चार महीनों का मॉनसून सीज़न सामान्य से अधिक वर्षा के साथ आज सम्पन्न हो गया। इस साल दीर्घावधि औसत वर्षा (एलपीए) की तुलना में 109% वर्षा दर्ज की गई। औसत वर्षा 880.6 मिमी के मुक़ाबले 957.6 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। अच्छी बारिश के चलते यह वर्ष 1994 के बाद दूसरा सबसे अच्छा मॉनसून रहा। मॉनसून 2019 में भी सामान्य से बेहतर बारिश हुई थी और एलपीए था 110%।
मॉनसून 2020 की खास बात यह भी रही कि इसने देश के लगभग 85% क्षेत्र में सामान्य या सामान्य से ज़्यादा बारिश दी। महज़ 15% क्षेत्र ऐसे रहे जहां पर मॉनसून कमजोर रहा और बारिश सामान्य से कम दर्ज की गई। इन 15% क्षेत्रों में उत्तर भारत के पर्वतीय राज्यों के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम और त्रिपुरा शामिल हैं। अधिक वर्षा वाले राज्यों की सूची में 4 सबसे ज़्यादा वर्षा वाले राज्य रहे सिक्किम, गुजरात, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, इनमें क्रमशः 60%, 58%, 46%, और 44% औसत से अधिक वर्षा दर्ज की गई।
English Version: Monsoon 2020 curtains drawn with 109% of LPA, 2nd consecutive Above Normal season
चार महीनों के मॉनसून सीज़न में अगस्त में सबसे ज़्यादा बारिश हुई और सामान्य से बेहतर के स्तर पर मॉनसून की विदाई में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। अगस्त में सामान्य से 27% ज़्यादा बारिश हुई जो बीते चार दशकों में सबसे ज़्यादा है। पहला महीना जून सामान्य से अधिक बारिश के साथ बीता था लेकिन इसकी अधिक बारिश को जुलाई खा गया क्योंकि जुलाई का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। मॉनसून सीज़न के सबसे अच्छे महीनों में एक जुलाई के खराब प्रदर्शन के बावजूद मॉनसून सीज़न का 109% के स्तर पर सम्पन्न होना भी इसकी एक उपलब्धि है।
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2020 की शुरुआत ठीक उसी दिन हुई जो दिन (1 जून) मॉनसून के केरल में आगमन के लिए निर्धारित है। उत्तर भारत में इसकी विदाई में 11 दिनों का विलंब हुआ लेकिन इसका लाभ उत्तर भारत को नहीं मिला बल्कि उत्तर भारत चारों प्रमुख क्षेत्रों में सबसे कम वर्षा क्षेत्र रहा, जहां सामान्य से 16% कम वर्षा हुई। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश को सबसे ज़्यादा निराशा हुई, जहां 37% कम वर्षा के साथ सूखे जैसे हालात रहे। सौराष्ट्र और कच्छ सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र रहा जहां सामान्य से 126% अधिक वर्षा देखने को मिली।
मॉनसून के प्रदर्शन पर विश्व के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों की स्थिति का भी असर देखने को मिलता है। इसमें यूरेशिया में सर्दियों में हुई बर्फबारी, हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली बर्फबारी, आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ, प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान समेत कई अन्य पहलू शामिल हैं। ऐसे में इन सभी के मॉनसून पर सीधे प्रभाव का आंकलन कर पाना कठिन है। इसके अलावा दुनिया में कई मापदंड ऐसे भी हो सकते हैं जिनके बारे में अभी भी मौसमी विज्ञानी अनभिज्ञ होंगे। हालांकि यह तो तय है कि सामुद्रिक मापदण्डों का इस पर सबसे अधिक असर पड़ता है और समुद्र को जमीनी भागों की तुलना में अधिक रहस्यमई माना जाता है।
दुनिया भर में वैज्ञानिकों के जारी गंभीर प्रयासों के बावजूद मॉनसून का पूर्वानुमान आगे भी चुनौतीपूर्ण बना रह सकता है। हालांकि अन्य मौसमी स्थितियों के साथ-साथ ज्ञात मापदण्डों के आधार पर मॉनसून का पूर्वानुमान एक नियमित प्रक्रिया बनी रहेगी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मॉनसून किसी भी महीने में, किसी भी क्षेत्र में चौंकाने वाले परिणाम दे सकता है।
Image Credit: ITimes
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