अरब सागर में बनने वाले मौसमी सिस्टम प्रायः चक्रवाती तूफान में तब्दील हो जाते हैं। हालांकि तूफान में बदलने की संभावना प्री-मॉनसून और पोस्ट-मॉनसून सीज़न में ही अधिक होती है। बाकी समय यह सिस्टम चक्रवाती क्षेत्र और निम्न दबाव तक ही सीमित रहते हैं।
प्री और पोस्ट मॉनसून सीज़न में अरब सागर में उठने वाले मौसमी सिस्टम के तूफान बनने की संभावना 80% रहती है। आपको मालूम हो कि, प्री-मॉनसून सीज़न अप्रैल और मई को कहते हैं जबकि पोस्ट मॉनसून सीज़न अक्टूबर से शुरू होता है और दिसम्बर तक का होता है।
जनवरी, फरवरी और मार्च में चक्रवाती तूफान बनने की संभावना महज़ 10% होती है। मॉनसून सीज़न में भी तूफान कम ही उठते हैं।
अगर हम ऐतिहासिक आंकड़ों को देखें तो 2010 से 2019 के बीच 2015 में 12 बार समुद्र में डिस्टर्बेंस बने लेकिन इसमें से महज़ 4 सिस्टम ही तूफान की क्षमता तक पहुँच सके। 2018 में कुल 14 बार डिस्टर्बेंस बने। इसमें में 7 चक्रवाती तूफान में तब्दील हुए।
वर्ष 2019 में 9 बार डिस्टर्बेंस बने जिनमें से 7 चक्रवाती तूफान की क्षमता तक पहुँच गए। इससे यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि 2010 से अब तक जितनी बार समुद्र में सिस्टम विकसित हुए उनमें तूफान में सबसे अधिक बदलाव 2019 में ही देखने को मिला।
English Version: 2019 may be a record breaking Cyclone year, could surpass 107 year old Record
आमतौर पर बंगाल की खाड़ी में मॉनसून की विदाई के बाद तूफान बनने की संभावना अधिक रहती है। दूसरी ओर अरब सागर में प्री-मॉनसून सीज़न में मॉनसून के बाद की तुलना में अधिक तूफान बनते हैं।
हालांकि इस बार अरब सागर इस संबंध में अपवाद रहा। अरब सागर में मॉनसून सीज़न में वायु और हिक्का नाम के दो तूफान विकसित हुए थे। उसके बाद यानि मॉनसून की विदाई के बाद भी दो तूफान क्यार, और महा अरब सागर में हाल ही में विकसित हुए। मॉनसून से पहले इस बार अरब सागर में एक भी चक्रवाती तूफान विकसित नहीं हुआ।
दूसरी ओर बंगाल की खाड़ी में साल की शुरुआत में ही चक्रवाती तूफान पाबुक बना था। उसके बाद मॉनसून से पहले फ़ानी आया और मॉनसून की विदाई के बाद हाल ही में बुलबुल भी बंगाल की खाड़ी में उठा था।
सबसे अधिक तूफान उठने का टूटा रिकॉर्ड
अरब सागर में इससे पहले 1902 में एक साल में चार तूफान उठे थे। अरब सागर में एक साल में सबसे अधिक चक्रवाती तूफान के रिकॉर्ड की वर्ष 2019 में बराबरी हो गई है। जबकि अभी कम से कम डेढ़ महीनों का वक़्त बाकी है। यानि 117 साल पुराने रिकॉर्ड के टूटने की पूरी संभावना है।
बंगाल की खाड़ी और अरब सागर के तुलनात्मक अंतर
बंगाल की खाड़ी में जब भी कोई तूफान उठता है, वह अपनी क्षमता बनाए रखता है और तूफान की क्षमता में ही तटों पर टकराता है। टकराने से पहले बहुत कमजोर होने की संभावना कम रहती है। दूसरी ओर अरब सागर में जब भी कोई तूफान बनता है, उसका रुख भारत में गुजरात के अलावा पाकिस्तान, ईरान, ओमान, यमन और सोमालिया में से किसी भी ओर हो सकता है। लेकिन इन देशों के तटों के पास समुद्र में तापमान कम होता है जिससे तूफान लैंडफॉल से पहले ही कमजोर हो जाता है।
इसका उदाहरण इसी साल से ले सकते हैं। क्योंकि इस साल चार तूफान अरब सागर में उठे लेकिन इनमें से तीन लैंडफॉल से पहले ही कमजोर होकर डिप्रेशन या निम्न दबाव में तब्दील हो गए।
तूफान हिक्का ने अति भीषण चक्रवात के रूप में ओमान पर लैंडफॉल किया था जबकि वायु गुजरात के तटों पर टकराने से पहले डिप्रेशन बन गया, क्यार सुपर साइक्लोन बनने के बाद सोमालिया के तटों के पास कमजोर हुआ था और हाल ही में महा भी गुजरात में टकराने से पहले ही कमजोर हो गया था। यानि तूफान बनने का रिकॉर्ड तो 1902 के बराबर हो गया लेकिन तूफान के रूप में किसी देश पर टकराने के मामले में कमी रही।
बंगाल की खाड़ी में समुद्री तूफान
बंगाल की खाड़ी में इस साल का पहला तूफान जनवरी में बना पाबुक। यह थाईलैंड की तरफ से आया था। अंडमान सागर में आकर इसने पुन: तूफान क्षमता हासिल कर ली थी लेकिन इसने लैंडफॉल नहीं किया। जनवरी में वायुमण्डल तूफान के अनुकूल नहीं होता जिससे इसके कमजोर होने की संभावना प्रबल थी।
इसके बाद बंगाल की खाड़ी मेें फ़ानी तूफान 26 मई को बना था और यह अत्यंत भीषण चक्रवाती तूफान की क्षमता में पहुँच गया था। इसने तूफान की क्षमता में ही लैंडफॉल किया था। उसके बाद हाल ही में आया था तूफान बुलबुल। तूफान बुलबुल ने भी लैंडफॉल करते समय तक अपनी क्षमता बनाए रखी उसके बाद ही यह कमजोर हुआ। तूफान बुलबुल सुंदरबन डेल्टा से होकर बांग्लादेश गया था।
स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार यूं तोे भारत के दोनों ओर यानि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में तूफान के अत्यंत भीषण रूप लेने और सुपर साइक्लोन बनने की संभावना रहती है लेकिन वायुमंडलीय स्थितियों के कारण अरब सागर में बनने वाले तूफान कम तबाही मचाते हैं जबकि बंगाल की खाड़ी में बनने वाले तूफान अधिक त्रासदी का कारण बनते हैं।
Image credit: India Today
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