महाराष्ट्र में मुख्य रूप से तीन ऐसे क्षेत्र हैं जो सूखे प्रभावित हैं। इनमें, मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तरी महाराष्ट्र के इलाके शामिल हैं। हर साल, यह क्षेत्र पानी की भारी कमी से जूझते हैं। इन तीनों क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संकट मराठवाड़ा में देखा जाता है, क्योंकि यह मरुस्थलीकरण के कगार पर है।
इस समस्या को नियंत्रण में लाने के लिए, महाराष्ट्र सरकार ने अगस्त में क्लाउड सीडिंग की योजना को मंजूरी दी है। इसके लिए सरकार ने 30 करोड़ की परियोजना को मंजूरी दी है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
आमतौर पर नमी से भरे बादल खुद ही बरस जाते हैं। जबकि कुछ बादल बरसते ही नहीं। लेकिन जब वे न बरस रहे हों, तो वैज्ञानिकों के पास ऐसी तकनीक है, जिससे वे बादल को बरसने पर मजबूर भी कर सकते हैं। इसे क्लाउड सीडिंग या आर्टिफिशल रेनिंग कहते हैं। इसमें हवाई जहाज की मदद से बादलों में नमी छोड़ी जाती है। 1983 में, तमिलनाडु सरकार द्वारा पहली बार क्लाउडसीडिंग का परीक्षण किया गया था।
कैसे कराते हैं बारिश
क्लाउड सीडिंग के लिए सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाईऑक्साइड) को रॉकेट या हवाई जहाज के ज़रिए बादलों पर छोड़ा जाता है। हवाई जहाज से सिल्वर आयोडाइड को बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है। विमान में सिल्वर आयोडाइड के दो बर्नर या जनरेटर लगे होते हैं, जिनमें सिल्वर आयोडाइड का घोल हाई प्रेशर पर भरा होता है। जहां बारिश करानी होती है, वहां पर हवाई जहाज हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव किया जाता है। यह सभी प्रक्रिया मौसम मौसम विशेषज्ञों के देखरेख में किया जाता है।
यह पहली क्लाउड-सीडिंग परियोजना नहीं है, जिसे राज्य सरकार ने शुरू किया है। इससे पहले भी 2015 में, अगस्त और नवंबर के बीच भाजपा सरकार ने 47 उड़ानों को क्लाउड सीडिंग के लिए भेजा था, जिनकी कीमत 27 करोड़ रुपये थी, जिसके परिणामस्वरूप 1,300 मिमी बारिश हुई। जिसके बाद यह परियोजना एक बड़ी सफलता के रूप में सामने आई। इस विचार को कर्नाटक ने भी अपनाया था और वहां भी परिणाम बहुत अच्छे थे।
महाराष्ट्र के तीन क्षेत्र जैसे मराठवाड़ा, मध्य महाराष्ट्र और विदर्भ पिछले कुछ सालों में सूखे से जूझते रहे हैं। स्काइमेट के द्वारा इस वर्ष भी इसी तरह की स्थिति का अनुमान लगाया जा रहा है। साल 2015 में, मराठवाड़ा में 40 प्रतिशत बारिश और मध्य महाराष्ट्र में 33 प्रतिशत बारिश दर्ज हुई थी। जो मानसून के मौसम के दौरान सामान्य से भी कम थी।
साल 2017 में, विदर्भ में 23 प्रतिशत बारिश हुई, जो सामान्य से कम थी। बारिश की यह कमी पिछले साल यानी साल 2018 में भी जारी रही, क्योंकि मराठवाड़ा में 22 प्रतिशत बारिश की कमी का सामना करना पड़ा, जबकि विदर्भ और मध्य महाराष्ट्र में 8 और 9 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज हुई थी।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि, 29 मई तक महाराष्ट्र में 3267 बांधों में भंडारण का स्तर 13 प्रतिशत से भी कम है। दूसरी ओर, कोंकण में पानी की मात्रा सबसे अधिक है। नागपुर और औरंगाबाद में तो केवल 8.69 और 2.84 प्रतिशत पानी है। तीस बांध तो ऐसे हैं जहां पानी है ही नहीं ।
मराठवाड़ा के लिए स्थिति और भी खराब है क्योंकि पिछले साल के मुकाबले इस साल यहां बहुत ही कम पानी संरक्षित है। पिछले साल यह आंकड़ा 23.41 प्रतिशत था। जबकि, इस साल यह घटकर केवल 3 प्रतिशत रह गया है।
राहत और पुनर्वास मंत्री चंद्रकांत पाटिल के मुताबिक, सरकार जून और जुलाई में मानसून की प्रगति पर विचार करेगी। यदि मॉनसूनी बारिश लोगों के पानी की जरूरतों को पूरा नहीं कर पायेगा, तो हम अगस्त के महीने में एक क्लाउड-सीडिंग परियोजना लाएंगे। इस परियोजना के तहत, सरकार राज्य प्राधिकरण बांधों के जलग्रहण क्षेत्रों में बारिश करने की कोशिश करेगी।
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