मॉनसून 2019 की रफ़्तार कम। इसका प्रदर्शन भी कमजोर रहने की आशंका। इसके चलते स्काइमेट ने देश के किसानों के लिए फसल सलाह जारी किया है। स्काइमेट का दक्षिण और मध्य भारत के किसानों को सुझाव है कि जून के दूसरे पखवाड़े तक खरीफ़ फसलों की बुआई टाल दें।
- महाराष्ट्र में सोयाबीन, तूर, मूंग, उड़द और कपास की बुआई 15 जून के आसपास करने का सुझाव
- मध्य प्रदेश में सोयाबीन, उड़द, तूर, मक्के की बुआई जून के तीसरे सप्ताह करने की सलाह
- आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अगर किसान मक्के, तूर और कपास की बुआई की तैयारी में हैं तो मॉनसून की स्थिति को देखते हुए इसे जून के दूसरे सप्ताह तक टाल दें
मौसम पूर्वानुमान और कृषि जोखिम (रिस्क) पर नज़र रखने वाली भारत की निजी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी स्काइमेट वेदर सर्विसेस- ने दक्षिण भारत (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तरी कर्नाटक) और मध्य भारत में मॉनसून के आने में देरी और मॉनसून के कमजोर रहने की आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए किसानों और भू-मालिकों के लिए अगले 10-15 दिनों के लिए बुआई के संबंध में एड्वाइज़री जारी की है। बुआई में देरी की इस चेतावनी के जारी करने का उद्देश्य किसानों का आर्थिक नुकसान कम करना है। मॉनसून के आने में देरी और अच्छी बारिश ना होने की स्थिति में फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित होती है।
केरल में मॉनसून सामान्यतः 1 जून को आता है। लेकिन इस बार मॉनसून के आगमन में देरी हो रही है। इससे पहले स्काइमेट ने 14 मई को तत्कालिक सामुद्रिक स्थितियों, हवा की दिशा, हवा की रफ़्तार और बादलों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने प्राथमिक पूर्वानुमान में 4 जून (एरर मार्जिन +/-2 दिन) को केरल में मॉनसून के आगमन का अनुमान लगाया था। लेकिन स्थितियाँ बदली हैं और अब स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों का अनुमान है कि 7 जून को (एरर मार्जिन +/-2 दिन) दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में दस्तक दे सकता है।
स्काइमेट वेदर के संस्थापक एवं मैनेजिंग डायरेक्टर- जतिन सिंह के मुताबिक “भारत में आधे से अधिक अनाज का उत्पादन खरीफ़ सीजन में होता है। जिससे खरीफ़ सीज़न देश के अधिकांश राज्यों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के लिए खरीफ़ में सबसे ज़्यादा खेती होती है। राज्य में सोयाबीन, तूर, मूंग, उड़द, और कपास की बड़े पैमाने पर खेती होती है। इनमें से तूर और मूंग की बुआई जून के शुरुआती दिनों में की जाती है। राज्य के कुछ भागों में कपास की बुआई भी जून के शुरुआती हफ्तों में की जाती है। लेकिन मॉनसून के आने में देरी की संभावनाओं को देखते हुए स्काइमेट ने एड्वाइज़री जारी कर किसानों को सुझाव दिया है कि जून के दूसरे पखवाड़े तक बुआई रोक दें। राज्य के जलाशयों में पानी की उपलब्धता महज़ 8% है जो निश्चित रूप से खेती की जरूरतों को पूरा कर सकने के असक्षम है।
“तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी कमोबेस ऐसी ही स्थिति है। तूर और कपास की खेती करने वाले किसनों को सुझाव है कि इन फसलों की बुआई जून के दूसरे सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दें। जलाशयों की स्थिति का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आंध्र प्रदेश में जलाशयों में कुल क्षमता का 5% जबकि तेलंगाना में 10% जल उपलब्ध है।
मध्य भारत में मध्य प्रदेश प्रमुख कृषि राज्यों में है जहां खरीफ़ सीज़न में सोयाबीन, उड़द, तूर, मक्के की खेती होती है। इन फसलों को पानी की काफी ज़रूरत होती और यह मॉनसून वर्षा पर आश्रित होती हैं। लेकिन इस बार मॉनसून की स्थिति को देखते हुए खरीफ़ फसलों की बुआई जून के तीसरे हफ्ते तक टालने का सुझाव है। अगर किसान कम अवधि वाले सोयाबीन की बुआई करना चाहते हैं तो इसकी अगड़ी किस्में चुनें।
‘स्काइमेट’ भारत में मौसम पूर्वानुमान और कृषि जोखिम समाधान के क्षेत्र में काम करने वाली निजी क्षेत्र की अग्रणी कंपनी है। स्काइमेट के पास कृषि यानि फसलों पर बदलती जलवायु के जोखिम का आंकलन करने, इसका पूर्वानुमान करने और जोखिम को कम करने का व्यापक अनुभव है।
स्काइमेट वेदर कई राज्य सरकारों के साथ और कृषि तथा फसल बीमा एवं कृषि तकनीकि के क्षेत्र से जुड़ी एजेंसियों के के साथ काम कर रहा है। बीते 15 वर्षों से स्काइमेट मीडिया संस्थानों के अलावा फसल बीमा कंपनियों और सरकार की विभिन्न एजेंसियों को मौसम से जुड़ी सेवाएँ उपलब्ध करता आ रहा है।
गुजरात सरकार, महाराष्ट्र सरकार, एनएसडीएमए, एसबीआई, यूएसएआईडी, रिलायंस इन्फ्रा, विश्व बैंक, एचडीएफ़सी एर्गो, भारतीय कृषि बीमा निगम (एआईसीआईएल), आईसीआईसीआई लोमबार्ड, द हिंदुस्तान टाइम्स, द हिन्दू, और द टेलीग्राफ स्काइमेट के प्रमुख क्लाइंट्स में से एक है। स्काइमेट के साझेदारों में शामिल हैं कृषि-तकनीकी के क्षेत्र निवेश करने वाली कंपनी ओम्निवोर और इंश्यूरेसिलिएन्स इनवेस्टमेंट फंड तथा डीएमजी::इन्फोर्मेशन्स।
Image credit: The Hindu
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