दक्षिण पश्चिम मॉनसून के पहले महीने जून का दूसरा सप्ताह बीतने को है, लेकिन अब तक मॉनसून को लेकर तस्वीर साफ नहीं हुई है और उसका प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है। हम कह सकते हैं कि मॉनसून कमजोर नहीं बल्कि बेहद कमजोर है। सबसे पहले इसके आने में एक सप्ताह की देरी हुई। 8 जून को केरल में मॉनसून ने दस्तक दी। बारिश में भी अब तक कमी रही।
अगर हम मॉनसून के अब तक के प्रदर्शन पर नजर डालें तो देशभर में शुरुआती 10 दिनों में बारिश में 46% की कमी रही। दक्षिण भारत, जहां मॉनसून के शुरुआती महीने में सबसे ज्यादा वर्षा होती है, वहां 22% कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है। दूसरी ओर पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बारिश में कमी 46% की रही।
अलग-अलग क्षेत्रों में प्री-मॉनसून वर्षा में भी इस साल भारी कमी देखने को मिली है। उत्तर पश्चिम भारत में जहां 40 फ़ीसदी कम वर्षा हुई है वहीं मध्य भारत के क्षेत्रों में बारिश सामान्य से 66 फ़ीसदी कम हुई है।
इस समय मॉनसून की उत्तरी सीमा अपनी जगह पर स्थिर है। एनएलएम कन्नूर, मदुरई, मध्य पूर्व बंगाल की खाड़ी होते हुए मिजोरम में बनी हुई है। हालांकि मॉनसून के शुरुआती दिनों में कुछ स्थानों पर भारी वर्षा हुई लेकिन भारी वर्षा का दायरा काफी सीमित रहा।
मॉनसून के संदर्भ में स्थिति अगले कुछ दिनों तक बदलती दिखाई नहीं दे रही हैं। यह अलग बात है कि इस दौरान मॉनसून में मामूली प्रगति देखने को मिल सकती है। इस परिदृश्य के बीच कृषि पर आधारित राजस्थान और महाराष्ट्र के अधिकांश किसानों को सुझाव है कि खरीफ बुआई एक या दो हफ्तों के लिए और स्थगित रखें।
इन सबके बीच अरब सागर पर एक चक्रवाती तूफान ‘वायु’ विकसित हुआ है। आमतौर पर अरब सागर पर मॉनसून के समय विकसित होने वाले चक्रवाती तूफान भारत के मॉनसून को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं करते क्योंकि यह तूफान ज्यादातर समुद्र में ही रहते हैं या उत्तर-पश्चिमी दिशा में ओमान के तटों की तरफ निकल जाते हैं और भारत के मुख्य भू-भाग पर अपना प्रभाव नहीं डालते।
लेकिन इस बार विकसित हुआ चक्रवाती तूफान वायु अगले दो-तीन दिनों में गुजरात के तटों पर लैंडफॉल कर सकता है। इस दौरान गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में विशेषकर पोरबंदर, वेरावल, जामनगर, द्वारका, जूनागढ़ और ओखा सहित आसपास के इलाकों में भीषण वर्षा होने की संभावना है। इसके चलते निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। यह तूफान भीषण चक्रवाती तूफान का रूप ले सकता है।
लोगों को सलाह है कि जरूरी सामान इकट्ठा कर लें और तेज हवाओं के साथ तूफान के तटों पर हिट करते समय घरों से बाहर ना निकलें। किसानों के लिए भी सुझाव जारी किया गया है क्योंकि देर से बोई गई खड़ी फसलें जैसे बाजरा और तिल की फसलें भारी वर्षा के कारण क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। साथ ही इससे हाल ही में बोई गई बीटी कॉटन और मूंगफली की फसलें भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकती हैं।
दूसरी ओर राजकोट, मोरबी, वलसाड और सूरत जैसे गुजरात के अंदरूनी इलाकों में नई बुवाई वाली फसलों को फायदा होगा हमारा अनुमान है कि गुजरात पर लैंडफॉल करने के बाद चक्रवाती तूफान वायु राजस्थान की तरफ मुड़ सकता है और राज्य के दक्षिणी तथा पश्चिमी हिस्सों में अच्छी बारिश दे सकता है। इसलिए राजस्थान में भी फसलों की बुवाई जून के आखिरी हफ्ते तक टालने संबंधी सलाह जारी कर दी गई है क्योंकि इसके बाद बारिश का अगला दौर जून के आखिर से पहले संभावित नहीं है।
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