसी नहीं होती है यानि मॉनसून के वापस लौटने के बाद जो बारिश होती है उसका दायरा और तीव्रता सीमित होती है।
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