भारतीय मॉनसून पर अल नीनो के प्रभाव के मुद्दे पर तर्क-वितर्क होता रहा है, हालांकि अधिकांशतः इसे कमजोर मॉनसून से जोड़कर देखा जाता रहा है। समुद्र की सतह के तापमान में कुछ समय के अंतराल पर आने वाले बदलाव को अल-नीनो प्रभाव कहा जाता है। इसमें मध्य-पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह का तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है जिससे हवा के रूख में बदलाव आता है और धरती के अधिकांश हिस्सों पर इस बदलाव का असर असामान्य मौसम के रूप में देखने को मिलता है।
पिछले साल शरद ऋतु में अल-नीनो बनना शुरू हुआ था, जो सर्दियों तक बना रहा। कुछ समय पहले तक मौसम पर नज़र रखने वाली दुनिया की अधिकांश एजेंसियों ने भारतीय ग्रीष्म ऋतु में 50-60% अल-नीनो प्रभाव का अनुमान व्यक्त किया था। जबकि वर्तमान परिदृश्य संकेत कर रहा है कि मॉनसून के दौरान अल-नीनो का 90% प्रभाव रह सकता है। हालांकि इस वर्ष के अंत तक इसके प्रभाव में कमी आने के आसार हैं, जो 90% से घटकर 60% तक आ जाएगा। अनुमान है कि इस वर्ष के मध्य के बाद से इसका असर कम होने लगेगा। अल-नीनो के प्रभाव का अध्ययन करते हुये इंडियन ओशन डायपोल (IOD) जैसी सामुद्रिक और पर्यावरणीय घटनाओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए, जिनका संभावित मौसमी बदलाओं और मॉनसून के प्रदर्शन से गहरा संबंध है।
हिन्द महासागर के पूर्वी और पश्चिमी भागों के तापमान में आने वाले बदलावों को IOD कहा जाता है। नकारात्मक IOD और अल-नीनो को मॉनसूनी बारिश के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। हालांकि इस बार पर्याप्त रूप से गर्म हिन्द महासागर में स्थितियाँ सकारात्मक हैं, जो मॉनसून के खराब प्रदर्शन के डर को कम करती हैं। इस समय प्रशांत महासागर गर्म भले है लेकिन अल-नीनो बीती छः तिमाही में 0.5 की सीमा के ऊपर लेकिन मुहाने पर ही रहा। पिछले साल सितंबर से शुरू हुई ओवरलैपिंग तिमाही के क्रम में छठवीं तिमाही (फरवरी, मार्च और अप्रैल) में यह 0.6 पर रहा। इसमें आगे कुछ समय तक और वृद्धि का अनुमान है लेकिन उसके बाद ये घटने लगेगा। अल-नीनो के साथ ही देखा जाने वाला साऊदर्न ओशिलिएशन ENSO तटस्थ है। एक अन्य वायुमंडलीय क्रम मैडेन-जूलियन ओशिलिएशन (MJO) से भी कोई नकारात्मक संकेत नहीं हैं।
अल-नीनो का प्रभाव बना हुआ है इससे कोई इंकार नहीं है। लेकिन अल-नीनो के मामूली प्रभाव मात्र से बड़े नुकसान की संभावना जैसी चेतावनी जारी करने की आवश्यकता नहीं है। इसके अलावा तथ्य ये भी हैं कि एल-नीनो वर्षों में सामान्य मॉनसूनी बारिश भी हुई है और कभी तो मॉनसून का प्रदर्शन सामान्य से भी बेहतर रहा है। अगर आंकड़ों के आधार पर देखें तो स्काइमेट का अनुमान है कि ग्रीष्मकाल के महीनों में अल नीनो 0.5 से ऊपर बना रहेगा। इसके बाद इसमें गिरावट आ सकती है। इन तथ्यों के आधार पर कह सकते हैं कि इस बार सामान्य मॉनसूनी बारिश के आसार हैं।
Image Credit: The Hindu