इस समय एक तरफ पूरी दुनिया में मौसम से जुड़ी आपदाएँ जहां बढ़ती जा रही हैं वहीं भारत में भी पिछले कई वर्षों से बारिश के प्रदर्शन में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। सबसे बड़ा बदलाव भारत की वर्षा ऋतु यानि मॉनसून सीज़न में आया है। चार महीनों के मॉनसून सीज़न में देश में कुल बारिश का आंकड़ा हो सकता है कि सामान्य के आसपास पहुँच जाए लेकिन बारिश का वितरण बहुत असंतुलित होता जा रहा है जो भारत के लिए नई चुनौती है।
मौसम से जुड़े आंकड़ों, समय सीमाओं को आमतौर पर हर 30 वर्ष में बदलाव किया जाता है लेकिन बारिश में बड़ा असंतुलन देखते हुए यह अपरिहार्य हो गया है कि संशोधन शीघ्र किया जाए। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए भारत की सरकारी मौसम एजेंसी भारत मौसम विभाग ने मॉनसून वर्षा के औसत में 2019 में पहले ही संशोधन किया है।
वर्ष 2018 तक मॉनसून सीज़न (जून से सितंबर) के चार महीनों में दीर्घावधि औसत बारिश का आंकड़ा 887 मिलीमीटर था, जिसे 2019 में घटाकर 880.6 मिमी कर दिया गया। प्रत्येक महीने के औसत वर्षा के आंकड़ों में भी बदलाव किया गया।
English Version: Know why onset and withdrawal dates of India’s Southwest Monsoon should be changed
यह सर्वविधित तथ्य है कि भारत कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है और देश की कृषि मॉनसून वर्षा पर काफी हद तक निर्भर है। ऐसे में मॉनसून वर्षा में कोई भी बदलाव कृषि उत्पादन को सीधे प्रभावित करता है। परिणामतः देश की अर्थव्यवस्था हिल जाती है।
पिछले वर्ष औसत आंकड़ों में कुछ बदलाव ज़रूर किए गए हैं लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि मॉनसून के आगमन और इसकी विदाई के सामान्य समय को भी संशोधित किए जाने की आवश्यकता है। अब मॉनसून 2020 में बहुत अधिक समय नहीं रह गया है इसलिए बदलाव शीघ्र कर लिया जाना चाहिए।
वर्तमान समय में मॉनसून की सामान्य तिथियाँ इस प्रकार हैं: मॉनसून का आगमन केरल में 1 जून को होता है। 1 सितंबर से मॉनसून अपने विदाई के रास्ते पर निकलता है और 15 अक्टूबर तक यह समूचे देश से लौट जाता है।
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून का आगमन
वर्ष 1971 से अब तक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 49 वर्षों चार बार मॉनसून सामान्य समय से एक सप्ताह से भी अधिक देरी से आया। इसी तरह चार बार ऐसा हुआ जब मॉनसून एक सप्ताह से भी अधिक समय पहले आया।
यह स्पष्ट है कि 49 वर्षों में 84% समय मॉनसून का आगमन निर्धारित समय पर हुआ, केवल 16% समय में ही इसमें असंतुलन दिखा। स्काइमेट का मानना है कि अलग-अलग क्षेत्रों में मॉनसून की सामान्य निर्धारित समय सीमा को संशोधित किया जाना चाहिए।
आमतौर पर बंगाल की खाड़ी के रास्ते दक्षिण-पश्चिम मॉनसून केरल में दस्तक देता है। इसी समय मॉनसून पूर्वोत्तर भारत में भी पहुँच जाता है। केरल में दस्तक देने से पहले मॉनसून म्यांमार के तटों और अंडमान पहुँच जाता है।
आमतौर पर जब मॉनसून केरल और आसपास के भागों और पूर्वोत्तर राज्यों पर दस्तक देता है, उस समय अच्छी बारिश देखने को मिलती है। केरल में मॉनसून के आने के साथ ही आर्द्रता बहुत बढ़ जाती है, बारिश होती रहती है, घने बादल छाए रहते हैं और हवाएँ बदल जाती हैं।
सुझाव: यह देखा गया है कि मॉनसून कई बार केरल आने से पहले पूर्वोत्तर भारत में पहुंचा है। कई बार दोनों जगहों पर साथ-साथ दस्तक देता है। इसलिए स्काइमेट का सुझाव है कि यहाँ संशोधन की आवश्यकता है। केरल पर मॉनसून के आने की घोषणा जिन मापदण्डों पर की जाती है पूर्वोत्तर राज्यों के लिए भी समान मापदंड आवश्यक नहीं हैं।
इसके अलावा सामान्य समय से एक सप्ताह पहले या एक सप्ताह बाद मॉनसून के आगमन को भी सामान्य घोषित किया जाना चाहिए। इसलिए हमारा मानना है कि सामान्य तिथियों में बदलाव किया जाना चाहिए।
अन्य क्षेत्रों खासकर मध्य और उत्तर भारत के भागों में भी मॉनसून के आगमन की तिथियों को बदला जाना (आगे बढ़ाया जाना) चाहिए। दक्षिण भारत में जहां मॉनसून लगभग एक सप्ताह के समय में सभी क्षेत्रों को अपने दायरे में ले लेता है वहीं उत्तर भारत के भागों को कवर करने में मॉनसून को लगभग 15 दिन का समय लगता है। अगर उत्तर भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान पहले या देर से आगमन के समय पर नज़र डालें तो पहले और बाद में आगमन का अनुपात 2:8 का है। इसके अलावा यह भी उल्लेखनीय है कि एक साथ यह सभी क्षेत्रों को कवर नहीं करता है।
मॉनसून के आगमन से अधिक इसकी वापसी में असंतुलन ज़्यादा देखने को मिलता है। मॉनसून के वापस लौटने की शुरुआत आमतौर पर 1 सितंबर को राजस्थान के पश्चिमी भागों से होती है। लेकिन अक्सर ऐसा देखा गया है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ज़्यादातर समय इस निर्धारित तिथि से काफी बाद में वापसी की राह पर लौटा है। देश के अन्य भागों में भी मॉनसून आसानी से वापस नहीं जाता है। कई बार राजस्थान से वापसी भले शुरू हो जाती है लेकिन देश के उत्तरी भागों में यह टिका रहता है।
देश भर से मॉनसून की पूर्ण वापसी तब मानी जाती है जब यह 15 डिग्री उत्तरी अक्षांश पर पहुँच जाता है। आमतौर पर मध्य और दक्षिण भारत के मध्य क्षेत्र 15 डिग्री उत्तरी अक्षांश तक मॉनसून की वापसी 15 अक्टूबर तक होती है। यही समय होता है जब उत्तर-पूर्वी मॉनसून भी दस्तक देने की तैयारी में होता है। वर्तमान में जो सामान्य समय सीमा है उसके अनुसार 1 अक्टूबर तक मॉनसून गोवा, मध्य महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और मध्य भागों से वापस लौट जाता है
बीते तीन वर्षों में मॉनसून की वापसी देखें तो 2017 में 27 सितंबर को और 2018 में 29 सितंबर को मॉनसून के वापस लौटने की शुरुआत हुई थी जबकि 2019 में नया रिकॉर्ड बना था क्योंकि 2019 में 8 अक्टूबर को मॉनसून ने वापसी शुरू की थी। यह मॉनसून के इतिहास में सबसे लेट वापसी का रिकॉर्ड है। पिछले कुछ वर्षों के आंकड़े नीचे चित्र में देख सकते हैं।
प्रायः देखा गया है कि मध्य भारत से मॉनसून सामान्य समय यानि 1 अक्टूबर की बजाए 10 अक्टूबर तक विदा होता है। समूचे मध्य भाग से इसकी वापसी करते-करते 20 अक्टूबर या उससे भी अधिक समय हो जाता है।
सुझाव: प्रायः बड़े फेरबदल को देखते हुए स्काइमेट का मानना है कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के लिए भी मॉनसून की वापसी की तिथियों में संशोधन किया जाना चाहिए।
Image credit: Bloombereg
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