भारत में दो बार मॉनसून आते हैं। इसमें एक दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून है तो दूसरा उत्तर-पूर्व से आने वाला मॉनसून है। इसमें मुख्यतः देश भर में बारिश देता है दक्षिण-पश्चिम मॉनसून। जून से सितंबर के बीच चार महीनों तक चलने वाला दक्षिण-पश्चिम मॉनसून हाल ही में विदा हुआ है। अब इंतज़ार उत्तर-पूर्वी मॉनसून का हो रहा है।
अक्टूबर से दिसम्बर के बीच सक्रिय रहने वाले उत्तर-पूर्वी मॉनसून से मुख्यतः दक्षिण भारत में बारिश होती है। इसमें केरल, तमिलनाडु, दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक, रायलसीमा और तटीय आंध्र प्रदेश में वर्षा देखने को मिलती है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा देखने में नहीं आया है कि दोनों मॉनसून एक साथ सक्रिय हों। जब तक दक्षिण-पश्चिम मॉनसून समूचे भारत से विदा नहीं हो जाता तब तक उत्तर-पूर्वी मॉनसून का आगाज़ नहीं होता है। स्काइमेट के अनुसार जब दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी 15°N पर पहुँच जाती है तब माना जाता है कि मॉनसून की वापसी की कहानी पूरी हो गई है।
इसके अलावा जब हवा का रुख बदलकर पूर्वी या उत्तर-पूर्वी हो जाता और तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश में बारिश की तीव्रता बढ़ने लगती है तब उत्तर-पूर्वी मॉनसून का आगमन माना जाता है। धीरे-धीरे केरल और कर्नाटक में बारिश बढ़ती है। हालांकि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून जैसी कोई तय समय सीमा उत्तर-पूर्वी मॉनसून के लिए नहीं है। उत्तर-पूर्वी मॉनसून प्रभावित होने वाले भागों प्रायः एक साथ 20 अक्टूबर के आसपास आता है। लेकिन इससे 5 दिन पहले या बाद में आने की भी संभावना रहती है। इसके आने की निर्धारित तिथि भले नहीं है लेकिन विदाई 31 दिसम्बर को हो जाती है।
उत्तर पूर्वी मॉनसून सीजन में 332 मिलीमीटर बारिश होती है। जबकि दक्षिण-पूर्वी मॉनसून देश को 887 मिलिमीटर वर्षा देता है। स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार अल नीनो से दोनों मॉनसून प्रभावित होते हैं। अल नीनो के चलते दक्षिण-पश्चिम मॉनसून खराब हो सकता है और देश को अकाल का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन उत्तर-पूर्वी मॉनसून अल नीनो के होने की स्थिति में अच्छी बारिश देता है। इस बार उत्तर-पूर्वी मॉनसून के सामान्य रहने की संभावना है।
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