पूर्वी प्रशांत महासागर लगातार तेजी से ठंडा हो रहा है। यही कारण है कि नीनो इंडेक्स लगातार गिरते हुए सामान्य से 1.5 डिग्री सेल्सियस नीचे पहुंच गया है। इससे पहले 2020 में मई के मध्य से पूर्वी-मध्य और पूर्वी प्रशांत में तापमान में नकारात्मक स्थिति शुरू हुई थी। उसके बाद से नीनो संकेतक निर्धारित सीमा के आसपास बना हुआ था। लेकिन अक्टूबर के बाद से इसमें फिर से गिरावट शुरू हुई। पिछले दो हफ्तों में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से नीचे उस स्तर पर पहुंच गया जहां इससे पहले वर्ष 2000 में पहुंचा था।
नीनो 3.4 -0.5 डिग्री के स्तर पर अगस्त 2020 में पहुंचा था। उसके बाद से लगातार उभार पर है। मॉडल संकेत कर रहे हैं कि तापमान का यही स्तर इस साल के आखिर तक बना रहेगा। उसके बाद इसमें कुछ तब्दीली देखने को मिलेगी। इससे पहले 2016 में भी ला नीना की स्थिति बनी थी तब तापमान का सबसे कम स्तर -0.8 डिग्री दर्ज किया गया था।
वर्ष 1988 और वर्ष 2010 सशक्त ला नीना वर्ष थे, जब 1988 में सामान्य से 1.8 डिग्री कम और 2010 में सामान्य से 1.7 डिग्री सेल्सियस कम तापमान रिकॉर्ड किया गया था।
ला नीना का संबंध उत्तर-पूर्वी मॉनसून से नकारात्मक है। जब भी ला नीना अधिक प्रभावी होता है तब दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत पर आने वाले उत्तर-पूर्वी मॉनसून पर नकारात्मक असर देखने को मिलता है। साथ ही उत्तर भारत में सर्दियां जबर्दस्त होती हैं। सर्दियों का लंबा समय चलता है और सर्दी में उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में होने वाली बारिश तथा पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी पर इसका प्रभाव देखने को मिलता है, यानी कमी आती।
इस साल अक्टूबर में देश के कई इलाकों में काफी अच्छी वर्षा रिकॉर्ड की गई थी लेकिन जो बारिश सामान्य से ऊपर थी उसमें अब कमी आनी शुरू हो गई है। 1 अक्टूबर से लेकर 5 नवंबर तक के जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनके अनुसार देश भर में बारिश का आंकड़ा सामान्य से 1% नीचे पहुंच गया है। उत्तर भारत में जबरदस्त कमी देखने को मिली है। इस दौरान उत्तर भारत के राज्यों में सामान्य से 92% कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है।
उत्तर भारत के भागों में तापमान सामान्य से नीचे रिकॉर्ड किए जा रहे हैं। यही कारण है कि कुछ इलाकों में समय से पहले शीतलहर जैसी स्थिति शुरू हो गई है। आगामी 10 दिनों तक ना तो उत्तर भारत में और ना ही दक्षिण भारत में व्यापक वर्षा की संभावना है। ला नीना के प्रभाव से आने वाले दिनों में यह स्थितियां और बदतर होंगी। यानी बारिश में इसी तरह की कमी रहेगी। सर्दी इसी तरह से बढ़ेगी। जिससे यह और स्पष्ट हो जाएगा कि ला नीना अस्तित्व में है।
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