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[Hindi] मॉनसून आने से पहले समुद्रों में बढ़ी हलचल

May 13, 2016 1:55 PM |

Possible cyclone in Bay of Bengalबंगाल की खाड़ी में विकसित हो रहे संभावित चक्रवाती तूफान के चलते हिन्द महासागर और अरब सागर में उथल-पुथल बढ़ने की संभावना है। भारत आमतौर पर प्रति वर्ष दो बार चक्रवाती तूफान का सामना करता है। पहला प्री-मॉनसून सीज़न में अप्रैल या मई माह के दौरान प्रभावित करता है जबकि दूसरा चक्रवात मॉनसून समाप्त होने के बाद अक्टूबर या नवंबर में आता है। इस दौरान बंगाल की खाड़ी, हिन्द महासागर और अरब सागर काफी सक्रिय हो जाते हैं और कई सिस्टम यहाँ विकसित होते हैं। हालांकि सभी विकसित होने वाले सिस्टम चक्रवाती तूफान का रूप नहीं लेते।

बंगाल की खाड़ी में दूसरा चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र

हिन्द महासागर में इस समय इंटर ट्रोपिकल कनवरजेंस ज़ोन (आईटीसीज़ेड) सक्रिय है। इसके चलते बंगाल की खाड़ी में दूसरा चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र विकसित हुआ है। यह सिस्टम इस समय बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-दक्षिण पश्चिम और उससे सटे श्रीलंका के पास दिखाई दे रहा है।

स्काइमेट के मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार खाड़ी में बने दो अलग-अलग सिस्टमों का अस्तित्व आमतौर पर बना नहीं रहता। ऐसे में यह दोनों आपस में मिल जाते हैं परिणामस्वरूप एक प्रभावी मौसमी सिस्टम उभरता है।

स्काइमेट के मीटियोरोलोजी एंड क्लाइमेट चेंज के प्रेसीडेंट एवीएम जीपी शर्मा का कहना है कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह दोनों सिस्टम आपस में मिल जाएंगे और 14 मई को और सशक्त होते हुए बंगाल की खाड़ी के दक्षिण-पश्चिम में एक निम्न दबाव के क्षेत्र के रूप में एक सिस्टम उभर सकता है। उसके पश्चात यह और प्रभावी होते हुए सीज़न के पहले चक्रवात का रूप ले सकता है।

इस सिस्टम के प्रभाव से ही अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह पर समय से पहले मॉनसून के आगमन की संभावना है। यह सिस्टम भारतीय तटों के करीब रहेगा इसलिए तमिलनाडु से लेकर आंध्र प्रदेश और ओड़ीशा तक लंबे तटवर्ती क्षेत्रों के लिए संकट बन सकता है। हालांकि मौसम का अध्ययन करने वाले कई मॉडल यह दिखा रहे हैं कि इससे भारत के पूर्वी तटों के किनारे ही प्रभावित होंगे क्योंकि इसके आगे बढ़ने की दिशा उत्तरी है और यह मुख्यतः बांग्लादेश तथा म्यांमार को प्रभावित करेगा।

अरब सागर में भी विकसित हो रहा है एक सिस्टम

सक्रिय आईटीसीज़ेड से संकेत मिल रहे हैं कि अरब सागर में भी एक मौसमी सिस्टम विकसित हो रहा है। हालांकि यह प्रभावी सिस्टम का रूप लेगा या नहीं यह समझने के लिए इस पर कुछ और समय नज़र तक बनाए रखने की ज़रूरत है।

मौसम का अध्ययन करने वाले मॉडल्स के संकेत की मानें तो अरब सागर में 21 या 22 मई तक एक सिस्टम विकसित हो सकता है। यदि यह सिस्टम विकसित होता है तो केरल और कर्नाटक में बारिश की गतिविधियां बढ़ जानेगी। महाराष्ट्र और गोवा के तटीय भागों में भी अधिक वर्षा देखने को मिल सकती है। फिलहाल इस पर नज़र बनाए रखने के साथ हमें प्रतीक्षा करनी होगी।

 

 






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