पाकिस्तान और ईरान से हुए टिड्डियों के हमले ने भारत को भयभीत कर दिया है। प्रभावित राज्यों में किसानों और आम लोगों के साथ-साथ राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के भी हाथ पाँव फूलने लगे हैं।
हालांकि भारत में टिड्डियों का हमला कोई नई बात नहीं है। हर साल आमतौर पर राजस्थान, गुजरात के कुछ इलाकों और सीमावर्ती पंजाब के क्षेत्रों में टिड्डियों का हमला देखने को मिलता है। इन भागों में हर साल फसलें भी तबाह होती हैं। लेकिन साल 2020 का हमला हर साल होने वाले हमले से अलग है। यह 27 वर्षों बाद इतना बड़ा हमला है।
टिड्डियों का यह दल ईरान और पाकिस्तान से आया है जो अरबों-खरबों की संख्या में हैं। यह हवाओं के साथ चलते हुए राजस्थान से आगे बढ़कर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के भी कुछ भागों में पहुंच चुके हैं। इस समय राहत की बात यह है कि खेतों में ज्यादातर इलाकों में फसलें नहीं है जिससे अभी बड़े नुकसान की आशंका फिलहाल नहीं है।
लेकिन जहां पर भी फसलें खड़ी हैं अगर वहां से टिड्डियों का यह दल गुजरेगा तो उसे साफ करता हुआ जाएगा क्योंकि यह हरियाली के बड़े दुश्मन होते हैं। हरियाली ही इनका भोजन है। इनसे इंसान और मवेशियों को कोई खतरा नहीं है लेकिन फसलें तबाह करने की क्षमता इनकी जगजाहिर है।
दुनिया 60 देश होते हैं प्रभावित
आंकड़ों के मुताबिक इस समय दुनिया भर में 60 से अधिक देश टिड्डियों से प्रभावित होते हैं। पूर्वी अफ्रीकी देश मुख्य तौर पर टिड्डियों की चपेट में आते हैं। भारत में टिड्डियों का हमला आमतौर पर ईरान और पाकिस्तान की तरफ से होता। यह हमला तब होता जब इन्हें अनुकूल हवा मिलती है। पाकिस्तान और ईरान में आमतौर पर अक्टूबर और मार्च महीनों में इनका प्रजनन होता है। एक टिड्डी की उम्र 3 महीने होती है और 3 महीनों की उम्र में एक मादा टिड्डी दो से तीन बार अंडे देती है। एक बार में 100 अंडे देती है।
3 महीनों में 300 गुना तक बढ़ सकती है इनकी संख्या
यह कह सकते हैं कि एक टिड्डी से 300 टिड्डियों का समूह बन सकता है। इस तरह से जब वह मल्टीप्लिकेशन होता है यानी गुणांक होता है तो स्थिति भयावह हो जाती है और यही स्थिति में नजर आ रही है। भारत में इस बार टिड्डियों के बड़े हमले के पीछे कोरोना वायरस को जिम्मेदार माना जा रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान और ईरान के जिन क्षेत्रों में टिड्डियों की ब्रीडिंग होती है वहां पर दवाओं का छिड़काव किया जाता है जिससे कुछ हद तक इनकी संख्या वृद्धि को रोका जाता है।
इस बार कोरोना वायरस के कारण ईरान और पाकिस्तान में भी लॉक डाउन चल रहा है। ऐसे में दवाओं का छिड़काव नहीं हो सका और परिणाम भारत को भी भोगना पड़ रहा है। टिड्डियों का समूह भारत में कुछ समय के लिए ठहरेगा। जून से भारत में मॉनसून वर्षा शुरू होने जा रही है। बारिश का मौसम टिड्डियों के प्रजनन के लिए अनुकूल होगा और अगर प्रजनन की प्रक्रिया हो गई तो जो संख्या अभी हम आप अनुभव कर रहे हैं उसमें 400 गुना तक की वृद्धि हो सकती है। ऐसे में सितंबर-अक्टूबर और नवंबर में कटने के लिए तैयार खरीफ फसल को यह तबाह कर सकते हैं, जिससे भारत की पूरी खाद्य सुरक्षा पर संकट आ सकता है।
भारत के कई राज्यों में खतरे के बादल
आपको यह भी बता दें कि टिड्डियों का झुंड हवाओं के साथ चलता है। हवाएं जिस दिशा में जाती हैं यह भी उधर ही जाता है और 1 दिन में लगभग सौ से डेढ़ सौ किलोमीटर की यात्रा करते हैं। 1 वर्ग किलोमीटर में इनकी संख्या 4 से 8 करोड़ के आसपास होती है, जो 1 वर्ग किलोमीटर में लगभग 35000 लोगों द्वारा खाये जाने वाले खाने जितना चट कर सकती हैं। अनुमान है कि राजस्थान के अलावा गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखंड, ओडिशा भी प्रभावित होंगे। साथ ही साथ दक्षिण के कुछ राज्यों में भी जब हवाएं इन्हें लेकर पहुँचेंगी तो वहां भी यह नुकसान का कारण बन सकते हैं। इसमें कर्नाटक के उत्तरी इलाके तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के इलाके शामिल हैं। इसे बेहद गंभीरता से लेने की जरूरत है और सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।
Image credit: The Hindu
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