प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में पिछले सप्ताह भी बढ़ोत्तरी का रुझान रहा, जिससे एल नीनो के अस्तित्व में आने की संभावना और प्रबल हो गई है। इसके अलावा हवाओं में उतार-चढ़ाव और बढ़ती गर्मी भी अल नीनो के पक्ष में हैं। नीचे दिए गए टेबल में समुद्र की सतह पर हाल के दिनों दर्ज किए गए तापमान दिए गए हैं।
अल नीनो की घोषणा तब की जाती है जब ओषनिक नीनो इंडेक्स (ओ एन आई) लगातार क्रमागत 3 महीनों में 0.5 डिग्री सेल्सियस के बराबर या उससे ऊपर बना रहे। अब तक बीते चार चरणों में ओ एन आई इस स्तर से ऊपर बना रहा। इस बात की पूरी संभावना है कि पांचवें चरण में भी ओएनआई 0.5 डिग्री से ऊपर बना रहेगा। इसके साथ ही अल-नीनो की अस्तित्व में आने की संभावना कई गुना बढ़ गई है।
दुनिया भर के तमाम मॉडल संकेत कर रहे हैं कि अल-नीनो की संभाव्यता मार्च से मई के बीच में 80% रहेगी। उसके बाद अल-नीनो कमजोर होना शुरू करेगा, लेकिन यह स्थिति जून और जुलाई में आएगी, जो प्रमुख मॉनसून महीने हैं। यानि शुरुआती दो मॉनसून महीनों पर अल-नीनो के प्रभाव की व्यापक संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जून-जुलाई के बाद कमज़ोर होने के बावजूद इसकी प्रबलता 60% बनी रहेगी। यही नहीं इस पूरे साल अल-नीनो का अस्तित्व बना रहेगा और 50% से नीचे नहीं जाएगा।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार पहले अनुमान था कि एल नीनो स्प्रिंग सीजन तक उभर पर होगा, उसके बाद गर्मियां आते-आते कमजोर होने लगेगा। जबकि ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है। यही नहीं समुद्र की सतह से ऊपर भी तापमान व्यापक रूप में औसत से अधिक चल रहा है। इसमें जल्द कमी की कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है।
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गर्मी या गर्म ऊर्जा को अपने में समेटने में समुद्री क्षेत्र जमीनी क्षेत्र के मुक़ाबले ज़्यादा सक्षम होता है। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि मॉनसून के महीनों में भी तापमान निर्धारित सीमा से ऊपर ही बना रहेगा।
एल नीनो ऐसी मौसमी स्थिति है जो किसी तय रास्ते पर हर बार नहीं चलता है। यानि इसके बर्ताव में हर बार बदलाव देखने को मिल सकता है। लेकिन जब भी अल-नीनो अस्तित्व में होता है, पूरे सीज़न को 80% तक प्रभावित करता है और संभावना सामान्य से 80% कम बारिश की होती है। जबकि सूखे की संभावना 60% तक होती है।
Image credit: One India
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