[Hindi] आगामी मॉनसून-2020 पर अल नीनो का क्या होगा असर

February 12, 2020 2:27 PM | Skymet Weather Team

दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2020 की उलटी गिनती शुरू हो गई है। मॉनसून के आगमन में अब महज़ तीन महीने रहे गए हैं। इसके साथ ही भारत सहित दुनियाभर के मौसम वैज्ञानिक अब यह खँगालने में जुट गए हैं कि वर्तमान समय में और आने वाले दिनों में जो सामुद्रिक स्थितियाँ होंगी उनका मॉनसून पर क्या असर पड़ने वाला है।

मॉनसून पर जिन समुद्री बदलावों का प्रभाव पड़ता है उनमें प्रमुख है अल-नीनो। अल नीनो की उपस्थिती मात्र से समूचा मॉनसून चौपट हो सकता है। अल-नीनो सिर्फ भारत के मॉनसून को प्रभावित नहीं करता है बल्कि अन्य इलाकों में भी मॉनसून के प्रदर्शन पर असर डालता है। भारत के लिए यह इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था वाला देश और चार महीनों के वर्षा ऋतु में असंतुलन से समूची अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है।

अल-नीनो का अस्तित्व प्रत्येक 2 से 7 साल में देखने को मिलता है। अल-नीनो उस स्थिति को कहते हैं जब प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के पास समुद्र की सतह का तापमान असामान्य रूप से बढ़ जाता है। अल-नीनो के अस्तित्व की घोषणा तब की जाती है जब समुद्र की सतह के तापमान पर आधारित ओषनिक नीनो इंडेक्स (ओएनआई) तीन ओवरलैपिंग महीनों औसत से 0.5°C तक बढ़ जाता है।

English Verison: With India gearing up for Southwest Monsoon 2020, know the present status of El Nino

प्रशांत महासागर में अल-नीनो को देश के विभिन्न भागों में बारिश के रुख में बदलाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है। इसके कारण हवा के रुख परिवर्तित होता है जिससे कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा देखने को मिलता है। कह सकते हैं कि देश के विभिन्न हिस्सों में विपरीत मौसमी स्थितियों के लिए अल-नीनो ही ज़िम्मेदार है। हालांकि विश्व के कुछ हिस्सों को अल-नीनो से लाभ भी होता है।

एक के बाद दूसरे क्रम में अल-नीनो के प्रभाव में आमतौर पर अंतर देखने को मिलता है। ऐसा कम ही होता है कि लगातार दो बार या उससे अधिक क्रमों में यह समान क्षमता में ही अस्तित्व में आए। अब तक अल-नीनो के अस्तित्व की बात की जाए तो लगातार दो बार इसकी एक जैसी क्षमता देखने को नहीं मिली है। यहाँ यह ज़िक्र करना भी महत्वपूर्ण है कि अल-नीनो को लेकर कोई तय नियमावली नहीं है।

अल-नीनो आमतौर पर 9 से 12 महीने अस्तित्व में रहता है। लेकिन कभी-कभी यह दो वर्षों तक अस्तित्व में बना रहता है।

अल नीनो के कारण सिर्फ दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ही प्रभावित नहीं होता है बल्कि इसके चलते साल की अन्य ऋतुओं में भी बारिश के रुख में बदलाव देखने को मिलता है। अल नीनो के कारण एक तरफ उत्तर भारत में सर्दी अच्छी नहीं पड़ती तो दूसरी ओर दक्षिण भारत में पोस्ट मॉनसून सीज़न में यानि उत्तर-पूर्वी मॉनसून में बारिश कम होती है।

अल नीनो के दौरान भारत में मौसम

हाल के वर्षों में अल-नीनो के अस्तित्व को लेकर अनुमान लगाने के बारे में उल्लेखनीय उपलब्धियां मिली हैं। लेकिन अभी भी हम अपेक्षा से दूर हैं। हालांकि समुद्र के साथ-साथ वायुमंडलीय स्थितियों का गणित बेहतर ढंग से समझे जाने की शुरुआत हो चुकी है जिससे न्यूमेरिकल वेदर मॉडल्स पर निर्भरता कम हो रही है।

यह ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि न्यूमेरिकल वेदर मॉडल्स पहले से बेहतर हुए हैं। डाइनेमिकल व न्यूमेरिकल वेदर मॉडल्स चलाये जाते हैं। इनके पूर्वानुमान की सटीकता पर भरोसा बढ़ा है। इन वैज्ञानिक सुधारों से अल-नीनो को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलने लगी है। इससे कम से कम मौसम में बड़े उतार-चढ़ाव के प्रभाव से कुछ हद तक बचने की तैयारी की जा सकती है।

अल-नीनो की वर्तमान स्थिति क्या है

वर्ष 2019 में प्रशांत महासागर गर्म ज़रूर हो रहा था लेकिन यह तटस्थ स्थिति में ही रहा। पूर्वी प्रशांत में नीनो 3 और नीनो 1+2 की तुलना में पश्चिमी प्रशांत में नीनो 4 और नीनो 3.4 गर्म है।

अल-नीनो का रुख मुख्य तौर पर 3.4 इंडेक्स से पता चलता है। यहाँ पिछले कई महीनों में तापमान गर्म रहा है। तापमान के आंकड़ों में कई बार उतार-चढ़ाव आए हैं लेकिन यह शून्य से ऊपर ही बना रहा। हाल में समुद्र की सतह का तापमान 3.4 रीजन में 0.2 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया। अल-नीनो के प्रभावी होने की संभावना तब बनती है जब तापमान औसत से -0.5°C से लेकर 0.5°C के बीच होता है। नीचे दिए गए टेबल में आप इसे बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।

आने वाले दिनों में अल नीनो की संभावना की बात करें तो वसंत ऋतु में इसके तटस्थ रहने की संभाव्यता 60% है। ग्रीष्म ऋतु में भी 50% संभाव्यता दिख रही है। इसके साथ हमें नहीं लगता है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2020 पर अल नीनो का साया रहेगा, जैसा कि 2019 के मॉनसून पर शुरुआती दिनों में दिखा था। इसी अल-नीनो के कारण 2019 में मॉनसून के आगमन में देरी हुई थी और जून में देश भर में सूखे जैसे हालात पैदा हुए थे।

मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार यह अल-नीनो की स्थिति का आंकलन करने का सबसे सही समय है। अब जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा समुद्र का पानी गर्म होने लगेगा। मार्च आते-आते सूर्य उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ते हुए भूमध्य रेखा के पास आ जाता है, यही वजह है कि समुद्र की सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी होती है।

मई तक सूर्य और उत्तर में चला जाता है और ऋतु बदलकर वसंत से ग्रीष्म हो जाती है। लेकिन जब मॉनसून शुरू होता है तब एक बार फिर से समुद्र की सतह का तापमान अपनी वास्तविक स्थिति में पहुँच जाता है।

Image credit: Critic Brain

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