[Hindi] भारत में प्री-मॉनसून सीजन: जब रेगिस्तान से उड़ता है धूल का गुबार, पहाड़ों पर फटते हैं बादल; बिहार, झारखंड में गिरती बिजली हो जाती है जानलेवा

April 5, 2020 11:19 AM|

प्री-मॉनसून सीजन यूं तो भारत में मार्च से मई के बीच होता है। लेकिन अप्रैल और मई में यह गतिविधियां अपने चरम पर होती हैं। कुछ इलाकों में प्री-मॉनसून में मौसमी हलचल जानलेवा हो जाती है। इस दौरान होने वाली मौसमी गतिविधियों को प्री-मॉनसून गतिविधियों के तौर पर जाना जाता है।

प्री-मॉनसून की शुरुआत भारत में दक्षिणी क्षेत्रों से मार्च के आरंभ से होती है। जबकि उत्तरी इलाकों में मार्च के आखिर में या अप्रैल की शुरुआत में प्री-मॉनसून सीजन का आरंभ हो जाता है।

सबसे अधिक कहाँ होती है हलचलें

प्री-मॉनसून सीजन में देश के उत्तरी इलाकों से लेकर दक्षिण तटीय भागों तक तेज़ गर्जना, आंधी तूफान और अचानक बारिश तथा ओलावृष्टि की गतिविधियां देखने को मिलती हैं। प्री-मॉनसून सीजन में सबसे अधिक गतिविधियां पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में (35%) होती हैं। उसके बाद नंबर आता है उत्तरी राज्यों का (30%)। मध्य भारत और दक्षिण भारत के भागों में आमतौर पर प्री-मॉनसून हलचल कम होती है।

प्री-मॉनसून मौसम का उग्र रूप छोटा नागपुर पठार के बिहार और झारखंड जैसे क्षेत्रों में देखने को मिलता है। अप्रैल और मई में होने वाली प्री-मॉनसून की गतिविधियां बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में बादलों की तेज गड़गड़ाहट और बिजली कड़कने की घटनाएं होती हैं। यह गतिविधियां पूर्वी राज्यों में आमतौर पर दोपहर या शाम के समय होती हैं। यह स्थितियाँ जानलेवा भी हो जाती हैं।

पूर्वोत्तर राज्यों में प्री-मॉनसून सीजन में ऐसी मौसमी हलचलें ज्यादातर शाम या रात के समय होती हैं। देश के पूर्वी क्षेत्रों में होंने वाली यह घटनाएँ कल बैसाखी या नॉरवेस्टर के नाम से भी जानी जाती हैं।

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इन्हीं महीनों में पहाड़ों पर फटते हैं बादल

उत्तर भारत में मौसम में बदलाव मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ के कारण होता है। प्री-मॉनसून सीजन में देश के उत्तरी पर्वतीय राज्यों में बादल फटने जैसी घटनाएं देखने को मिलती हैं। देश के सबसे बड़े रेगिस्तानी क्षेत्र राजस्थान में प्री-मॉनसून अवधि में धूल भरी आंधी चलती है। तेज़ हवाओं से सामान्य जनजीवन प्रभावित होता है।

रेगिस्तानी रेत करती है जन-जीवन प्रभावित

रेगिस्तान से उड़ने वाली धूल राजस्थान को पार करते हुए उत्तर भारत के अन्य मैदानी राज्यों में भी पहुंचती है। कई बार यह धूल भरी आंधी हवाई उड़ानों के रास्ते में बाधा बन जाती है। यही नहीं यह धूल इतनी प्रभावी होती है कि धरती से गर्मी को ऊपर जाने में से रोकती है। जिससे जमीन की सतह ठंडी नहीं हो पाती है। रात के समय भी तापमान कम नहीं हो पता और कई इलाके भीषण लू की चपेट में आ जाते हैं।

मध्य और दक्षिण भारत में नहीं पड़ता बड़ा प्रभाव

मध्य भारत के भागों में प्री-मॉनसून सीजन में आमतौर पर बहुत कम मौसमी हलचल होती है। इस दौरान बहुत कम मौसमी सिस्टम मध्य भारत पर पहुंचते हैं। गुजरात में प्री-मॉनसून सीजन में बिल्कुल भी बारिश नहीं होती है। हालांकि महाराष्ट्र का कोंकण गोवा क्षेत्र मध्य भारत का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां मई महीने में वर्षा होती है।

दक्षिण भारत में दो वजहों से बारिश होती है। एक वजह यह है कि विपरीत दिशा की हवाएँ आपस में टकराती हैं तो दूसरी वजह है तेलंगाना से कर्नाटक या तमिलनाडु तक बनने वाली ट्रफ। लेकिन यह सिस्टम भी कुछ ही क्षेत्रों को प्रभावित कर पाते हैं।

Image credit:Accueweather

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