काल बैसाखी मौसम की उस स्थिति को कहा जाता है जब मौसम कुछ समय के लिए काल बन जाता है। काल बैसाखी से मुख्यतः भारत और बांग्लादेश के इलाके प्रभावित होते हैं। भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों में जब मौसम कहर बनकर टूट पड़ता है तब उस स्थिति को काल बैसाखी कहा जाता है।
जब हवाओं की रफ्तार हरिकेन यानी भीषण तूफान की शक्ल ले लेती है तब मौसम की उस स्थिति को भारत और बांग्लादेश में काल बैसाखी कहा जाता है। ऐसी घटनाएं तब होती हैं जब हवाओं में नमी बढ़ जाती है और तापमान भी बढ़ रहा होता है। इससे कन्वेक्टिव बादल बनते हैं और देखते देखते ही यह टोरनैडो की शक्ल ले लेते हैं।
टोरनैडो का ट्रैलर है काल बैसाखी
बांग्लादेश के दौलतपुर-सुरिया में 26 अप्रैल 1989 में आए टोरनैडो को याद कर सकते हैं। ऐसी घटनाएं आमतौर पर सूर्यास्त के बाद होती हैं, जब दक्षिण-पश्चिमी दिशा से आसमान में घने बादल आने लगते हैं और भीषण रफ्तार से हवाएं चलने लगती हैं। अचानक बारिश इस कदर बढ़ जाती है जैसे लगता है कि बादल फट पड़े हैं। कुछ इलाकों में बड़े-बड़े ओले गिरते हैं और वज्रपात भी होता है।
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हालांकि ऐसी स्थितियां थोड़े समय के लिए रहती हैं लेकिन इसमें इतनी क्षमता होती है कि प्रभावित क्षेत्र में बड़े पैमाने पर जान और माल की क्षति पहुंचा सकती हैं। काल बैसाखी या नोर्वेस्टर की घटना मार्च से लेकर जून में पूर्वोत्तर भारत में मॉनसून के आगमन तक देखने को मिलती है। हालांकि अप्रैल और मई में ऐसी घटनाएं ज्यादा होती हैं।
भारत के यह राज्य होते हैं प्रभावित
काल बैसाखी से मुख्य रूप से भारत में ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, असम सहित पूर्वोत्तर भारत के राज्यों के साथ-साथ बांग्लादेश के कई राज्य प्रभावित होते हैं। ओडिशा और पश्चिम बंगाल में इसे कालबैसाखी कहते हैं जबकि असम में बोरदोईसिला कहते हैं।
काल बैसाखी में मौसम बिगड़ने पर हवाओं की रफ्तार इतनी खतरनाक स्पीड तक पहुंच जाती है कि यह जान और माल के लिए व्यापक रूप में चुनौती पैदा कर देती है। इस दौरान बारिश का आगाज पश्चिमी भागों से होता है उसके बाद पूर्वी दिशा की तरफ बारिश बढ़ती जाती है।
चाय और चावल की फसल को होता है फायदा
प्री-मॉनसून सीजन में असम, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के साथ-साथ बांग्लादेश के कई इलाकों में चाय चावल और जूट जैसी फसलों के लिए बारिश से फायदा भी होता है। काल बैसाखी का मतलब यह है कि वैशाख में आने वाली आपदा। यह आपदा बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल समेत पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में कई बार व्यापक रूप में जनहानि का भी कारण बनती है। हर साल इस हिंसक मौसम की वजह से कई लोगों की जान चली जाती है। बिहार में पिछले 48 घंटों में लगभग 14 लोगों की मौत हुई है।
बांग्लादेश में 4 अप्रैल 2015 को एक ऐसा तबाही का मंजर देखने को मिला था जब ढाका समेत उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हवा की रफ्तार इतनी तेज थी कि सैकड़ों पेड़ जड़ सहित उखड़ गए थे। कच्चे और कमजोर मकान बुरी तरह नष्ट हो गए थे। पेड़ गिरने तथा खंभे उखड़ कर गिरने की वजह से रेल तथा सड़क यातायात तहस-नहस हो गया था। इसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। यही होता है काल बैसाखी।
Image credit: News 24*7
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