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[Hindi] मध्य प्रदेश में संभावित बारिश से सोयाबीन की फसल को नुकसान के आसार

September 23, 2016 5:19 PM |

Soybean Greenpeace 600वर्ष 2016 के मॉनसून में जहां देश के उत्तर और पूर्वी इलाके बारिश के मामले में पिछड़ रहे हैं वहीं मध्य भारत के कई भागों में सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की जा चुकी है। मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिस्सों में सामान्य से 20 प्रतिशत ज़्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है। पूर्वी मध्य प्रदेश में सामान्य से 16 फीसदी अधिक बारिश हुई है।

अगस्त और सितंबर के दौरान बंगाल की खाड़ी से उठने वाले एक के बाद एक कई मौसमी सिस्टमों ने मध्य प्रदेश को व्यापक रूप से प्रभावित किया और राज्य के ज्यादार हिस्सों में भारी बारिश के कई दौर देखने को मिले। इस समय भी मध्य प्रदेश के दक्षिण में यानि महाराष्ट्र और उसके आसपास के भागों से एक के बाद एक मौसमी सिस्टम निकल रहे हैं। इन सिस्टमों के चलते भी मध्य प्रदेश में रुक-रुक कर बारिश की गतिविधियां बनी हुई हैं। यह अलग बात है कि इस समय बारिश की तीव्रता बहुत अधिक नहीं है।

इस समय एक नया सिस्टम गहरे निम्न दबाव के रूप में आंध्र प्रदेश और उससे सटे तेलंगाना क्षेत्र पर विकसित हो गया है। यह सिस्टम पश्चिम में मराठवाड़ा की ओर बढ़ेगा। इसके चलते मध्य प्रदेश के दक्षिणी और पूर्वी भागों में अगले 48 घंटों के दौरान हल्की से मध्यम बारिश होने के आसार हैं।

मध्य प्रदेश के उत्तर और पश्चिमी भागों के ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, श्योपुर, नीमच और मंदसौर में मौसम शुष्क बना रहेगा। जबकि होशंगाबाद, सिवनी, जबलपुर, बेतुल और खंडवा में कम से कम अगले 2 दिनों तक अच्छी मॉनसून बौछारें गिर सकती हैं। राजधानी भोपाल और इंदौर में भी कुछ स्थानों पर इस दौरान अच्छी बारिश होने की संभावना है।

कुछ समय पहले तक जहां किसान बारिश के लिए लालायित रहते थे वहीं इस समय वह शुष्क मौसम के लिए प्रार्थना कर रहे हैं क्योंकि राज्य के अधिकांश हिस्सों में खरीफ फसलें परिपक्व अवस्था में पहुँचने को हैं और कटाई कहीं शुरू है तो कहीं जल्द ही शुरू हो सकती है। ऐसे में यह बारिश खरीफ फसल के लिए बेहद नुकसानदायक सिद्ध हो सकती है।

फसलों के लिहाज से समय के इस पड़ाव पर हल्की बारिश चल जाएगी लेकिन भारी बारिश फसलों के लिए व्यापक रूप से हानिकारक होगी, विशेषकर सोयाबीन के लिए। आमतौर पर सोयाबीन बीजों से 30 से 40 प्रतिशत तक तेल निकलता है लेकिन इस अवस्था में अगर भारी बारिश हो जाए तो फली को काफी नुकसान होता है जिससे तेल की मात्रा घटकर 20 प्रतिशत पर आ सकती है।

Image credit: Greenpeace.org

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