कृषि, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और मॉनसून वर्षा का कृषि के लिए महत्व बेहद अधिक है। इसलिए इस समय आम आदमी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक सभी अच्छे मॉनसून की आकांक्षा कर रहे हैं। लेकिन इस बार भी मॉनसून किसी के लिए अनुकूल भूमिका में नहीं दिखाई दे रहा है।
अब तक ना तो आम आदमी ने मॉनसून का जादू देखा और ना ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके शासनकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मॉनसून वर्षा का सहयोग मिला। नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली उसके कुछ समय बाद ही शुरू हुए मॉनसून सीज़न में ऐसा लगता है जैसे जल देव ने अपनी कृपा रोक ली।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद वर्ष 2014 में मॉनसून बेहद कमजोर रहा और देश ने व्यापक सूखा झेला। वास्तव में बीते 5 वर्षों के बाद 2014 सबसे अधिक सूखा रहा और मॉनसून 12 प्रतिशत कम बारिश के साथ मॉनसून सम्पन्न हुआ। हालांकि उसके बाद 2015 में अच्छे मॉनसून की उम्मीद जगी लेकिन इस दूसरे साल भी El Niño प्रभावी हो गया था और श्री मोदी के सत्ता संभालने के बाद 86 प्रतिशत वर्षा के साथ व्यापक सूखे ने देश को दूसरा झटका दिया।
वर्ष 2016 जब शुरू हुआ तब फिर से अच्छे मॉनसून की आशा जगी क्योंकि La Niña प्रभावित हुआ और El Niño कमजोर हो रहा था। शुक्र है कि बीता वर्ष संतोषजनक रहा और अपेक्षा से कुछ कम 97 प्रतिशत वर्षा देकर मॉनसून सम्पन्न हुआ। हालांकि बारिश का वितरण प्रमुख कृषि क्षेत्रों में कम रहा जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई।
सच्चाई यह है कि जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभाली है तब से मॉनसून का खेल जारी है, जिससे ना सिर्फ आम आदमी प्रभावित हुआ है बल्कि मोदी की अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई पर ले जाने की महत्वाकांक्षा भी प्रभावित हो रही है।
अब 2017 के लिए मॉनसून का पूर्वानुमान जारी कर दिया गया है और स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुमानों के अनुसार इस वर्ष मॉनसून का प्रदर्शन सामान्य से कम रहने की संभावना है। अनुमानों के मुताबिक इस वर्ष 95 प्रतिशत वर्षा होने के आसार हैं। यानि इस बार फिर से मॉनसून धोखा देने वाला है और बीते वर्ष के मुक़ाबले कम वर्षा होगी। यह लगातार चौथा वर्ष है जब कमजोर मॉनसून के चलते प्रधानमंत्री मोदी की अर्थव्यवस्था को नया मुकाम देने की महत्वाकांक्षा धूमिल हो रही है और प्रकृति उनके इस सपनों के साथ खेल रही है।
Image credit: www.narendramodi.in
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