मॉनसूनी हवाएँ केरल में 1 जून को नहीं पहुंच सकीं लेकिन अंततः देश के दक्षिणी राज्य केरल की धरती पर इसने 5 जून को दस्तक दे ही दी। मॉनसून के देर से पहुँचने की वजह हम तलाशेंगे साथ ही ये स्पष्ट करना ज़रूरी है कि मॉनसून के 4 माह लंबे प्रदर्शन और इसके शुरू होने की तारीख के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है।
भारत में मॉनसून सामान्यतः 1 जून को शुरू होता है। लेकिन यह कई सालों के ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर मॉनसून शुरू होने की महज़ औसत तिथि है। मॉनसून शुरू होने की औसत तिथि और इसकी वास्तविक शुरुआत में जो अंतर है वो पूरी तरह सामान्य है। आप प्रत्येक वर्ष 1 जून को ही मॉनसून शुरू हो अपेक्षा नहीं कर सकते। सामान्य दिन से आगे पीछे मॉनसून का आना दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून का स्वभाव है।
उदाहरण के तौर पर 2014 में 6 जून को मॉनसून आया। वर्ष 2013 में 1 जून को जबकि 2012 में देश में मॉनसून 5 जून को शुरू हुआ। 2011 में 29 मई को और 2009 में 23 मई को मॉनसून ने दस्तक दी। यानि कि साल साल दर मॉनसून शुरू होने की वास्तविक तारीख अलग अलग रही। जब हम मॉनसून शुरू होने के बाद जून में कई सालों की बारिश के आंकड़े देखेंगे तो तस्वीर और साफ हो जाएगी।
बीते कुछ वर्षों में जून में दर्ज की गई बारिश के आंकड़े इस प्रकार हैं:
यह सही है कि मॉनसून शुरू होने के दिन से दक्षिण पश्चिम मॉनसून के आगमन के बारे में हमें एक अंदाज़ा लगता है, लेकिन दिन आगे-पीछे होने से यह कहना कि मॉनसून पहले आया इसलिए अच्छा होगा और बाद में आया इसलिए कम बारिश होगी ये कतई अतार्किक है। इसके बजाए मॉनसून के प्रदर्शन के लिए मॉनसूनी हवाओं का रुख और मौसम के अन्य जिम्मेदार पहलू अधिक महत्वपूर्ण है। देश के विभिन्न भागों में वर्षा का फैलाव, मॉनसून की आवृत्ति और जिन क्षेत्रों से यह गुजरता है वो अधिक महत्वपूर्ण है। कहने का तात्पर्य है कि अधिक और कम बारिश तथा मॉनसून के समग्र प्रदर्शन के पीछे इसके शुरू होने के दिन से कोई सीधा संबंध नहीं है बल्कि अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में बनने वाली मौसमी गतिविधियां मॉनसून के प्रदर्शन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।
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