[Hindi] मॉनसून 2020 की राह में अल नीनो के बाधा बनने का ख़तरा नहीं, लेकिन क्या आईओडी इस बार भी करेगा चमत्कार

January 22, 2020 7:59 PM | Skymet Weather Team

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2020 अब बहुत दूर नहीं है। जल्द ही चार नहीनों के इस भारतीय मॉनसून वर्षा के मौसम की उलटी गिनती शुरू भी हो जाएगी। मॉनसून का पूर्वानुमान लगाना दुनिया भर के मौसम वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है।

मॉनसून प्रायः चौंका देता है और पूरे चार महीनों में यह कभी भी कोई भी करवट ले सकता है। वर्ष 2019 का दक्षिण-पश्चिम मॉनसून इस मामले में सबसे अच्छा उदाहरण हो सकता है, जिसके बारे में शुरुआती अनुमान था कि कमजोर रहेगा लेकिन यह सामान्य से अधिक बारिश के साथ विदा हुआ। यह बीते 25 वर्षों में सबसे बेहतर मॉनसून रहा।

आगामी मॉनसून के आगमन में बस महज़ 5 महीनों का समय शेष है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत ही अहम स्थान है और यह कृषि मॉनसून वर्षा पर बहुत हद तक निर्भर है। अगर चार महीनों का मॉनसून सीजन कमजोर रहता है तो पूरी अर्थव्यवस्था हिल जाती है। यही वजह है कि मॉनसून के पूर्वानुमान में मौसम विशेषज्ञों को अत्यधिक सतर्कता बरतनी पड़ती है।

English Version: El Nino may not play spoil sport for Southwest Monsoon 2020, but will IOD do wonders this year too

मॉनसून सामुद्रिक स्थितियों में बदलाव का कारण होता है इसलिए इसका पूर्वानुमान करते समय अनेकों सामुद्रिक स्थितियों को ध्यान में रखना होता है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है अल नीनो। जून से सितंबर के चार महीनों के इस मॉनसून सीज़न में जब भी अल नीनो अस्तित्व में होता है मॉनसून को कमजोर कर देता है और कम बारिश होती है। कई बार तो इसकी उपस्थिती मात्र से पूरा मॉनसून खराब हो जाता है।

वर्तमान समय में भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से कुछ ऊपर चल रहा है। पूर्वी प्रशांत से मध्य और पश्चिमी प्रशांत की तरफ इसमें वृद्धि का रुझान है। ईएनएसओ के 2020 की वसंत ऋतु में तटस्थ रहने की संभाव्यता 60% है। ग्रीष्म ऋतु में संभाव्यता 50% रहेगी।

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में जो संकेतक मिल रहे हैं, समुद्र की स्थिति का यही वास्तविक स्वरूप है। वर्तमान समय में सूरज पूरी तरह से दक्षिण में है। इसलिए समुद्र की सतह के गर्म होने में इसकी भूमिका नहीं है। मार्च में सूरज भूमध्य रेखा के पास आ जाएगा तब भूमध्य रेखा के पास तापमान में वृद्धि शुरू होगी। यह एक अहम पड़ाव है जहां से कुछ संकेत मिलने शुरू हो जाते हैं। हालांकि इन पर बहुत अधिक भरोसा नहीं किया जा सकता है क्योंकि सूरज की स्थिति में बदलाव के साथ इसमें फिर से बदलाव आ जाता है।

इस समय की स्थितियाँ देश के लिए बड़ी राहत भरी हैं क्योंकि आगामी मॉनसून पर अल नीनो का साया फिलहाल नहीं दिखाई दे रहा है। बीते वर्ष यानि 2019 में अल नीनो अस्तित्व में था। यह कमजोर हो रहा था लेकिन इसके चलते ना सिर्फ मॉनसून के आगमन में देरी हुई थी बल्कि शुरुआती महीने में मॉनसून का प्रदर्शन भी कमजोर रहा था। जून में 33% कम बारिश हुई थी, जो अकाल जैसी स्थिति का संकेत कर रहा था।

आईओडी (इंडियन ओषन डायपोल)

अल नीनो के अलावा दो अन्य महत्वपूर्ण सामुद्रिक स्थितियाँ हैं जो मॉनसून की चाल को प्रभावित करने का माद्दा रखती हैं। इसमें पहला है आईओडी (इंडियन ओषन डायपोल), यह सकारात्मक होने पर अच्छी मॉनसून वर्षा का कारण बनता है।

पिछले साल यह बाज़ी पलटने वाला साबित हुआ। आईओडी ने मॉनसून 2019 को पूरी तरह से बदलकर रख दिया। पिछले साल आईओडी बेहद प्रभावी रहा और अप्रैल से दिसम्बर तक यानि लंबे समय तक रहा। इस दौरान आईओ 0.4 डिग्री सेल्सियस की सीमा के ऊपर ही रहा और कुछ समय के लिए यह 2.2 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर भी पहुंचा था जो 1997 से सबसे ज़्यादा है।

मॉनसून 2019 में सामान्य से अधिक बारिश और हिन्द महासागर क्षेत्र में एक साल के इतिहास में 9 चक्रवाती तूफान के रिकॉर्ड के बाद आखिरकार आईओडी तटस्थ बना। 19 जनवरी तक के आंकड़ों के अनुसार आईओडी की वैल्यू 0.1 डिग्री सेल्सियस है।

आईओडी के ऐतिहासिक आंकड़ों के आधार पर इसका अनुपात सकारात्मक, नकारात्मक और तटस्थ क्रमशः 1:1:4 रहा है। वर्ष 1960 से 13 बार आईओडी सकारात्मक रहा है, 12 बार यह नकारात्मक रहा है जबकि 35 अवसरों पर यह तटस्थ रहा है।

दक्षिणी ग्रीष्म और वसंत के दौरान आईओडी में कोई बदलाव दिखाई नहीं देता है क्योंकि इस दौरान मॉनसून ट्रफ (ITCZ- Inter Tropical Convergence Zone) ट्रोपिकल हिन्द महासागर की ओर बढ़ती है।

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार आईओडी लगातार दो बार सकारात्मक या नकारात्मक प्रायः नहीं होता है। वर्ष 1982-83 में अपवाद दिखा था जब लगातार दूसरी बार आईओडी सकारात्मक रहा था। यह अलग बात है कि अल नीनो की उपस्थिती के कारण कहानी पलट गई थी। अल नीनो के अंदर आईओडी के प्रभाव को पूरी तरह से ख़त्म करने की क्षमता है।

वर्ष 1982 में अल नीनो बहुत प्रभावी था, जिसके प्राणिमस्वरूप 85% बारिश हुई। यानि उस साल देश ने अकाल जैसे हालात देखे। इसके अगले वर्ष 1983 में ENSO तटस्थ स्थिति में था और आईओडी सकारात्मक स्थिति में जिसके कारण 113% की अच्छी बारिश हुई।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर इस बार भी वर्ष 2019 की तरह ही सकारात्मक या प्रभावी आईओडी बन जाए। लेकिन इसकी साफ तस्वीर देखने के लिए हमें अप्रैल तक का इंतज़ार करना होगा जब आईटीसीज़ेड फिर से उत्तरी दिशा में जाना शुरू करेगा।

एमजेओ (माडन जूलियन ओशीलेशन)

एमजेओ भूमध्य रेखा के पास पूर्वी दिशा में बढ़ते बादलों और बारिश की पल्स को कहते हैं जो प्रति 30 या 60 दिनों के अंतराल पर किसी क्षेत्र विशेष में देखने को मिलता है। यह जब दूसरे या तीसरे चरण में यानि हिन्द महासागर में होता है तो भारतीय उप-महाद्वीप में बारिश बढ़ाता है। ऐसे में अगर इसे सकारात्मक आईओडी का साथ मिल जाए तो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के संदर्भ में यह कमाल कर सकता है।

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार एमजेओ भारतीय मॉनसून समेत विश्व भर के मॉनसून को प्रभावित करता है। भारत के पास इसके चलते चक्रवाती तूफान बनते हैं। लेकिन यहाँ यह स्पष्ट कर दें कि एमजेओ मॉनसून में सहायक की भूमिका ही निभाता है इसलिए हमें अभी प्रतीक्षा करनी होगी। मॉनसून सीज़न जैसे-जैसे नजदीक तस्वीर और साफ होती जाएगी।

Image credit: CriticBrain

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