देश के अन्य भागों की तरह दिल्ली और आसपास के भागों में भी मौसम का रवैया बदल रहा है, जो जलवायु के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिहाज से चिंता का कारण है। दुनिया भर में पर्यावरणविद इस बात को उठाते रहे हैं कि अनियंत्रित मानवीय गतिविधियां भी मौसम के बदलाव के लिए जिम्मेदार हैं। दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों की शुरुआत से वातावरण स्वास्थ्य के लिहाज़ से संवेदनशील बन जाता है क्योंकि इस समय हवा में नमीं बढ़ जाती है जिससे प्रदूषण फैलाने वाले कण, धूल, गैसें, हानिकारक वीषाणु इत्यादि हवा की निचली सतह पर ही बने रहते हैं, और सांस के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं।
समाचार माध्यमों में प्रकाशित खबरों के मुताबिक दिल्ली में इस वर्ष दमा के मरीजों की संख्या में 20% का इजाफ़ा देखने को मिला है। दमा के अलावा साँस की दूसरी बीमारियों में भी अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हो रही है। खासतौर पर वृद्धों और बच्चों को साँस लेने में तकलीफ का सामना करना पड़ रहा है। बीते कुछ वर्षों से दिल्ली-एनसीआर में अक्टूबर के अंत में और नवंबर माह में इस समस्या में बेतहासा वृद्धि हुई है, जिसकी वजह है पंजाब और हरियाणा के खेतों में जलाए जाने वाले धान के पौधों का धुआँ। इन दोनों राज्यों में धान की कटाई-मड़ाई के बाद धान के पौधों के निपटान की पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया नहीं है।
किसान अपने खेतों को गेहूं की बुआई के लिए खाली करने के चलते खेतों में पड़े धान के पौधों को आग लगाकर जला देते हैं जिससे अगली बुआई का रास्ता साफ हो जाता है लेकिन उससे पर्यावरण को और लोगों के स्वास्थ्य को कितना नुकसान होता है किसानों को शायद इसका अंदाज़ा नहीं है।
धान के जलते पौधों से उठने वाला धुआँ दिल्ली और इसके आसपास के भागों को सबसे अधिक इसलिए प्रभावित करता है क्योंकि अक्टूबर और नवंबर के महीनों में हवा आमतौर पर उत्तर और उत्तर-पश्चिमी दिशा से चलती है, जो अपने साथ इन दोनों राज्यों से धूँए का प्रवाह दिल्ली तक ले आती है।
हालांकि स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार बीते 2-3 दिनों से दिल्ली और आसपास के भागों में हवा पूर्वी दिशा से आ रही है, जिससे पंजाब और हरियाणा के खेतों के धूँए के प्रवाह में कमी आई है। लेकिन हवा की गति बहुत कम है जिससे वातावरण में पहले से ही पहुँच चुका धुआँ हवा की निचली सतह में बना हुआ जिससे लोगों को साँस लेने में दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है और साँस संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं।
दिल्ली पहले से ही प्रदूषण के लिहाज़ से काफी संवेदनशील है। दिल्ली में आसपास के राज्यों से आने वाले वाहनों, आसपास के राज्यों के उद्योगों से निकलने वाला धुआँ और मानवीय गतिविधियों के चलते छिन्न-भिन्न हो चुकी राज्य की परिस्थितिकी से दिल्ली में पर्यावरण खराब हो गया है। स्थितियाँ यदि इसी तरह बनी रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब दुनिया में भारत की राजधानी को बीमारों के शहर के रूप में जाना जाएगा।
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