प्रशांत महासागर में ला नीना की स्थिति बनी हुई है। अनुमान है कि उत्तरी गोलार्ध में सर्दियों तक यह अस्तित्व में रहेगा। इसकी संभाव्यता 75% है। ला नीना पर निगरानी तब शुरू की जाती है जब ला नीना या अल नीनो के विकसित होने की संभावना होती है और स्थितियां अनुकूल होती हैं। अनुकूल स्थितियों के बीच ला नीना पर निगरानी जुलाई, 2020 में शुरू की गई और अभी जारी है।
प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य भागों में पूरे वर्ष भर नीनो संकेतकों के मापने की प्रक्रिया जारी रहती है। ट्रॉपिकल ओशन ग्लोबल एटमॉस्फेयर (टीओजीए) के अंतर्गत प्रशांत महासागर में 7 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 7 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर संकेतकों को मापने के यंत्र स्थापित किए गए हैं। इन संकेतों से मुख्यतः समुद्र की सतह का तापमान मापा जाता है, जिसे सेटेलाइट से प्राप्त होने वाले आंकड़ों से मिलाया जाता है। तापमान मुख्यतः नीनो 3.4 क्षेत्र में मापा जाता है, जो एलनीनो या ला नीना की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है। प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य भागों में मई, 2020 की शुरुआत से ही समुद्र की सतह का तापमान औसत से नीचे बना हुआ है।
ला नीना या एल नीनो की घोषणा के लिए नीनो 3.4 क्षेत्र में लगातार तीन-तीन महीनों के 5 चरणों का विश्लेषण किया जाता है। जब समुद्र की सतह का तापमान औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर बना रहता है तब एल नीनो की स्थिति बनती है और जब यह औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस नीचे बना रहता है तब ला नीना की स्थिति बनती है। इसे ओषनिक नीनो इंडेक्स यानी ओएनआई कहते हैं। उल्लेखनीय है कि यह तापमान जब लगातार 5 अनुक्रमिक महीनों मे दर्ज किया जाता है तब एल नीनो या ला नीना की घोषणा की जाती है। वर्तमान मौसम में यह पहली बार है जब समुद्र की सतह का औसत तापमान निर्धारित सीमा से 0.5 डिग्री नीचे लगातार तीन महीनों जुलाई-अगस्त और सितंबर में दर्ज किया गया।
एल नीनो या ला नीना का दक्षिण भारत में आने वाले उत्तर-पूर्वी मानसून और उत्तर भारत में सर्दियों की बारिश से पारस्परिक संबंध है। हालांकि इन दोनों स्थितियों में एल नीनो ज्यादा प्रभावकारी भूमिका में होता है जबकि ला नीना का प्रभाव इन दोनों मौसमी स्थितियों बहुत व्यापक बदलाव नहीं लाता है। इसलिए वर्तमान समय में भले ला नीना के उभरने के संकेत मिल रहे हैं लेकिन उत्तर पूर्वी मॉनसून और उत्तर भारत में सर्दियों की बारिश पर इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा, ऐसी आशंका फिलहाल कम है।
उत्तर-पूर्वी मॉनसून और सर्दियों की बारिश पर ला नीना के संभावित प्रभाव:
- अक्टूबर-नवंबर दिसंबर में रहने वाले उत्तर-पूर्वी मॉनसून में बारिश का वितरण प्रभावित हो सकता है।
- दक्षिण भारत के सभी क्षेत्रों में सामान्य के आसपास ही वर्षा होती है।
- दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी तटवर्ती इलाकों में मॉनसून कमजोर हो सकता है।
- उत्तर-पूर्वी मॉनसून के आगमन में देरी हो सकती है।
- उत्तर भारत में सर्दियों की बारिश सामान्य से कम रह सकती है।
- पश्चिमी हिमालयी राज्यों में सर्दी के मौसम में बर्फबारी में कमी आ सकती है।
- मैदानी इलाकों में सर्दी के दिनों में तापमान सामान्य से नीचे रिकॉर्ड किए जा सकते हैं।
- उत्तर भारत के इलाकों में सर्दी का मौसम लंबे समय तक चल सकता है।
उत्तर पूर्वी मॉनसून की बारिश और सर्दियों के मौसम में उत्तर भारत में होने वाली बारिश पर यह तो रही ला नीना के संभावित प्रभाव की बात। लेकिन कई स्थानीय पहलू ऐसे भी होते हैं जो इन प्रभावों को कम कर सकते हैं। इनमें जल क्षेत्र, वन क्षेत्र, गर्म क्षेत्र और ठंडे क्षेत्र मौसमी संभावनाओं पर अपना प्रभाव दिखा सकते हैं।
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