बीते मॉनसून में कम बारिश के बाद पोस्ट-मॉनसून यानि मॉनसून के पश्चात भी वर्षा में कमी रही और रही सही कसर पूरी कर दी शीत ऋतु में बारिश की कमी ने। शीत ऋतु में औसत से आधी से भी कम वर्षा रिकॉर्ड की गई। विभिन्न ऋतुओं में वर्षा के आंकड़ों को देखकर यह कहा जा सकता है कि समूचे भारत में इसने बारिश की कमी ने हैट्रिक लगाई है। इस लेख में हम इसे विस्तृत रूप से आपको बताने का प्रयत्न करेंगे।
समूचे भारत में वर्षा को मुख्यतः चार ऋतुओं में बांटा गया है, जिनके नाम और अवधि इस प्रकार हैं:
1- शीत ऋतु (जनवरी-फरवरी)
2- प्री-मॉनसून सीजन (मार्च-अप्रैल-मई)
3- मॉनसून सीजन (जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर)
4- पोस्ट-मॉनसून सीजन (अक्टूबर-नवम्बर-दिसम्बर)
इन सभी ऋतुओं में अलग-अलग मात्रा में वर्षा होती। देश की कुल वर्षा की 60 प्रतिशत बारिश मॉनसून अवधि में दर्ज की जाती है। इन ऋतुओं में दीर्घ अवधि औसत के मुताबिक देश में शीत ऋतु में 42 मिलीमीटर, प्री-मॉनसून सीजन में 131 मिलीमीटर, मॉनसून अवधि में 887 मिलीमीटर और मॉनसून के पश्चात यानि पोस्ट-मॉनसून अवधि में 122 मिलीमीटर बारिश होती है।
पूरे एक वर्ष की अवधि में बारिश के आंकड़ों में अलग-अलग वर्षों में कभी-कभी काफी अंतर देखने को मिलता है। एक वर्ष में हो सकता है कि कुल बारिश का आंकड़ा 1500 मिलीमीटर को पार कर जाए जबकि अगले वर्ष इसकी आधी बारिश भी हो सकती है। बारिश में कमी से देश के जल संसाधन पर व्यापक रूप में दबाव बढ़ जाता है। लगातार दो या दो से अधिक वर्षों में अगर कम बारिश होती है तो इससे भू-जल स्तर में गिरावट आती है और कुएं, नहरें, नदियां और जलाशय आदि सूखने लगते हैं। निरंतर पानी की कमी से मिट्टी में भी व्यापक कमी होती और पर्यावरण में भी शुष्कता बढ़ जाती है।
पिछले आंकड़े दिखाते हैं कि बारिश में कमी लगातार चारों ऋतुओं में नहीं रही। हालांकि अपवाद हर जगह होते हैं और वर्ष 2002 में सभी चारों ऋतुओं में बारिश में कमी देखी गई। वर्ष 2002 में शीत ऋतु में 9.5% कम, प्री-मॉनसून सीजन में 6.6% कम, मॉनसून अवधि में 21.6% कम और मॉनसून के पश्चात यानि पोस्ट-मॉनसून अवधि में 35.9% कम वर्षा दर्ज की गई थी।
वर्ष 2014 के बाद 2015 में लगातार 2 वर्षों के सूखे के चलते अधिकांश जल स्रोत सूख गए और सबसे बुरा प्रभाव मध्य भारत के भागों में देखा जा रहा है। देश के अधिकांश भागों की तरह पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और गंगा के मैदानी भागों में 2015 में मॉनसून का प्रदर्शन बहुत कमजोर रहा। उत्तर-पूर्वी मॉनसून अवधि में भी बारिश कम हुई और वर्ष 2016 में शीत ऋतु के दौरान भी मौसम ने कंजूसी की। पिछले 2 दशकों के आंकड़ों के अनुसार 3 ऋतुओं में बारिश का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है।
सीजनल बारिश में कमी की हैट्रिक
वर्ष 2015 के मॉनसून (जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर) अवधि में बारिश 14.3% कम हुई। मॉनसून के बाद यानि पोस्ट-मॉनसून सीजन (अक्टूबर-नवम्बर-दिसम्बर) में 21% कम वर्षा दर्ज की गई। आंकड़ों में देखें तो सबसे खराब स्थिति 2016 की शीत ऋतु में रही जब 57% कम वर्षा दर्ज की गई। इसी तरह के हालत 2014 में भी थे। मॉनसून अवधि में 12% कम, पोस्ट-मॉनसून सीजन में 30% कम और 2015 की शीत ऋतु में सामान्य से 8.5% कम वर्षा हुई।
हालांकि हम इस समय आशावान है कि इस बार प्री-मॉनसून अवधि में बारिश का प्रदर्शन बेहतर होगा, क्योंकि मार्च में देश के अधिकांश भागों में बारिश हुई है और आगे भी ऐसे ही अच्छी बारिश की उम्मीद है।
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