[Hindi] हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में भूस्खलन रोकने के लिए तकनीकि की मदद

September 9, 2017 11:04 AM | Skymet Weather Team

उत्तर भारत के पर्वतीय इलाकों में भूस्खलन एक बड़ी चुनौती है। भूस्खलन के चलते कई बार अनेकों लोगों की जान चली जाती है। भूस्खलन, पर्वतीय इलाकों में रह रहे स्थानीय लोगों और सैर के लिए जाने वाले पर्यटकों के साथ-साथ सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती और चिंता का विषय है। भूस्खलन पर कैसे लगाम लगाई जाए, कैसे इससे होने वाले नुकसान को कम से कम किया जाए इस पर संबन्धित एजेंसियां मंथन करती रही हैं।

केंद्रीय विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड और प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण परिषद ने आईआईटी मंडी को भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम से कम करने के उपाय तलाशने की ज़िम्मेदारी दी थी। इस क्रम में मोटे तौर पर दो उपाय किए जाएंगे। पहला है लंबी और गहरी जड़ वाले पेड़ लगाया जाना और दूसरा सेंसर लगाना। इस पर हिमाचल प्रदेश में काम शुरू हो गया है।

इस क्रम में ऐसे इलाकों की पहचान की जाएगी जहां मिट्टी, पत्थर और चट्टानों के दरकने या खिसकने का खतरा रहता है। ऐसे दुर्घटना संभावित क्षेत्रों में लंबी और गहरी जड़ों वाले लगाए जाएंगे जो मिट्टी के कटाव को रोंकेंगे। दूसरा उपाय होगा सेंसर। इन सेंसरों की मदद से भूस्खलन के चलते होने वाले जन-माल के नुकसान को कम किया जायेगा। सेंसर नज़दीकी नियंत्रण कक्ष को संकेत देंगे जिसकी मदद से स्थानीय प्रशासन उन इलाकों में आवागमन रोक देगा और स्थानीय बस्ती को खाली करा लिया जाएगा।

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गौरतलब है कि हर वर्ष मॉनसून में भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है और संपत्तियाँ भी नष्ट होती हैं। भूस्खलन की घटनाओं के चलते पिछले वर्ष लगभग 864 करोड रुपए का नुकसान हुआ था। इस बार भी अब तक 655 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान लगाया गया है। हिमाचल प्रदेश के मंडी में 13 अगस्त को भयानक भूस्खलन की घटना हुई थी 2 बसें नष्ट हो गई थीं और 46 लोगों की मौत हुई थी।

ऐसा नहीं है कि भूस्खलन को रोकने के प्रयास पहले नहीं हुए हैं। लेकिन इसमें अब तक रोक लगाने में सफलता नहीं मिली है। अनुमान है कि इन प्रयासों से केदारनाथ और कोटरोपी जैसी बड़ी प्राकृतिक आपदाओं को कम किया जा सकेगा।

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