[Hindi] ला नीना प्रशांत महासागर लगातार रखेगा ठंडा, वसंत ऋतु के दौरान यह हो सकता है तटस्थ

January 23, 2021 11:30 AM | Skymet Weather Team

प्रशांत महासागर में इस समय ला नीना की स्थिति है और आगे भी इसके जारी रहने की संभावना है। भूमध्य रेखा में समुद्र की सतह का तापमान पश्चिमी मध्य प्रशांत की तुलना में पूर्वी मध्य प्रशांत महासागर में कम है। वर्तमान स्थितियों के अनुसार उत्तरी गोलार्ध पर 2020-21 की सर्दियों के दौरान ला नीना बना रहेगा, विशेष रूप से जनवरी से मार्च के बीच। बसंत ऋतु में, यानी सर्दियों के बाद इसके तटस्थ स्थिति में आने की 55% संभावना है और यह संभाव्यता अप्रैल से जून के बीच और बढ़ जाएगी।

अल नीनो और ला नीना की प्रशांत महासागर में स्थिति समूचे विश्व के मौसम को प्रभावित करती है। इन स्थितियों के चलते जहां कुछ इलाकों में अकाल पड़ता है वहीं कुछ हिस्सों में बाढ़ की विभीषिका आती है। ला नीना इस समय चरम पर है और यह मई 2021 में तटस्थ स्थिति में आ जाएगा। समुद्र की सतह का तापमान ला नीना के अनुकूल है और इसी वजह से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कमजोर होने के बाद भी ला नीना का प्रभाव बना रहेगा।

इस समय ला नीना की स्थिति 100% है जो फरवरी के बाद से उतार की तरफ होगा यानी ला नीना की स्थिति कमजोर होने लगेगी। दूसरी ओर अल नीनो की स्थिति फिलहाल समूचे प्रशांत महासागर पर नहीं है, कम से कम मई-जून तक। उसके बाद अल नीनो की स्थिति कुछ नजर आएगी हालांकि मॉनसून 2021 के दौरान इसके प्रभाग की महज 20% संभावना है। इसी कारण लाल मीना के कमजोर होने के बाद इसके जून तक फिर से प्रभावी होने की संभावना है इस रुझान को और स्पष्ट रूप से समझने के लिए फरवरी 2021 में इसकी संभावित अतिथियों का पुनः आकलन करने की आवश्यकता होगी।

दूसरी तरफ समूचे प्रशांत महासागर में नीनो संकेतक लगातार नकारात्मक स्थिति में रहेंगे। प्रशांत महासागर का वह क्षेत्र जिसे नीनो 3.4 कहा जाता है और जो अल नीनो या ला नीना के अस्तित्व संकेतक है वह औसत से 1 डिग्री नीचे बना रहेगा। इसमें उतार-चढ़ाव आमतौर पर धीरे-धीरे होता है।

इस बीच हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान, दक्षिणी गोलार्ध में समुद्र की सतह के तापमान की तुलना में ज्यादा है। अगर 2 सप्ताह पहले के तापमान से इसकी तुलना करें तो इसमें हाल के समय में कुछ वृद्धि हुई है।

इंडियन ओषन डायपोल

भारत के मॉनसून को प्रभावित करने वाला तीसरा महत्वपूर्ण फैक्टर होता है इंडियन ओषन डायपोल यानी आईओडी लेकिन इसके बारे में अभी से अनुमान लगाना और यह पता कर पाना कि मॉनसून 2021 पर इसका किस तरह से प्रभाव रहेगा, जल्दबाजी होगी। आईओडी आमतौर पर दिसंबर और अप्रैल के बीच में बमुश्किल ही अस्तित्व में आता है। मॉनसून ट्रफ हिंद महासागर के दक्षिण में रहती है, इसलिए ऐसा होता है। 17 जनवरी को रिकॉर्ड की गई आईओडी की ताजा स्थिति के अनुसार यह -0.4 डिग्री सेल्सियस है।

भारतीय मॉनसून प्रशांत महासागर के गर्म होने या ठंडे होने से सीधे तौर पर संबंधित है। इसके गर्म होने के कारण अल नीनो अस्तित्व में आ जाता है, जिससे मॉनसून प्रभावित होता है और बारिश कम होती है। दूसरी तरफ इसके ठंडा रहने से मॉनसून को मजबूती मिलती है और बारिश ज्यादा दर्ज की जाती है, बाढ़ की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। मॉनसून का मौसम शुरू होने में अभी लंबा वक्त बाकी है और इस दौरान समुद्र की सतह के तापमान में उतार-चढ़ाव दिखाई देते रहेंगे। हालांकि जल्द ही तापमान में धीरे-धीरे ठहराव आने लगेगा। मई के बाद आईओडी की स्थिति से मॉनसून पर इसके प्रभाव के बारे में तस्वीर और अधिक साफ होने लगती है।

Image Credit: The Indian Express

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